शबरपा का परिचय(Shabarpa ka parichay)

 🌺शबरपा का परिचय(Shabarpa ka parichay)🌺

* शबरपा का जन्म -: 780 ईस्वी में,क्षत्रिय कुल में(डॉ. नगेंद्र के अनुसार)

* शबरपा को “नव सराय” नाम तारानाथ ने दिया।

* यह सरहपा की शिष्य परंपरा के तीसरे थे।

* भांगल या बंगाल देश के थे। (सुम्प म्खन पो के अनुसार)

* पूर्व भारत के एवं नर्तक जाति के (तारा नाथ के अनुसार )

* शबरों का सा जीवन व्यतीत करने के कारण शरबपा कहे जाने लगे ।

* शबरपा ने सरहपा से ज्ञान प्राप्त किया था।

* नागार्जुन से दीक्षा लेकर वे श्रीपर्वत में साधना करने चले गए थे।

* शबरपा की दो महामुद्राएं थी – लोकी और गुनी वे दोनों की साथ रहते थे । दोनों बहने थी और उनका चर्यानाम डाकिनी पद्मावती तथा ज्ञानावती था।

* शरबपा ने अद्वयवज्र को शिक्षा दी थी जिसके कारण राहुल सांस्कृत्यायन इनके नाम से दो सिद्ध मानते है।

* इनकी प्रसिद्ध पुस्तक -: चर्यापद

* माया – मोह का विरोध करके सहज जीवन पर बल देते है और उस को महासुख की प्राप्ति का मार्ग बतलाते हैं ।

* इनकी कविता की पंक्तियां :-
“हेरि ये मेरि तइला बाड़ी खसमे रामतुला
पुकड़ए सेरे कपासु कुटिला।”

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