आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार प्रमुख 6 रासो ग्रन्थ बताये है:-
• Trick :- बीस पृथ्वी पर खुमान और हम्मीर ने विजय प्राप्त कर ली।
1. बीसलदेवरासो (बीस)
2. पृथ्वीराजरासो (पृथ्वी)
3. परमालरासो (पर)
4. खुमानरासो (खुमान)
5. हम्मीररासो (हम्मीर)
6. विजयपालरासो(विजय)
1. बीसलदेवरासो
[ trick :-बीस नर ]
• रचनाकाल :- संवत् 1212 (आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
संवत् 1073 (रामकुमार वर्मा के अनुसार)
1016 ई. (डॉ नगेंद्र के अनुसार)(संवत् सहस तिहत्तर जांनि, नाल्ह कबीसर सरसीय वाणि।)
• रचनाकार – नरपति नाल्ह(1212 वि.स./1155ई.)
• प्रमुख रस – श्रृंगार रस
• रचना का काव्य रूप – गेह मुक्तक काव्य,वीर गीत(सर्वप्रथम वीर गीत मे लिखी गई थी।)
• नायक-विग्रहराजचतुर्थ(बीसलदेव)(अजमेर के शासक,1158-1163ई.)
• बीसलदेव की रचना – हरिकेली
• नायिका – राजमती(परमारवंशी राजा भोज की कन्या)
• विरह गीत काव्य
• गेय काव्य( नगेंद्र के अनुसार)
• काव्य गेय नहीं था क्योंकि राजस्थान में कभी भी यह गेय नहीं रहा है ।(डॉ. मेनारिया के अनुसार)
• हम्मीर के समय की रचना (गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार)
• विषय:- भोज परमार की पुत्री राजमती और अजमेर के चौहान राजा बीसलदेव तृतीय के विवाह, वियोग एवं पुनर्मिलन की कथा सरस शैली में प्रस्तुत की है।
• 100 पृष्ठों में
• 200 चरण
• खंड – 4
• पहला खंड में :- मालवा के भोज परमार की पुत्री राजमति से शाकंभरीश्वर बीसलदेव की विवाह का वर्णन।( 85 छंद )
• दूसरा खंड में :- राजमति से रूढ़कर रत्न ले जाने के लिए बीसलदेव का उड़ीसा जाना वर्णित।(86 छंद)
• तीसरे खंड में :- राजमती का विरह वर्णन।(103 छंद)
• चौथे खंड में:- भोजराज का अपनी पुत्री का मालवा ले जाना वर्णित है और उसी में बीसलदेव के उड़ीसा से लौटने और राजमति के घर ले आने का प्रसंग( 42 छन्द)
• कुल छन्द:- 316 छन्द
• 128 छंदों की एक प्रति का संपादन माता प्रसाद गुप्त ने किया।
• हिन्दी में प्रथम बारहमासा का वर्णन।
• वीर गीत के रूप में सबसे पुरानी पुस्तक -बीसलदेव रासो
• हिंदी के आदिकाल की एक श्रेष्ठ काव्य कृति (नगेंद्र के अनुसार)
• नरपति नाल्ह को जनकवि नहीं मानते हैं।(डॉ. बच्चन सिंह)
• “सामंती जीवन के प्रति गहरी रूचि का सजीव चित्रण बीसलदेव रासो काव्य में मिलता है।”( नगेंद्र के अनुसार)
• “संदेश रासक के समान ही बीसलदेव रासो की भाव भूमि प्रेम की निश्चल अभिव्यक्ति में सरस है।” (नगेंद्र के अनुसार)
• मेघदूत और संदेश शासक की संदेश परंपरा बीसलदेव रासो में मिलती है। (नगेंद्र के अनुसार)
• “बीसलदेव काव्य के वर्णनों में एक संस्कार दृष्टि मिलती है, जो नारी – गरिमा की स्थापना करती है।“ (नगेंद्र के अनुसार)
