मेरी तिब्बत यात्रा(mere tibbat yatra) [द्वितीय खंड]

[ ]  यात्रा वृत्तांत के रचनाकार :- राहुल सांकृत्यायन

[ ] प्रकाशन वर्ष :- 6 मार्च 1937,पटना से प्रकाशित
[ ] लेखक ने सर्वप्रथम तिब्बत यात्रा की तब प्रेस को दिया किंतु कुछ कारणों से 36 पृष्ठ तक छपकर काम रुक रहा।
[ ] यह लेखक तीसरी बार तिब्बत से लौटने के बाद प्रकाशित हुई।
[ ] कुल पृष्ठ :- 140(लेकिन 128 वे पृष्ठ के बाद तीन पृष्ठ लुप्त हो गए इसलिए अभी इसमें 137 पृष्ठ ही है।)
[ ] यात्रा वृत्तांत पांच खंडों में :-
1. ल्हासा से उत्तर की ओर
2. चाड् की ओर
3. सक्य की ओर
4. अनम् की ओर
5. नेपाल की ओर
[नोट्स :- अंतिम दो खण्ड सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुए एवं शेष खण्ड प्रवासी (बंगला) पत्रिका में प्रकाशित हुई।]

[ ] द्वितीय खंड [चाङ् की ओर]

[ ] गङ् [8-9-2934]

• फेन्- बोके प्रान्त में जाने से फोटोग्राफर नाती ला ने मना कर दिया
• लेखक का कैमरा ग्याची स्थान पर में है ।
• छु-सिन्- शर वालों को चार खच्चर यशदेने के लिये कहा
• डे-पुङ् :-
★ खच्चरों की हिफाजत के लिए
★ यह मठ का एक भिक्षु
★ मंगोल भिक्षु
★ यह लेखक को रास्ते में मिलने के लिए। अब खच्चरों की हिफाजत करने का कार्य :- सो-नम्-ग्यंजे( फेन्- पो यात्रा में तलवार उठने वाले/यह लाल खच्चर लेकर लौट आये थे।)
• लेखक को द्जड स् मङ् गांव में पहुंचे तो बुखार आ गया।
• भारत के चित्रकूट पहाड़ में परिक्रमा की जाती है उसी प्रकार भोटवासी भी ‘छु-वो-रि’ पहाड़ के परिक्रमा करते हैं।
• छु-वो-रि’ पहाड़ के चारों ओर 108 विहार ,108 चैत्य और108 चश्मे बतलाये जाते हैं।
• भोटो देश की जोत तो खून और डकैतों के खास स्थान है।
• धर्मवर्द्धन को जब शो- ला की ऊंचाई के कारण हिचकी की आने लगी। लेखक कहा एक अंडा निकाल कर खाओ। खाने के साथ भी बंद हो गयी।

[ ] न-ग-र्चे [13-9-1934]

• युम् -डोक् सरोवर की ऊंचाई 14000 फीट है यहां पर बहुत ठंडी है।
• 11वीं सदी में भारतीय पंडित सूक्ष्म – दीर्घ समय तक रहते थे :- रोङ् प्रदेश में
• रोङ् प्रदेश के डक् -पा नामक परिवार में 15वीं शताब्दी के 35 सुंदर चित्रपट है।
• नम्-प-शिव के 1 मील पहले लेखक को सर चार्ल्स बेल् और उनके साथी मिले।
• “कहाँ यह सत्तर वर्ष (लेखक के लिए) का मुट्ठी भर हाड़ हिमालय के इन दुर्गम पहाड़ों को पार करने की हिम्मत कर रहा है और कहाँ हमारे नौजवान।” 【सर चार्ल्स बेल् का कथन】
• बेल साहब को तिब्बत वाले बेल-लुन-छेन् कहते हैं।
• लुन-छेन् :- भोट शासक दलाई लामा के बाद दूसरा पद ।
• लुन-छेन् पदवी को सर चार्ल्स बेल् के मित्र स्व. दलाई लामा ने प्रदान की थी।
• सर चार्ल्स ने जब दलाई लामा के मारने के पहले एक बार फिर तिब्बत और ल्हासा देखने की इच्छा प्रकट की थी,तो उन्होंने स्वीकृति दे दी।
• बेल साहेब की दो पुस्तके तिब्बत की जानकारी देती है ।
• सर चार्ल्स ने कुछ रुपए देने चाहे किंतु लेखक ने धन्यवाद देकर अस्वीकार कर दिया।

