शून्यवाद प्रवर्तक आचार्य नागार्जुन का परिचय(shoonyavad pravartak aachary Nagarjuna ka parichay)

🌺आचार्य नागार्जुन का परिचय 🌺

* शून्यवाद सबसे प्रबल प्रवर्तक आचार्य नागार्जुन(दूसरी शताब्दी तथा तीसरी शताब्दी के मध्य)

* नागार्जुन का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ – माध्यामिक शास्त्र

* नागार्जुन ने उत्पत्ति,गति, दुख,बंधन, मोक्ष आदि सभी धारणाओं की तर्क सहित परिक्षा कर यह सिद्ध किया है कि सभी में विरोध धर्मो की उपस्थिति है अतः सभी शून्य है।

* माध्यमिक पथ की ओर साधकों को प्रेरित करने के लिए आचार्य नागार्जुन ने शून्यता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।

* शून्य सिद्धांत का प्रतिपादन नागार्जुन ने “प्रतीत्य समुत्पाद” के सिद्धांत द्वारा किया।शून्यता वह है जो प्रतीत्य समुत्पाद द्वारा सिद्ध की जा सके । प्रतीत्य समुत्पाद के अर्थ – वह सिद्धांत जो प्रत्येक वस्तु को कारणों,हेतुओ द्वारा उत्पन्न मानता है ।
* नागार्जुन संसार के सभी वस्तुओं को शून्य मानता है। उनकी उत्पत्ति,स्वभाव, धर्म सब कुछ अकथनीय है। अतः वे शून्य है।

🌺 नागार्जुन का परिचय :-

* जन्म – दक्षिण भारत में(विर्दभ में)

* ब्राह्मण परिवार

* पिता का नाम – त्रिविक्रम

*  माता का नाम – सावित्री

* नागार्जुन ने माध्यमिक संप्रदाय की स्थापना की इस से शून्यवाद भी कहते हैं ।

* नागार्जुन का मुख्य ग्रंथ है – कारिका या माध्यमिक सूत्र( ग्रंथ में 400 कारिकायें)

* विज्ञानवाद का संस्थापक – मैत्रेय नाथ (समय- तीसरी ई. से चौथी शती ई. का ।

 

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