• “बीसलदेव रासो की श्रृंगार – परंपरा का आदिकाल में ही अंत नहीं हो जाता काल में ही अंत नहीं हो जाता। विद्यापति से होती हुई यही परंपरा भक्तिकाल की प्रेमाख्यान काव्यों तक पहुंची, कृष्ण भक्तों को भी प्रभावित किया तथा रीतिकाल में जाकर इसका श्रृंगार काव्य के रूप में चरम विकास हुआ।“( नगेंद्र के अनुसार )
• “नरपति नाल्ह के इस बीसलदेव रासो में जैसा कि होना चाहिए था,न तो उक्त वीर राजा की ऐतिहासिक चढ़ाईयों का वर्णन है,न उसके शौर्य – पराक्रम का। श्रृंगार रस की दृष्टि से विवाह और रूठकर विदेश जाने का( प्रोषितपतिका के वर्णन के लिए ) मनमाना वर्णन है ।अतः इस छोटी सी पुस्तक को बीसलदेव ऐसे वीर का ‘रासों’ कहना खटकता है।”( आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
• “बीसलदेव रासो ग्रंथ में श्रृंगार की ही प्रधानता है, वीर रस का किंचित् आभास मात्र है।”(आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
• “चारण काल के समय बीसलदेव वीर पूजा अथवा धर्म और राजनीति के नेता गौरव का गीत था।”( डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार)
2. पृथ्वीराजरासो
Trick :- पृथ्वी चंद
• रचनाकार – चंदबरदाई
🌺 🌻 कवि चंदवरदाई का परिचय 🌻🌺
• जन्म :- 1149 में
• जन्म स्थान:- लाहौर में
• मृत्यु :- 1192 में (पृथ्वीराज का जन्म एवं इनका जन्म एक ही दिन एवं मृत्यु भी एक साथ हुई )
• इष्ट देवी :- जालंधर देवी
• पिता का नाम :- मतह (पूर्वजों की भूमि – पंजाब)
• पत्नियों का नाम :- कमला और गोरी।
*चंद के दो विवाह हुए थे इनकी पहली पत्नी का नाम कमला और दूसरी पत्नी का गौरी था।पृथ्वीराजरासो की कथा चंद ने गोरी(दुसरी पत्नी)से कही थी।गोरी प्रश्न करती और चंद उत्तर देते थे।
• जाति :- भाट जाति के जागत नामक गोत्र के
• मूल नाम :- बलिद्दय
• दुसरा नाम :- पृथ्वीचंद या पृथ्वीभट्ट( पृथ्वीराज रासो ग्रंथ में अपना नाम चंद लिखा)
• उपाधि :- वरदाई(देवी सरस्वती से मिली थी)
• चंदबरदायी के सखा :- दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट महाराज पृथ्वीराज चौहान
• पृथ्वीराज चौहान के सामंत एवं राजकवि
• विद्वानों एवं गुणवान पुत्र (10 पुत्र में चौथे पुत्र):- जल्हन
• हिंदी के प्रथम महाकवि :- चंदबरदायी(आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
• हिंदी के प्रथम महाकाव्य पृथ्वीराज रासो के रचयिता।
• चंदबरदायी बडभाषा,व्याकरण,काव्य,साहित्य,छन्द शास्त्र,ज्योतिष – पुराण, नाटक इत्यादि के पारंगत थे।
• शब्दों के डिटेक्टर :- चंदबरदायी(हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार)
• हजारी प्रसाद द्विवेदी ने स्वीकारते हैं कि “चंदबरदायी शब्दों के डिक्टेटर थे। वे लाठी लेकर उनकी परेड करवाते थे।किसी के हाथ – पैर टूट जाय तो क्या?” अर्थात् चंद का शब्द भंडार विशाल था,शब्द रूपों में मनमानी विविधता है।
• छप्पय छन्द का राजा -चंदबरदाई
★पृथ्वीराज रासो का परिचय ★
• महाकाव्य(प्रबन्धकाव्य)