[ ] ग्यांची[16-9-1934]

• न-ग- र्चे से रा-लुङ् के लिये चार घोड़े मिल गये।
• साढ़े ग्यारह बजे के करीब लेखक खा-रू-ला जोत पर पहुंचे।(16000 फीट पर)
• ल्हासा से गयांची तक पांच-पांच मील पर सरकार ने डाकियों के लिए घर बनाया दिये हैं।
• खा- रू- ला जोत पहुंचने पर लेखक का डाकिया के घर के बिस्कुट और न-ग-र्चे से लाये सूखे भेड़ के मांस का फलाहार किया और चाय (मक्खन डालकर)।
• रा-लुङ् का तार पुरानी चीनी चौकी है में है (यहां पर तार भेजने वाली स्त्री थी।)
• रा-लुङ् मठ:-
★ इसको 13वीं के सदी के आरम्भ में द्योन-रस्-धर्म
-दोर्-सेड्(1277-1236ई.)ने स्थापित किया था।
★ इसका संबंध विक्रमशिला के सिद्ध नाड़पार के
शिष्य मर- वा के कर् – र्ग्युद -पा संप्रदाय से हैं।
★ इस मठ में ताल पत्र की पुस्तक तथा कुछ पुरानी मूर्तियां मिल सकती है(किसी ने लेखक को कह था।)लेकिन वहाँ जाने बाद लेखक द्वारा पूछने पर
भिक्षु ने कहा कि यहां ताल पत्र नहीं है और मूर्तियाँ भी बिकाऊ नही है।
★ में लेखक 9:00 बजे पहुंचे।
★ में भिक्षु और भिक्षुणियां एक साथ रहते है।कौन किसका पुरुष और कौन किसकी स्त्री इसका बड़ा कोई कड़ा नियम नहीं है।
★ भिक्षु 70 के करीब एवं भिक्षुणियां 100 से अधिक।
★ भिक्षुणियां एक प्रकार की लाल टोपी लगती है।
★ इस मठ के नीचे तल में चार देवालय है :-
√ मैत्रेय
√ बुद्ध
√ बाकी दो में और पीतल की मूर्तियां हैं।
• राजनाथ की खचरी ने ठोकर खायी और वह एक चट्टान छाती के बल गिरे गये।:- गोव्-शि (वह स्थान जहाँ पर राजनाथ ने पिछली यात्रा में ठोकर खायी थी।) 【यह लेखक की यह पहली घटना जिससे चिंता में पड़ गये।】
• फ-रो पहुंचने पर राजनाथ ने एम.ए का परिणाम मालूम किया।(परिणाम – प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान आये)
• छु -सिन-साके मालिक साहु ज्ञान मान जब नेपाल लौटे रहे थे तब लेखक ने राजनाथ को भारत लौटने की सम्मति दी।
• सभी चिट्ठियां ल्हासा में संग्रह की गयी चीजों के 22 पार्सल डाक में डाले जायेंगे।
• प्रशांत चन्द चौधरी I.C.S ने पुस्तकों के फोटो के लिये एक अच्छा कैमरा और बाहर दर्जन फिल्म भेजे हैं।
• प्रशांत चन्द चौधरी I.C.S :-
★ गृध्रकूट को खोज निकालने वाले
★ पंजाब में हिंदी के प्रथम पुजारी श्री नवीन चंद्र राय की पुत्री श्री हेमचंद्र कुमार चौधरानी (प्रशांत चन्द चौधरी की माता)
★ नाना का नाम :- श्री नवीन चन्द राय
★ माता का नाम :- हेमचंद्र कुमारी
★ प्रशांत चन्द चौधरी I.C.S अविवाहित थे।

