सरहपा का जीवन परिचय(sarahpa ka jeevan parichay)

                              🌺सरहपा का जीवन परिचय(sarahpa ka jeevan parichay)🌺

🌺सरहपा का समय :- 769 ई. या आठवीं शताब्दी में (राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार)

🌺 सरहपा की जाति ब्राह्मण थी।

🌺 सरहपा का जन्म :- पूर्व भारत के राज्ञी नामक नगरी में (सुम्पम्खन के अनुसार)

🌺 उड़ीसा( तिब्बती मुनि श्रुति के अनुसार )

🌺 सरहपा के अन्य नाम :- सरोरूहवज्र, सरोजवज्र,पद्म ,पद्म वज्र तथा राहुल भद्र (महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री ने सरहपा के नाम बताये।)

🌺 सरोरूहवज्र, सरोजवज्र नाम का प्रयोग अद्वयवज्र ने सरह के दोहों की टीका में किया है। उसी के आधार पर पद्म तथा पद्म वज्र भी सरह के नाम मान लिये गए है।

🌺 सिद्धि मे सरहपा ने एक बार शर बनाने वाली युवती को महामुद्रा बनाया था अतः उनका नाम चर्या नाम पर सरह या शरह हो गया ।

🌺 सरहपा के शिष्य होने के कारण शबरपा को भी लघु या नव सरह कहा जाता था।

🌺 सिद्धि प्राप्ति करने के लिए पूर्व उनका नाम राहुल भद्र था

🌺 सरहपा शैशवावस्था से ही वेद वेदांग में के ज्ञाता थे। मध्य – देश में जाकर इन्होंने त्रिपिटकों का अध्ययन किया ,बौद्ध धर्म में दीक्षा ली और नालंदा में आकर आचार्य रूप में रहने लगे (तारा नाथ के अनुसार)

🌺 उड़ीसा के एक आचार्य से इन्होंने मंत्र ज्ञान की दीक्षा ली ।

🌺महाराष्ट्र में एक शर बनाने वाले की कन्या के साथ महामुद्रा योग संपन्न कर सिद्धि प्राप्त की ।

🌺 सरहपा के द्वारा रचित ग्रंथ 32 बताये जाते हैं जिनमें “दोहाकोश ” हिंदी की रचनाओं में प्रसिद्ध है। सरहपा ने पाखंड और आडंबर का विरोध किया तथा गुरु सेवा को महत्व दिया है ये सहज भोग- मार्ग से जीव को महामुख की ओर ले जाते हैं।

🌺 सरहपा की भाषा सरल थी।

🌺 आक्रोश की भाषा का पहला प्रयोग सरहपा में दिखाई देता है ।

🌺 सरहपा नालंदा में छात्र भी थे और अध्यापक भी थे।

🌺 पानी और कुश को लेकर संकल्प करने वाले।

🌺 रात दिन अग्निहोत्र में निमग्नोन्मग्न रहने वाले।

🌺 घड़ी – घंट बजाकर आरती उतारने वाले।

🌺 मुड़- मुड़ाकर संन्यासी बनाने वाले।

🌺 नग्न रहने वाले ।

🌺 केशों को लुंचित करने वाले।

🌺 झुठे साधको की लानत – मलामत करने वाले।

🌺 सरहपा ने अंतस्साधना पर जोर और पंडितों को फटकारा :-
पंडित सअल सत्त बक्खाणइ।

देइहि रुद्ध बसंत न जाणइ।

अमणागमण ण तेन विखंडिअ।

तोवि णिलज्जई भणइ हउं पंडिअ।।

🌺 दक्षिण मार्ग को छोड़कर वाममार्ग ग्रहण का उपदेश:-
नाद न बिंदु न रवि न शशि मंडल। चिअराअ सहाबे मूकल।
उजू रे छॉंडि मा लेहु रे बंक। निअहि बोहि मा जाहु रे रंक।।

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