◆ वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रवर्तक – कुन्तक
◆ वक्रोक्ति को शब्दालंकार माने वाले विद्वान :-
Trick – मम्मट को रुद्रट की वक्रोक्ति शब्दालंकार पर विश्वास है।
• मम्मट
• रुद्रट
• विश्वनाथ
◆ वक्रोक्ति को अर्थालंकार माने वाले विद्वान :-
Trick – अप्पय दीक्षित ने वामन और विद्यानाथ को वक्रोक्ति को अर्थालंकार के रूपों को आनंद पूर्वक समझाया।
• अप्पय दीक्षित
• वामन
• विद्यानाथ
• रूप्यक
• आनन्दवर्द्धन
◆ भामह :- अतिशयोक्ति एवं सब अलंकारो का अनिवार्य तत्व
◆ दण्डी :- स्वाभावोक्ति वक्रोक्ति
◆ आ. भोजराज :- वक्रोक्ति, रसोक्ति,स्वभावोक्ति
◆ कुन्तक :- वैदग्ध भंगी भणिति ही वक्रोक्ति है।
( अर्थात् कवि कर्म कौशल में उत्पन्न वैचित्र्यपूर्ण कथन को)
वैदग्ध्य पूर्ण शैली से कथन करने को ही वक्रोक्ति कहते है।
जो काव्य तत्व किसी कथन में लोकोत्तर चमत्कार उत्पन्न कर दे उसका नाम वक्रोक्ति है।
◆ कुन्तक के अनुसार – ”वैदग्ध भंगी भणिति को वक्रोक्ति है।”
• वैदग्ध का अर्थ – कुशल कवि व्यापार
• भंगी का अर्थ – चमत्कार तथा चारुता
• भणिति का का अर्थ – कथन का ढंग(कवि कथन या उक्ति)
• वक्रोक्ति में तीनों तत्वों ( वैदग्ध,भंगी और भणिति) की उपस्थिति आवश्यक है।
◆ शब्दालंकार :-
1. यमक अलंकार
2. श्लेष अलंकार
3. अनुप्रास अलंकार
4. वक्रोक्ति अलंकार
5. पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
◆ अर्थालंकार :-
1. रूपक अलंकार
2. विभावना अलंकार
3. सन्देह अलंकार
4. असंगति अलंकार
5. उपमा अलंकार
6. उत्प्रेक्षा अलंकार
7. भ्रांतिमान अलंकार
8. विरोधाभास अलंकार
◆ कुन्तक के वक्रोक्ति के छः भेद है :-
• कुन्तक ने वक्रोक्ति के कुल 38 उपभेद किये है।
• कुन्तक ने अपने ग्रंथ वक्रोक्ति जीवित में :-
प्रथम उन्मेष में – वक्रोक्ति के छः भेदों का सामान्य उल्लेख ।
द्वितीय उन्मेष में – वर्ण विन्यास व पद पूर्वाह वक्रता का विस्तार से वर्णन।
• कुन्तक के वक्रोक्ति के छः भेद के नाम:-
1. वर्ण विन्यास वक्रता (वर्ण)
2. पद पूर्वार्द्ध वक्रता (पद पूर्वार्द्ध)
3. पद परार्ध वक्रता(पद परार्ध)
4. वाक्य वक्रता(वाक्य)
5. प्रकरण वक्रता (प्रकरण)
6. प्रबंध वक्रता(प्रबंध)
● वर्ण विन्यास वक्रता :-
• वर्णों के विन्यास पर आधारित
• वर्ण विन्यास वक्रता के भेद :-
1. शब्द अलंकार में विशेषतः यमक व अनुप्रास अलंकार
2. ओजगुण ( रकार, ड्क, ञ्च,ण्ट आवृत्ति)
3. द्वित्व रूप में प्रसाद गुण
4. उपनागरिक का आदि वृत्तियाँ
5. वैदर्भी,गौडी,लाठी रीति
6. वीर रस,वीभत्स रस, रौद्र रस (ओजगुण में)
● पद पूर्वार्द्ध वक्रता :-
• पद पूर्वार्द्ध वक्रता के भेद
1. रूढ़ी वैचित्र्य वक्रता – अर्थान्तर वक्रमिता वाच्यध्वनि अत्यंत तिरस्कृत वाच्यध्वनि
2. पर्याय वक्रता(पर्यायवाची और समानार्थी शब्द) परिकर एवं सदृश्यअर्थालंकार
3. उपचार वक्रता – प्रस्तुत अप्रस्तुत के आरोप द्वारा (अन्योक्ति अलंकार)
4. विशेषण वक्रता
5. सवृति वक्रता (सर्वनाम)
6. वृत्ति वक्रता (समास, तद्धित एवं कृत)
7. लिंग वैचित्र्य वक्रता
8. क्रिया वैचित्र्य वक्रता
● पद परार्ध वक्रता
• पद परार्ध वक्रता के भेद:-
1. काल
2. कारक
3. संख्या /वाचन
4. पुरुष (प्रथम, मध्यम, उत्तम)
5. उपग्रह( परस्मैपद और आत्मनेपद,संस्कृत में प्रयोग )
6. प्रत्यय ,उपसर्ग, निपात
● वाक्य वक्रता
• वाक्य वक्रता के भेद :-
1. सहजा- स्वाभाविक शोभा जैसे – वयः संधि नारी के अंगो का सौंदर्य ।
2. अर्थालंकारों का प्रयोग।
● प्रकरण वक्रता
• कथा प्रसंग
• प्रकरण वक्रता के भेद :-
1. भावपूर्ण स्थिति की उद्भावना – पात्रों का चरित्र
2. उत्पाद्य लावण्य- ऐतिहासिक कथावस्तु अविद्यमान की कल्पना। विद्यमान का संशोधन। प्रमुख कथा एवं प्रासंगिक कथाओं ।