[ ] टशीबू [ 23- 9- 1934]

• लेखक ने ग्यांची में संग्रहीत चीजों को पंडित ब्रजमोहन व्यास( प्रयाग म्यूजियम ) और जायसवाल जी (पटना म्यूजियम) पास डाक से भेज दी।
• लेखक के ग्यांची में सात दिन रहे इन में कब्ज और ज्वार की शिकायत बनी रही।
• विक्रमशिला के अंतिम नायक:- कश्मीरजन्मा महापंडित शाक्य श्रीभद्र
• ग्यांची में लेखक ने दो रूपये से कुछ अधिक लेकर(8 साङ् ) देकर चीजों के दर्शन की अनुमति मांगी।
• पोड्-डे का अर्थ :- गरही में घोड़े की औलाद, खच्चर
• ग्यांची से तीन पुस्तकें मिली :-
★ प्रज्ञापरमिता(अष्टसाइस्त्रिका,व्याकरण) :- तालपत्र पर
★ सर्वास्तिवादी शाक्य भिक्षु अश्घोष की टीका
√ पुस्तक खंडित
√ तालपत्र पर
√ ताल पत्र अधिक सुरक्षित
√ सर्वास्तिवादीय सूत्रों पर आधारित
★ एक पोथी कागज में लिखी गयी है(संवत् 1310 )
√ इस पोथी में मैत्रेय कृत मध्यांतविशभंगकारिका और मध्यान्तविभंगसूत्र (लेखक ने इन दोनों पोथियों के फोटो लिये)में
√ अभिसमयांलकार को आचार्य शेयरवास्की ने संपादित करवाया।
• 12 वीं सदी का अमोघपाश लोकेश्वर का सुंदर चित्र।
• महास्थविर शाक्यश्री भद्र 1203ई. में आकर तिब्बत में 8 वर्ष रहे थे।

[ ] शि-ग-र्चे [25- 9- 1934]

