रीति काल की प्रवृत्तियां(riti kal ki pravartiya)

                      🌺रीति काल की प्रवृत्तियां 🌺

1. रीति निरूपण ।

2. श्रृंगारिकता।

3. श्रृंगार रस की प्रधानता।

4. अलंकार का प्राधान्य- पांडि्त्य प्रदर्शन हेतु अलंकारों का चमत्कारों प्रयोग।

5. काव्य रूप- रसिकता प्रधान, दरबारी वातावरण में चमत्कार, मुक्तक काव्य शैली।

6. वीर रसात्मकता काव्यों का प्रणयन।

7. आश्रयदाताओं की प्रशंसा।

8. जीवन दर्शन।

9. ब्रजभाषा – इस युग की प्रमुख साहित्यिक भाषा ।

10. नारी के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण।

11. लक्षण ग्रंथों का निर्माण।

12. कलापक्ष की प्रधानता।

13. दोहा छंद की प्रधानता।

14. नीति एवं उपदेशपरक काव्य।

15. रीतिमुक्त काव्यधारा।

16. सतसई परंपरा की पुनरुद्धार।

17. दोहे के अलावा सवैया( श्रृंगार रस के अनुकूल) और कवित्त (वीर रस के अनुकूल) रीतिकवियों के प्रिय छन्द थे ।

18. आचार्यत्व का प्रदर्शन- कवि कर्म और आचार्य कर्म एक साथ चल रहे हैं।

19. वीर काव्य गौणरूप से वीरतापरक रचनाए हुई।

 

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