🌺लुईपा का परिचय🌺
* लुईपा को तंजूर में भांगाली कहा गया है जिसके आधार पर म.म. हरप्रसाद शास्त्री तथा डॉ. विनीयतोष भट्टाचार्य इन्हें राठ देश के निवासी बंगाली कहते हैं किंतु राहु सांकृत्यायन ने भगांला से भागलपुर का प्रदेश का अर्थ लिया है। वे इन्हे मगधवासी कहते हैं। राजा धर्मपाल के दरबार में कायस्थ बताते हैं ।
* तारा नाथ ने लुईपा को ओडियान के राजा इंद्रभूति के दरबार में कायस्थ बताते है।
* लुईपा मछुवे आवे थे ।(सुम्प म्खन पो के अनुसार)
* लुईपा को योगिनी सहचर्या का प्रवर्तक तारा नाथ ने माना।
* लुईपा उड़ीसा के राजा दरीबा के गुरु थे।( तारा नाथ के अनुसार)
* लुईपा का शिष्य दारिकपा थे तथा लुईपा ने उड़ीसा आकर दारिकपा को दीक्षा दी।( म . म .हरप्रसाद शास्त्री के अनुसार )
* लुईपा का समय-: संवत् 830 के आसपास ।
* लुईपा के गीतों की पंक्तियां –
क्राआ तरुवर पंच बिडला।चंचल चीए पइठो काल।
दिट करिअ महा सुह परिमाण।लुइ भरमर गुरू पुच्छिब अजाण।।
* राजा धर्मपाल के शासन काल में कायस्थ परिवार मे उत्पन्न हुए थे।
* शबरपा ने इन्हें अपना शिष्य बनाया था ।
* लुईपा की साधना का प्रभाव देखकर उड़ीसा के तत्कालीन राजा तथा मंत्री इनके शिष्य हो गए थे।
* 84 सिद्धों में लुईपा का सबसे ऊंचा स्थान माना जाता है ।
* लुईपा कविता में रहस्यता की भावना की प्रधानता है।