• काम करते वक्त गीत गाने का शौक :- तिब्बत में
• खङ्ग विषाणकल्प एक चरणी छोटी सी पहाड़ी के ऊपर से नीचे तक :- ग- दोङ् का मठ
• दूर से देखने पर तिब्बत के मठों की इमारते इंद्रधनुष को भी मात करती है।
• ग्यांची से शि-ग-र्चे की दूर से 60 मील से अधिक नहीं है। किंतु नदी की दोनों ओर के मठो की संख्या 100 से अधिक बतलायी जाती है ।
• लेखक ने तिब्बत यात्रा में कच्चे सूखे मास के खाने का अभ्यास कर लिया।
• नाती- ला को छोटे-छोटे टुकड़े कर चंवरी के सुखे मांस को लेखक ने मित्र खिलाते रहे ।
• लेखक की कहानी के अनुसार बलिया जिले के नये बने आचार्य बाप – बेटे को मद्रास की तीर्थ यात्रा पर लोगों ने पुंगल बोलकर खिचड़ा खिला दिया।
• नेपाल के लोग चंवरी को गो जाति के भीतर गिनते नहीं है।
• भारतीय कोषकारों से पूछा जाता है तो वह भी चमरी मृग ही कहते हैं।
• तिब्बत के लोगों में लामों के लिए भयंकर श्रद्धा है।
• दिसंबर,1933 में:-दलाईलामा की मृत्यु।
• लेखक श-लु मठ में अपने पूर्व परिचित रि-सुर-रिम्पी-छे को अपनी तीन पुस्तकें (अभिधर्म कोश,भोट भाषा की प्रथम पुस्तक और भोट भाषा – व्याकरण )भेंट की।
• लेखक को पिछली यात्रा में रि-सुर-रिम्पी लामा ने वज्रडाकतंत्र की तालपत्र की पुस्तक प्रदान की थी।
• धर्म कीर्ति के न्यायसंबंधी महान ग्रंथ प्रमाण – वार्तिक का अंतिम अनुवाद संशोधक गुहामठ के लो-च-व धर्मपाल भद्र (1527ई.) थे।
• श-लु विहार :-
★ श-लु विहार को स्थापित किया:- 1040ई. में जे -चुन्-शेरव् व्युङ्-ग्नस् ने
★ ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज के पुराने मठों से कई सौ वर्षा पुराना है।
★ इसमें तिब्बत का सबसे महान् विद्वान :- व्-सतोन्-रिन- छेन्-शिष्य (1290-1364ई.)हुआ हो।
★ विहार एक ऊंचाई दीवार से घिरा, मैदान में अवस्थित है।
★ दीवार के भीतर दक्षिण की और शा- लु गांव के गृहस्थों के घर है ।
★ प्रधान द्वार पूर्व की ओर।
★ द्वार के सामने भी आंगन और औसरे हैं ।
★ द्वार के भीतर घुमते ही गोन्- खङ् है।
★ दक्षिण की ओर क् न- जुट देवालय है।इसमें हाथ के लिखे तीन कन् पुर है।      स् न र् – धड़् छापे सबसे पुराना कन- जुर इसी मठ में हैं।
★ इसके पश्चिम के दो मन्दिर:-
√ जो- खङ्( स्वामिगृह) :-
© इसमें अवलोकितेश्वर खसर्पण की मूर्ति।
√ हयग्रीव मन्दिर (तम्-डिन्-लह-खड) :-
© इसमें दीवार के सहारे विशालकाय बोधिसत्व की मानव मूर्तियां।
© इसमें लेखक के मित्र रि-सुर-रिन् पो.प्रथम अवतार का चैत्य है।
★ उत्तर की ओर गो- सुम्- ल्-खङ् :-
√ इसमें तीन दर्वाजे है।
√ इसमें मठ के संस्थापक पश्चिम की दीवार पर है।
• रि-सुर-रिन-पो-छेके पास स्मृतिज्ञान कीर्ति की जीवनी देखी :-
★ स्मृतिज्ञान कीर्ति तिब्बत में आकर आठ वर्ष के
चरवाही करने वाले भारतीय पंडित।
★ धर्मवर्धन ने स्मृति का भेड चराते वक्त का एक चित्र भी बनाया है जो कहानी के साथ छपेगा।

[ ] शि-ग-र्चे [28-9-1934]

• रि-फुग्-विहार से ये पुस्तकें आयी:-
★ लेखक के मित्र ने रि-फुग्-विहार से किसी को
कहकर मंगवायी।
★ पुस्तकों में छः लिपियाँ :-
√ पुराण कश्मीरी(शारदा)
√ रंजन
√ तीन प्रकार की वर्तुल
★ तिब्बत में सुरक्षित भारतीय ग्रंथों की सूची विहार ओडिसा रिसर्च सोसायटी के जर्नल भाग 21वे में छपी है।
★ लेखक को रि-फुग्-विहार से 1936 की तृतीया यात्रा में 27 ताल पोथियां मिली,जिनमें प्रमाण वार्तिका मूल के तीन परिच्छेद तथा संपूर्ण ग्रंथ की एक सुंदर टीका भी है।
• कश्मीर के पंडित शाक्यश्री :- विक्रम शिला अंतिम नायक(लेखक ने इनका मूर्ति का फोटोलिया शलू विहार से)
• भोट के प्रधानाचार्य ट-शी-लामा चीन से लौटने वाले है।
• रघुवीर(रामपुरी)भोट भाषा में धर्मकीर्ति के प्रमाण वार्तिक को समाप्त करने जा रहे हैं।

नोट :- इस यात्रा वृत्तांत में शब्द ऐसे ही है जिसके कारण टाइपिंग में त्रुटि हो सकती है।

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