रीतिमुक्त काव्य की प्रवृत्तियां(Rītimukta kavy ki pravartiya)
?रीतिमुक्त काव्य की प्रवृत्तियां ?
? रीतिमुक्त काव्यधारा अपने युग में रची जा रही कविता की प्रतीक्रियात्मक कविता है। यह कविता काव्य शास्त्रीय विधि-विधानों एवं दरबारी संस्कृति से पराङ्मुख होकर रची गई है,इसीलिए इसे रीतिमुक्त कविता कहते हैं।
इस कविता में प्रेमभावना की मस्ती है और इसलिए कुछ समीक्षाकों ने इसे स्वच्छंद काव्यधारा भी कहते हैं।
1. प्रणय भावना ।
2. सौंदर्य निरूपण।
3. श्रृंगार रस का उदात्त चित्रण ।
4. चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति का अभाव ।
5. तीव्र एकांतिक प्रेम का निरूपण ।
6. वासनोन्मुखता का अभाव।
7. प्रेम का वर्णन भी दूती या सखियों के होकर आत्मा की पुकार एवं प्रेम की आंतरिक भावना के रूप में।
8. विरहानुभूति की गहन व्यंजना।
9. भावावेग का प्रमुख गुण ।
10. प्रकृति चित्रण।
11. भक्ति भावना।
12. मुक्ति काव्य भावना ।
13. अनुपम लाक्षणिक भावना।
14. शुद्ध एवं सरस साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग।
15. स्वानुभूति प्रेम की अभिव्यक्ति।
16. रीति स्वच्छंदता ।
17. ब्रजभाषा में विशुद्ध एवं प्रौढ़ता के साथ माधुर्य फारसी शब्दों का प्रयोग ।
18. कला पक्ष के स्थान पर भाव पक्ष का जोर।
19. प्राचीन काव्य परंपरा का त्याग।
20. सरल मनोहारी योजना एवं सटीक – प्रतीक विधान।
21. प्रेम की पीर फारसी काव्यधारा की वेदना की प्रवृत्ति के साथ सूफी कवियों से ग्रहण की।
22. भावप्रधान संयोग पक्ष का मार्मिक वर्णन ।
23. श्रीकृष्ण की लीला का प्रभाव।
24. अलंकार की प्रवृत्ति पांडित्य का प्रदर्शन ।
25. मुहावरे और लोकोक्तियों के विधान से स्वाभाविकता।
26. रीतिमुक्त कवियों की प्रेम व्यंजना:-
* परंपरागत नायिका भेद प्रणाली का परित्याग ।
* अशरीरी मानसिक प्रेम।
* स्वच्छंद नायक – नायिका ।
* एकांतिक प्रेम की साधना।
* वियोग का प्राधान्य।

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