• पृथ्वीराज की जीवन कथा
• हिंदी का प्रथम महाकाव्य :-पृथ्वीराज रासो (आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार )
• जालंधरी देवी का इष्ट चंदबरदायी को प्राप्त था इसलिए इनकी कृपा से यह अदृष्ट काव्य भी कर सकते थे।
• कुल पृष्ठ:- 2500 (बहुत बड़ा ग्रंथ है)
* पृथ्वीराज रासो महाकाव्य में सर्ग को समय कहा हैं।
• कुल समय या सर्ग :- 69
• सबसे बड़ा (समय) :- कनवज्ज युद्ध या कन्नौज युद्ध
• महाकाव्य को पूर्ण करने वाले :- जल्हण(चंदबरदायी के पुत्र)
• छन्द – 68 प्रकार के(इस कारण इसे छन्दों का अजायबघर भी कहते है। यह संज्ञा- शिवसिंहसरोज ने दी।)
• चंदबरदायी का प्रिय छंद :- छप्पय
• मुख्य छन्द :- कवित्त(छप्पय),दूआ,तोमर,त्रोटक,गाहा,आर्या।(रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
• मुख्य रस :- वीर और श्रृंगार रस। (अंगी रस- वीर रस)
• भाषा :- पिंगल भाषा (डॉ. श्यामसुंदर दास के अनुसार)
डिंगल भाषा :- (डॉ . हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार)
* पिंगल भाषा:- पूर्वी राजस्थानी का साहित्यिक रूप। इसका अधिकांश साहित्य भाट जाति के कवियों के द्वारा लिखित है।
* डिंगल भाषा :- पश्चिमी राजस्थानी की साहित्यिक रूप। इसका अधिकांश साहित्य चारण कवियों द्वारा लिखित है।
• रासो ग्रन्थों मे पृथ्वीराजरासो सर्वाधिक विवादित ग्रन्थ रहा है।
• पृथ्वीराजरासो विकासशील महाकाव्य की श्रेणी मे आता है।
• हिन्दी का प्रथम महाकाव्य-पृथ्वीराजरासो(आ.शुक्ल के अनुसार)
• स्वाभाविक विकासनशील महाकाव्य माना है(स्व.गुलाबराय के अनुसार)
• पृथ्वीराजरासो चार संस्करण है:- अति लघु, लघु, वृहत्त एवं वृहत्तम।
• पृथ्वीराजरासो की सबसे पुरानी प्रति बीकानेर के राजकीय पुस्तकालय में मिली है।(कुल 3 प्रतियां )
• पृथ्वीराजरासो रासो काव्य परंपरा का तो है ही इसमें चरित्र काव्य, कथा काव्य आख्यायिका आदि के भी लक्षण मिलते हैं।
• पृथ्वीराजरासो की कथा चंद ने गोरी(दुसरी पत्नी)से कही थी।गोरी प्रश्न करती और चंद उत्तर देते थे।
• पृथ्वीराजरासो की रचना :- शुक- शुकी संवाद के रूप में हुई।( आ . हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार )
• आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार- “जैसे कादंबरी के संबंध में प्रसिद्ध है कि उसका पिछला भाग बाण के पुत्र ने पूरा किया वैसे ही रासो के पिछला भाग का भी चंद के पुत्र जल्हन द्वारा पूर्ण किया जाता है।”( शहाबुद्दीन गोरी द्वारा पृथ्वीराज को कैद करके ले जाया गया तब चंद भी कुछ दिनों बाद कुछ वही गये) कहा जाता –
” पुस्तक जल्हण हत्थ है चलि गज्जन नृपकाज।”
• पृथ्वीराजरासो को बिल्कुल अनैतिहासिक ग्रन्थ कहा- गौरी शंकर हीराचंद ओझा
• पृथ्वीराजरासो को अप्रमाणित घोषित करने वाले – डॉ. बूलर(1875ई. मे रॉयल एशियाटिक सोसाइटी को)
• पृथ्वीराजरासो को अप्रमाणित मानने वाले विद्वान:-
