वर्ण रत्नाकर(Varna Ratnakar)का परिचय

रचनाकार – ज्योतिरीश्वर ठाकुर(13वी शताब्दी)

• रचनाकाल – 14 वीं शताब्दी का पूर्वाद्धर् ( सुनीति कुमार के अनुसार)

आठ कल्लोलो (अध्यायों में)

मैथिली का विश्वकोश

मैथिली गद्य की सर्वप्रथम रचना

• इसमे लेखक ने हिन्दू दरबार और भारतीय जीवन का यथार्थ चित्रण किया गया है।

• इसमें कुल 8 कल्लोल है:- नगर वर्णन,नायक का वर्णन,आस्थान वर्णन,ऋतु वर्णन ,प्रयाणक वर्णन,भट्टादि वर्णन, श्मशान वर्णन

• आठवां कल्लोल अधूरा है।

वर्ण रत्नाकर में मैथिली के प्राचीन रूप का पता चलता है तत्कालीन व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें न तो अपभ्रंश का व्याकरणिक ढांचा है और न कृत्रिम शब्दावली।(डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार)

• पंक्ति – ” पूर्णिमाक चान्द अमृत पूरल मुंह।श्वेत पंकजक दल।
भ्रमर बइसल अइसेन आबि, काजरक कल्लोल
अइसन भवुह…..”

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