🌺 मुक्तिबोध का जीवन परिचय🌺
◆ जन्म :– 13 नवम्बर 1917 श्योपुर, मुरैना जिला, ग्वालियर(MP)
◆ मृत्यु :– 11 सितंबर 1964 ,दिल्ली
◆ पिता का नाम :- माधव मुक्तिबोध
◆ माता का नाम :- पार्वती देवी
◆ पूरा नाम :- गजानन माधव मुक्तिबोध
◆ पत्नी का नाम :- शांता मुक्तिबोध
◆ मुक्ति बोध को लोकजीवन का जासूस कवि कहा जाता है।
◆ प्रसिद्ध कविताएं :-
● ब्रह्मराक्षस(चांद का मुंह टेढ़ा है काव्य संग्रह से)
● अँधेरे में(चांद का मुंह टेढ़ा है काव्य संग्रह से)
⭐कविता संग्रह :-
● चांद का मुंह टेढ़ा है (1964)
● भूरी भूरी खाक धूल(1980)
⭐ निबंध संग्रह :-
● नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध (1964)
● एक साहित्यिक की डायरी(1964)
⭐ कहानी संग्रह :-
● काठ का सपना (1967)
● सतह से उठता आदमी (1971)
◆ उपन्यास :- विपात्र (1970 )
⭐ अन्य रचनाओं:-
● नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र ( 1971)
● कामायनी एक पुर्नविचार(1973)
◆ मुक्तिबोध के कथन :-
1. *मनुष्य का व्यक्तित्व एक गहरा रहस्य है।
2. *मन एक रहस्यमय लोक है ।
3. *अनास्था आस्था की पुत्री है” एक लंबी कविता का अंत”
4.*आलोचक साहित्य का दारोगा हैडबरे पर सूरज का बिंब ।
5.*कुंठा शब्द फ्रायडवाद व मार्क्सवाद की संकर संतान है।
*सभी कथन एक साहित्यिक की डायरी निबंध से
◆ मुक्तिबोध की पंक्तियां:-
●अंधेरे मे कविता से महत्वपूर्ण पंक्तियां :-
1. वह रहस्यमय व्यक्ति
अब तक न पाई गई मेरी अभिव्यक्ति है,
पूर्ण अवस्था वह
निज-संभावनाओं, निहित प्रभावों, प्रतिभाओं की,
मेरे परिपूर्ण का आविर्भाव,
हृदय में रिस रहे ज्ञान का तनाव वह,
आत्मा की प्रतिभा।
2. बाँहों में कस लूँ
हृदय में रख लूँ
घुल जाऊँ, मिल जाऊँ लिपटकर उससे
3.अरे भाई, मुझे नहीं चाहिए शिखरों की यात्रा
मुझे डर लगता है ऊँचाइयों से
4. हर बार सोच और हर बार अफ़सोस
हर बार फ़िक्र
के कारण बढ़े हुए दर्द का मानो कि दूर वहाँ, दूर वहाँ
अँधियारा पीपल देता है पहरा।
5.“वह चला गया है,
वह नहीं आएगा, आएगा ही नहीं
अब तेरे द्वार पर।
वह निकल गया है गाँव में शहर में!
उसको तू खोज अब
उसका तू शोध कर!
वह तेरी पूर्णतम परम अभिव्यक्ति,
उसका तू शिष्य है (यद्यपि पलातक…)
वह तेरी गुरु है,
गुरु है...(रात का पक्षी कहता है)
6. ओ मेरे आदर्शवादी मन,
ओ मेरे सिद्धांतवादी मन,
अब तक क्या किया?
जीवन क्या जिया!!
7. बन गए पत्थर,
बहुत-बहुत ज़्यादा लिया,
दिया बहुत-बहुत कम,
मर गया देश, अरे, जीवित रह गए तुम!!
8. भागता मैं दम छोड़,
घूम गया कई मोड़।
भागती है चप्पल, चटपट आवाज़
चाँटों-सी पड़ती।
9. “भाग जा, हट जा
हम हैं गुज़र गए ज़माने के चेहरे
आगे तू बढ़ जा।”(बिजली का झटका
कहता है)
10.अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे
उठाने ही होंगे।
तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़ सब।
11. यह कथा नहीं है, यह सब सच है, हाँ भई!!
कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई!!
12. वह मेरे पास कभी बैठा ही नहीं था,
वह मेरे पास कभी आया ही नहीं था,
तिलस्मी खोह में देखा था एक बार,
आख़िरी बार ही।
13.जहाँ मिल सके मुझे
मेरी वह खोई हुई
परम अभिव्यक्ति अनिवार
आत्म-संभवा।
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