◆ Short Trick :- मुरारि श्यामदेव और रामकुमार
शुक्ल ने अमृत मोती बूलर और ओझा को रासो की
अप्रमाणिकता के लिए दिया।
1. मुरारिदीन (मुरारि)
2. कविराज श्यामलदास(श्याम)
3. मुंशीदेव(देव)
4. डॉ.रामकुमार वर्मा(रामकुमार)
5. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल(शुक्ल)
6. अमृतशील(अमृत)
7. मोती लाल मेनारिया(मोती)
8. डॉ.बूलर (बूलर)
9. डॉ.गौरीशंकर हीराचन्द ओझा(ओझा)।
• पृथ्वीराजरासो को प्रमाणित मानने वाले पाश्चात्य विद्वान:-
◆ Short Trick – 1 :- कर्नल वीप्स ग्राउज एवं
रूडोल्फ ने तासी को ग्रियर्सन से मिलाया।
(पाश्चात्य विद्वान)
1. कर्नलटॉड (कर्नल)
2. जॉन वीप्स (वीप्स)
3. एफ.एस.ग्राउज (ग्राउज)
4. रूडोल्फ हार्नली (रूडोल्फ)
5. गार्सा द तासी (तासी)
6. जार्ज ग्रिसर्यन (ग्रियर्सन)
• पृथ्वीराजरासो को प्रमाणित मानने वाले भारतीय विद्वान:-
◆ Short Trick – 2 :- मिश्रबन्धु व अगरचन्द ने
श्याम,मोहन विष्णु,बिहारी एवं दशरथ के मथुरा एवं
अयोध्या में दर्शन किये।
1. मिश्रबन्धु (मिश्रबन्धु)
2. अगरचन्द नाहट (अगरचन्द)
3. डॉ श्यामसुन्दरदास (श्याम)
4. कविराजमोहन सिंह (मोहन)
5. मोहनलाल विष्णुलाल पाण्ड्या (मोहन विष्णु)
6. विपिन बिहारी त्रिवेदी (बिहारी)
7. डॉ.दशरथ वर्मा (दशरथ)
8. पं.मथुरा प्रसाद (मथुरा)
9. अयोध्यासिंह उपाध्याय (अयोध्या)
• पृथ्वीराजरासो को अर्द्ध प्रमाणित मानने वाले विद्वान:-
◆ Short Trick :- हजारी सुनीति मुनि
1. आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी(हजारी)
2. डॉ.सुनीति कुमार चटर्जी (सुनीति)
3. मुनिजिन विजय(मुनि)
•
3. परमालरासो(आल्हा खण्ड)
[Trick :- पर जग ]
• रचनाकार – जगनिक
• समय – 13वीं शताब्दी।
• जगनिक महोबा नरेश परमाल के दरबारी कवि उनका उपस्थित काल :- 1173 ई.
• विषय :- महोबा नरेश परमाल तथा उनके सामंत आल्हा और उदल के वैयक्तिक शौर्य का वर्णन।
• गेय काव्य परम्परा का प्रबन्धकाव्य।
• प्रमुख रस – वीर रस (दूसरी रचना वीर गीत मे लिखी गयी थी।इससे पहले वीर गीत बीसलदेवरासो लिखा गया था।)
• रचना:- उत्तर भारत में बड़ी लोकप्रिय रही ।
• पृथ्वीराज की मृत्यु के 11 वर्ष बाद महोबा का पतन।
• परमाल रासो को आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नोटिस मात्र ग्रंथ माना है
• इसको लेखबद्ध करने का सबसे प्रथम :- चार्ल्स इलियट(1864 ईस्वी में अनेक भाटों की सहायता से फर्रुखाबाद में लिखवाया)
• मि. वाटर फील्ड ने आल्हखंड को पृथ्वीराज रासो का एक भाग मात्र माना है।
• आल्हा खंड में पुनरुक्ति की भरमार है [यह दोष है] (रामकुमार वर्मा के अनुसार)
• पृथ्वीराज रासो का पैटर्न महाकाव्यात्मक है तो आल्हाखंड गेयात्मक।
• आल्हखंड में 52 छोटी – बड़ी लड़ाई का वर्णन है।
• युद्ध के मुख्य कारण तीन:- विवाह,प्रतिशोध की भावना,लूट ।
