विद्यापति(vidyapati) का जीवन परिचय

जन्म :- 1380 ई.

जन्म स्थान :- बिसपी गांव ,मधुबनी जिला,बिहार

• मृत्यु :- 1460ई. जनकपुर (नेपाल)

• विद्यापति का पूरा नाम:- विद्यापति ठाकुर

पिता का नाम :- गणपति ठाकुर (गंगा भक्ति तरंगिणी के रचनाकार )

माता का नाम :- हंसिनी देवी

• विद्यापति के दो विवाह हुए थे :-
पहली पत्नी से :- दो पुत्र हुए (नरपति ठाकुर और
हरपति ठाकुर)
दूसरी पत्नी से :- एक पुत्र और एक पुत्र हुए
(वाचस्पति ठाकुर और दूल्लहि पुत्री)

गुरु का नाम :- पं.हरि मिश्र(इनसे विद्या ग्रहण की)

• सहपाठी :- विख्यात नैयायिक जयदेव मिश्र उर्फ पक्षधर मिश्र

• बाल सखा एवं मित्र :- राजा शिव सिंह

प्रमुख आश्रयदाताओं के नाम :- महाराजा शिवसिंह एवं कीर्ति सिंह

उपाधि :- अभिनव जयदेव,महाकवि कोकिल,कवि शेखर ,कवि रंजन और कवि कंठहार,मैथिली कोकिल
स्वयं को खेलन कवि कहां है ।

• महाकवि, श्रेष्ठ गीतकार,रसिक कवि, बहुभाषी कवि।
• रससिद्ध कवि है और मूलतः श्रृंगारी कवि है।

हिंदी में गीत काव्य के प्रवर्तक कवि
हिन्दी में पद शैली के प्रवर्तक कवि
भक्तिकाल की समयावधि मे जन्म लेकर भी आदिकाल की श्रेणी मे रखा जाता है- विद्यापति को
आदिकाल मे श्रृंगार काव्य की प्रमुख रचना – विद्यापति की पदावली
नोट :- रासो मे श्रृंगार काव्य की प्रमुख रचना – बीसलदेव रासो

• विद्यापति की ख्याति का आधार :- पदावली

• भाषा :- संस्कृत, अवहट्ट, मैथिली

• विद्यापति के संबंध में महत्वपूर्ण मत :-
1. विद्यापति का संसार ही दूसरा है …..सारा संसार गुलाबमय है” (डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार )
2. “जिस रचना के कारण विद्यापति मैथिल कोकिल कहलाये वह इनकी पदावली है ।”(आ. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
3. “विद्यापति श्रृंगार रस का सिद्ध वाक् कवि है। “(डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा )
4. विद्यापति को रहस्यवादी सर्वप्रथम ग्रियर्सन ने कहा।

प्रमुख रचनाएं :-
1. कीर्ति लता (कीर्ति सिंह की वीरता ) भाषा – अवहट्ट
2. कीर्ति पताका (राजा शिव सिंह की वीरता) भाषा – अवहट्ट
3. विद्यापति की पदावली( मैथिली भाषा में )

अवहट्ट भाषा में रचित ग्रंथ दो ग्रंथ:- कीर्ति लता और कीर्ति पताका ।
1. कीर्ति लता:-
• कीर्तिलता को कहाणी भी कहते है।

• विद्यापति की प्रथम रचना

• रचनाकाल गणेश्वर की मृत्यु के बाद का है ,1380 (बाबूराम सक्सेना के अनुसार)

• कीर्ति लता की रचना के समय विद्यापति की आयु 20 वर्ष की थी ।

इसमें विद्यापति ने स्वयं को ‘खेलन कवि’ कहा है। खेलन का अभिप्रायः खिलाड़ी किशोर नहीं।यह विद्यापति की उपाधि है जो उन्हें सरस कविता लिखने के कारण प्राप्त हुई थी ।

• विषय:- महाराजा कीर्ति सिंह के राज्याभिषेक, युद्ध- विजय, युद्धारोहण आदि का वर्णन ।

पद्धति:- संवाद पद्धति(भृंगी शंका व्यक्त करती है तो भृंग उसके प्रश्नों के उत्तर देता है।)

  भृंग- भृंगी संवाद हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ने कहा

ग्रंन्थ के आरंभ में :– संस्कृत में मंगलाचरण के दो श्लोक है । एक श्लोक में कलयुग की दुरवस्था का वर्णन है। जिसमें बताया गया है कि इस युग में कविता बहुत है, सुनने वाले और रस ज्ञाता भी बहुत ही है परंतु दाता दुर्लभ है। दाता है कीर्ति सिंह । इसके उपरांत कवि अपनी विनीत दिखाता है और कहता है कि उसका कार्य ऐसा वैसा है परंतु यद्यपि दुर्जन उस पर हसेंगे तथापि सज्जन उसकी प्रशंसा करेंगे।

2. कीर्ति पताका :-
• महाराजा शिव सिंह के समय आ हुई ।

विषय :- राजा शिव सिंह की कीर्ति और यश का वर्णन।

ग्रंन्थ का आरंभ:- गणेश जी की स्तुति से।

हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार – “इस कृति में कई प्रकार के की भाषाएं हैं।गद्य में संस्कृत पदावली की अधिकता है। बीच-बीच में मैथिली की विभक्तियां व क्रियापद आते हैं। पद्य में दोहों और छप्पयों में अपभ्रंश के निकट जाने का प्रयास किया है परंतु हरिगीतिका आदि छंदों में मैथिली का पुट मिल जाता है। पद्यों में तद्भव का शब्दों का ही प्रयोग है किन्तु गद्य में तत्सम शब्दों की अधिकता है।”