3. किसी एक प्रकरण का अत्यंत मनोहर चित्रण।
4. रोचक प्रसंगों का विशेष विस्तार से वर्णन।
5. अप्रधान किंतु सुंदर प्रसंग की उद्भावना।
6. गर्भाक – नाटक का एक दृश्य अंक । नाटक में दिखाया जाने वाला दूसरा दृश्य
7. विभिन्न प्रकरणों की परस्पर अन्विति( प्रबंध काव्य)
● प्रबंध वक्रता
• महाकाव्य, नाटक
• प्रबंध वक्रता के भेद :-
1. मूल रस परिवर्तन
2. प्रकरण विशेष पर कथा की समाप्ति
3. कथा के मध्य में ही किसी अन्य कार्य द्वारा प्रधान कार्य की सिद्धि
4. नायक द्वारा अनेक फलों की प्राप्ति
5. प्रधान कथा द्योतक नाम
6. एक विषय में संबंध विलक्षण प्रबन्धता
◆ महत्वपूर्ण बिंदु
1. कुंतक का वक्रोक्ति संप्रदाय आनंदर्द्धन के ध्वनि संप्रदाय के विरोध में ही उत्पन्न हुआ।
2. कुंतक ध्वनि विरोधी थे अपने विरोध की पुष्टि के लिए उन्होंने वक्रोक्ति सिद्धांत की स्थापना की।
3. वक्रोक्ति का सर्वप्रथम शास्त्रीय विवेचन करने वाले आचार्य भामह
4. वक्रोक्ति और अतिशयोक्ति को पर्याप्त मानने वाले आचार्य भामह और दंडी
5. वक्रोक्ति सिद्धांत की महत्वपूर्ण उपलब्धि – कलावाद की प्रतिष्ठा
6. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अभिव्यंजनावाद को वक्रोक्तिवाद का विलायती उत्थान का था।
7. भामह के अनुसार वक्रोक्ति का मूल तत्व :- शब्द एवं अर्थ की वक्रता का चमत्कार
8. भामह ने अलंकार को काव्य का सर्वस्व मानते हुए वक्रोक्ति को उसके प्राण स्वीकार किया है।
9. आचार्य दंडी वक्रोक्ति को अलंकार का मूल मानते हुए ,समस्त वाङ्मय को दो भागों (स्वभावोक्ति और वक्रोक्ति) विभाजित किया है ।
10. वक्रोक्ति और अतिशयोक्ति को पर्याप्त मानने वाले आचार्य :- भामह और दण्डी
11. रुद्रट ने वक्रोक्ति के दो भेद (श्लेष वक्रोक्ति और काकु वक्रोक्ति) किये है।
12. वक्ता द्वारा भिन्न अर्थ में कही गई बात को श्रोता उससे भिन्न अर्थ में ग्रहण करें उसे श्लेष वक्रोक्ति कहते हैं
13. जहां पर गले की काकली से स्वर का विशेष स्वरुप व्यक्त हो,उसे काकु वक्रोक्ति कहते हैं।
14. वक्रोक्ति सिद्धांत की महत्वपूर्ण उपलब्धि :- कलावाद की प्रतिष्ठा
15. भारतीय काव्यालोचन के इतिहास में सर्वप्रथम कलावाद की प्रतिष्ठा वक्रोक्ति सिद्धांत के द्वारा हुई।
16. आचार्य आनंदवर्धन ने वक्रोक्ति को अलंकार विशेष तथा अलंकार सामान्य दोनों रूपों में स्वीकार किया है।
17. आचार्य वामन ने वक्रोक्ति को सामान्य अलंकार न मानकर उसे विशिष्ट अलंकार के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
18. आचार्य दंडी वक्रोक्ति को सामान्य अलंकार माना है।
19. आ. भामह ने लोकातिकान्तगोचर अर्थात लोक व्यवहार से अतिशय भिन्न उक्ति को वक्रोक्ति कहा है।
20. विशिष्ट अर्थ को कहने के उद्देश्य से लोकोत्तर अर्थ का बोध जो वचन है उसे अतिशयोक्ति कहते हैं (आ. भामह के अनुसार)
21. आचार्य शुक्ल के मत से वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद में तुलना का श्रीगणेश हुआ।
क्रम संख्या |
वक्रोक्तिवाद |
अभिव्यंजनवाद |
1. |
इसका संबंध वक्रता से है |
इसका संबंध केवल उक्ति से है |
2. |
प्रवर्तक – कुंतक |
प्रवर्तक- क्रोचे |
3. |
साहित्यवाद |
एक दर्शनशास्त्रीय दृष्टि |
4. |
कवि कौशल प्रक्रिया |
एक आध्यात्मिक |
5. |
इसमें वस्तुओं की उक्ति केवल कवि- कौशल में पृथक सत्ता मानी |
इसमें वस्तु और उक्तिको एक माना |
6. |
इसमें ब्राह्य या शाब्दिक अभिव्यक्ति की प्रमुखता |
इसमें ब्राह्य अभिव्यक्ति गौण(इसमें मानसिक एवं सूक्ष्मआध्यात्मिक क्रिया ही सर्वस्व है। ) |
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