• पृथ्वीराज रासो के विवाह में अनुराग का भी रंग है किंतु आल्हा खंड में विवाह युद्ध का निर्मित है।
• जगनिक ने परमाल पक्ष के लोगों को पांडवों का अवतार कहा, तो पृथ्वीराज पक्ष के लोगों को कौरवों का।
• जार्ज ग्रियर्सन ने बिहार में और विसेट स्मिथ ने बुंदेलखंड में आल्हखंड के कुछ भागों का संग्रह किया है ।
• इस रचना को अंग्रेज चार्ल्स इलियाट ने आल्हा लोग(भाटों) गायकों से संग्रहित करके 1865 मे प्रकाशित करवाया गया था। इसमे आल्ह एवं उदल के युद्धो एवं वीरता का वर्णन है। इस रचना का दूसरा नाम आल्ह खण्ड है।
• डॉ.श्याम सुन्दरदास की मान्यता है कि जिन प्रतियों के आधार पर यह संस्करण सम्पादित हुआ है उनमे यह नाम नही है।उनमे इसको चन्द्रकृत पृथ्वीराज रासो का महोवा खण्ड लिया गया है। किन्तु वास्तव मे यह पृथ्वीराज रासो का महोवा खण्ड नही है।
• मिस्टर इलियट के अनुरोध से मि.डब्ल्यू वाटर फील्ड ने उनके द्वारा संग्रहीत आल्हा खंड का अंग्रेजी अनुवाद किया।
जिसका संपादन जार्ज ग्रियर्सन ने 1923ई. में किया। मि.वाल्टर फील्ड का अनुवाद कलकत्ता रिव्यू में सन् 1874-1876 में ‘लाइन लाख चेन’ या ‘दि मेरो फ्यूड’ म के नाम से प्रकाशित हुआ था।
• जार्ज ग्रियर्सन के मतानुसार “आल्हा खंड रचना रासो से बिल्कुल भिन्न है।आल्हा खंड रासो के महोबा खंड कथा से साम्य रखता है, पर उसकी रचना बिल्कुल स्वतंत्र है।”
• “आल्हा उत्तर प्रदेश के बैसवाड़ा,पूर्वांचल तथा मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के निरंतर पीढ़ी – दर – पीढ़ी गाया जाता रहा है। लोक कंठ में बसे इस लोकप्रिय युद्ध काव्य (बैलेड) को 1865ई. में फर्रुखाबाद के तत्कालीन जिलाधीश चार्ल्स इलियट ने अनेक भाटों की सहायता से लिपिबद्ध कराया था।” (डॉ.बच्चन सिंह के अनुसार)
• युद्ध में विशेष स्थानों की बनी तलवारों,भालों और बर्छियों यो का प्रयोग नहीं होता,जाइ से भी काम लिया जाता है, जाई के काम में स्त्रियां माहिर है। नैनागढ़ के सोनारानी, पथरीगढ़ की श्यामा,भक्तिन, नरवरगढ़ की हिरिया मालिन,भाड़ो की विजया जाइ की अचूक मार करती है। वे पूरी सेना को तन्द्रहास या पत्थर बना सकती थी।(डॉ.बच्चन सिंह के अनुसार)
• पंक्तियां :-
1. आधे मड़ए भावरि घूमै, आधे झमि चलै तरवारि।
2. सदा तैरैया न बनफूले, यारों सदा न सावन होय। स्वर्ण मडैया सब काहू को, यारों सदा न जीवै कोय।।
3. अररर गोला छूटन लागे, सर सर तीर रहे सन्नाय।गोला लागै जेहि हाथी के, मानो चोर सेंध ह्वै जाय।।
4. दस दस रूपया के नौकर है,नाहक डरिहौ मुड़ कटाय।
हम तुम खेलै समर भूमि में दुह में एक आँकु रहि
जाय।।
4. खुमानरासो
• Trick :- खुद
• रचनाकार – दलपति विजय(दौलत विजय भी कहा जा सकता है।)
• नायक – खुमान द्वितीय (मेवाड के राजा)
• समय – 9वीं शताब्दी(आ.शुक्ल के अनुसार)
17 वीं शताब्दी (डॉ. मोतीलाल मेनारिया के अनुसार)
• छन्द – 5000 छन्दों में रचना की।