मैथिली भाषा:- विद्यापति की पदावली
• नायक :- कृष्ण
• नायिका :-राधा
• काव्य रूप :- गेह मुक्तक
• वयःसन्धि की नायिका :- राधा
• प्रमुख रस :- श्रृंगार रस
• इस कृति की रचना के लिए विद्यापति ने जयदेव के गीत – गोविंद का अपना आदर्श स्वीकार किया है।

पदावली के पदों की संख्या :- 945( श्री नगेंद्र नाथ गुप्त के अनुसार )

सबसे प्रमाणित संग्रह :- श्रीविमान बिहारी मजूमदार एवं श्री नगेंद्रनाथ ने किया।
विद्यापति के पदों के तीन प्राचीन संग्रह प्राप्त होते हैं:-
1. एक संग्रह :– ताम्रपत्र लिखा जो मिथिला से प्राप्त हुआ। (विद्यापति के प्रपौत्र का लिखा हुआ ,इसमें 650 पद बचे हुए हैं )
2. दूसरा संग्रह :– हस्तलिखित प्रमाणित संग्रह नेपाल राज्य के पुस्तकालय में रखा गया है। (म. म. हरप्रसाद शास्त्री ने प्रथम इसे नेपाली दरबार के पुस्तकालय में देखा था , 300 पद)
3. तीसरा संग्रह:– राजतंरगिणी है, जो लोचन कवि द्वारा संग्रहित किया गया है। (लोचन ने लिखा है अपभ्रंश भाषा की रचना प्रथम विद्यापति ने की थी)

• विद्यापति की पदावली को विषय का दृश्य तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है :- (1.)भक्ति (2.)श्रृंगार (3.) विविध विषयक
• भक्ति विषयक पदों के अंतर्गत :- भगवान शिव शंकर, दुर्गा,गौरी,गंगा की स्तुतियां सम्मिलित है ।
• श्रृंगार पदों के अंतर्गत :- राधा – कृष्ण के विरह – मिलन हाव-भावों आदि का आकर्षण चित्रण

• रचनाए (विस्तार से):-
विद्यापति के कुल 14 ग्रंथों की रचना की, जिनमें 11 संस्कृत के, दो अवहट्ठ भाषा एवं एक मैथिली।

्र.सं.

ग्रंन्थ

भाषा

विषय

आज्ञायादेशसे

1.

भूपरिक्रमा

संस्कृत

इसमें बलराम के शापग्रस्त होने के बाद पर प्रायश्चित के दौरान विभिन्न तीर्थ स्थान पर उनके भ्रमण का बड़ाआकृष्ट वर्णनकियागया है।

राजा देव सिंह

2.

पुरुष परीक्षा

संस्कृत

किशोरों की नीति-  विषयक ज्ञान कराने के लिएगई।(इसकासंबंध कामशास्त्रवसामूहिकशास्त्र सेहै।) इसमें महमूद गजनी के लेकर विद्यापति के समय तक की विभिन्न घटनाओं का वर्णन।

महाराजा शिव सिंह

3.

लिखनावली

संस्कृत

नवीन अक्षरों का संस्कृत पत्र व्यवहार सिखाने के उद्देश्य से

बनौली के राजापुरादित्य

4.

विभागसागर

संस्कृत

इनमें संपत्ति के विभाजन के नियमोंकावर्णन

शिव सिंह के चचेरे भाई नरसिंह देव

5.

वर्षकृत्य(अन्यनामसधवाकृत्ययावर्षक्रिया)

संस्कृत

सधवा स्त्रियों के लिए

रानीलखिमा देवी

6.

गयात्तकलक

संस्कृत

गया जी के श्राद्ध करने की विधियों का वर्णन।

इस कृति के अंत में लेखक का नाम महामहोपाध्याय विद्यापति लिखा है।

7.

शैवसर्वस्वसार

संस्कृत

राजा भाव सिंह के लेकर रानी के समय तक के शासकों की वीरता

रानी विश्वासदेवी

8.

प्रमाण भूत पुराण संग्रह

संस्कृत

सर्वस्व सागर के वर्णित बातों की पुष्टि

9.

गंगावाक्यावली

संस्कृत

हरिद्वार से लेकर गंगासागर तक का गंगातटवर्ती तीर्थो,तीर्थ,गंगास्नान, गंगातट पर दिए गए दान आदि का महत्व के बारे में

रानीविश्वास देवी

10.

दानवाक्यावली

संस्कृत

दान दक्षिणा की व्याख्या और महिमा की अभिव्यक्ति

नरसिंह देव की रानी धीरमति

(धीरमति को ही समर्पित)

11.

दुर्गाभक्ति तरंगिनी (अंतिम रचना)

संस्कृत

भगवती दुर्गा की पूजा विधि एवं महत्व के प्रमाण सहित विवरण प्रस्तुत किया गया है।

महाराजा भैरव सिंह

12.

कीर्ति लता

(प्रथम रचना)

भाषा- अवहट्ट

रचनाकाल- गणेश्वर की मृत्यु के बाद का है 1380ई.(बाबूराम सक्सेना के अनुसार)

महाराजा कीर्ति सिंह के राज्याभिषेक, युद्ध- विजय, युद्धारोहणआदिकावर्णन

महाराजकीर्ति सिंह

13.

कीर्ति पताका

भाषा- अवहट्ट

महाराजा शिव सिंह कीर्तिवयश का वर्णन

महाराजशिव सिंह

14.

पदावली

भाषा- मैथिली

राधा कृष्ण के विरह मिलन हाव-भाव आदि का आकर्षण चित्रण

हेमचंद्र का जीवन परिचय 

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