• वीर गाथा या जयकाव्य का सबसे प्रथम ग्रंन्थ( डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार)
• प्रमुख भाषा – राजस्थानी
• प्रतिपाद्य राजशस्ति
• यह ग्रन्थ की प्रामाणिक हस्तलिखित प्रति पूना संग्रहालय में उपलब्ध है।
5.हम्मीररासो
trick – हमशा
• रचनाकार – शांरगधर
🌺 🌻शारंगधर का परिचय 🌻🌺
• शारंगधर का आयुर्वेद का ग्रंथ प्रसिद्ध है।
• यह अच्छे कवि और सूत्रकार भी थे।
• इन्होंने शारंगधर पद्धति के नाम से एक सुभाषित संग्रह भी बनाया और अपना परिचय भी दिया है।
• रणथम्भौर के सुप्रसिद्ध वीर महाराज हम्मीरदेव के प्रधान सभासदों में राघवदेव थे।
• राघव दास के तीन पुत्र- भोपाल, दामोदर, देवदास।
• दामोदर के तीन पुत्र – शारंगधर, लक्षमीधर,कृष्ण।
• शारंगधर के ग्रंथों का समय – वि. स. 14वीं शताब्दी का अंतिम चरण
• शारंगधर पद्धति में बहुत से शाबर मंत्र और भाषा – चित्र – काव्य दिये गये है। जिनमें बीच-बीच में देश भाषा के वाक्य आये हैं ।
• शारंगधर ने ‘हम्मीररासो’ नामक एक वीर गाथा काव्य की भी रचना की।
• कुल छन्द – 8 छन्द(प्राकृत पैंगलम् मे प्राप्त हुए)।
• समय – 9वी शताब्दी (आ.रामचन्द्र शुक्ल)
• इस रचना को जज्जल कवि की रचना मानते है – राहुल सांस्कृत्यायन
• प्रमुख भाषा – अपभ्रंश
• देशी भाषा का वीरगाथात्मक महाकाव्य बताया है।
• यह अनुपलब्ध है।
• इसके विषय मे आ.रामचन्द्र शुक्ल का यह अभिमत है ’‘प्राकृत पिंगल सूत्र मे कुछ पद्य असली हम्मीररासो के है।
🌺🌻 जज्जल कवि 🌻🌺
• प्रबंध चिंतामणी में जज्जल नाम पर विद्वानों के अलग – अलग विचार दिये।
• 1. जज्जल को जयचंद्र सूरी (हम्मीर विजय में) ने ‘पार्षद’ माना है।
• 2. जज्जल को विद्यापति (पुरुष परीक्षा में) ने ‘योद्धा’ माना है।
• 3. जज्जल को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘पात्र या मंत्री’ माना है ।
• 4. जज्जल को वासुदेव शरण अग्रवाल ने ‘मंत्री’माना है।
• 5. जज्जल को डॉक्टर बच्चन सिंह ने ‘मंत्री’माना है।
• 6. जज्जल को राहुल सांकृत्यायन ने ‘कवि’ माना है।
• 7. जज्जल को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘कवि’ माना है।इन्होंने जज्जल का समय 13वीं शती माना।
6.विजयपालरासो
• Short Trick :- विजय ना
• रचनाकार – नल्ल सिंह(विजयपाल के दरबारी कवि)
• नल्ल सिंह का रचना काल – वि.स. 1100(1043ई.)
• समय – 1293ई.
• वीर रसात्मक काव्य
• कुल छन्द – 42 छन्द
जयचंदप्रकाश
• Short Trick :- जय भट्ट
• रचनाकार – भट्ट केदार (संवत् – 1224)
• समय – 1168ई.
• विषय कन्नौज के अधिपति जयचंद की वीर गाथा का गाना
• इस रचना के बारे में जानकारी राठौरां री ख्यात(लेखक- सिघायच् दयाल दास)में मिलती है।
• जयचंद्र प्रकाश को महाकाव्य मानने वाले कवि:- आचार्य रामचंद्र शुक्ल, रामकुमार वर्मा और डॉ. बच्चन सिंह ।
सुन्दर जानकारी
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