सिंदूर की होली नाटक( Sindur Ki Holi Natak)

  💐💐 सिंदूर की होली 💐💐

◆ नाटककार :- लक्ष्मीनारायण मिश्र

◆ प्रकाशन :-  1934ई.

◆ अंक :-  3 अंक

◆ दृश्य :- तीन
(पहला दृश्य :- 9 बजे का
दूसरा दृश्य :-  साध्यकाल का
तीसरा दृश्य  :- 10 बजे रात्रि का )

◆  दृश्य का स्थल :- डिप्टी कलेक्टर मुरारीलाल के बंगले की बैठक।(एक ही है)

◆ शैली:- पूर्वदीप्ती शैली

◆  समस्याप्रधान नाटक

◆ नाटक के पात्र :-

★ पुरुष पात्र :-
1. मुरारीलाल :-
● उम्र :- 40 वर्ष
● डिप्टी कलेक्टर,
● अन्याय के समर्थक, स्वार्थी,भ्रष्टाचारी
● मनोजशंकर के पिता की हत्या करने वाला (8 हजार रूपये के लिए)
● रजनीकांत के हत्या मामले  चालीस हजार रूपये लेने वाला।

2.  रजनीकांत (भगवंतसिंह का भतीजा ,उम्र 17-18 वर्ष)

3.  भगवंतसिंह(रजनीकांत का चाचा,रजनीकांत का हत्या करनेवाला)

4.  मनोज शंकर (मुरारीलाल के मित्र का बेटा)

5. माहिर अली (मुरारीलाल का मुंशी )

6. हरनन्दन सिंह

7. डाक्टर(चंद्रकला का चिकित्सक)

★ स्त्री पात्र  :-

1. मनोरमा :-
● उम्र :- 18 वर्ष
● 10 वर्ष की उम्र में विधवा हो गयी थी।
● विधवा महिला
● जो मुरारीलाल के साथ रहती है।
● मुरारीलाल प्रेम करता है।
● चंद्रकांता की विरोधी।

2. चन्द्रकान्ता :-
● नाटक की प्रमुख पात्रा
● उम्र :- 20 वर्ष
● 20 वर्ष की उम्र में विधवा हो गयी थी।
● मुरारीलाल की बेटी
● रजनीकान्त से प्रेम करती है।
● मृत रजनीकांत के हाथों अपनी माँग में सिंदूर भरकर उसकी विधवा बन जाती है।    

◆ नाटक का विषय :-

1. भ्रष्टाचारी कानून व्यवस्था
2. निस्वार्थ और आदर्श प्रेम
3. विधवा का चित्रण
4. जमीन – जायदाद को लेकर परिवारिक विवाद
5. निर्दोष की हत्या

◆ नाटक के महत्वपूर्ण कथन:-

(1.)  “मुझे उस बात का बड़ा दुःख है । मनोज जान जायेगा कि उसके पिता ने मेरी ही वजह से आत्महत्या की थी दस वर्ष का समय निकल गया अभी तक तो बात छिपी हुई है । लेकिन अगर किसी दिन खुल गई तो मेरे मुँह पर स्याही पुत जायेगी और फिर मैं किसी काम का नहीं रहूँगा।”( मुरारीलाल का कथन)

(2.) “आजकल की शिक्षा में शब्दों का खिलवाड़ खूब सिखलाया जाता”( मुरारीलाल ने चन्द्रकला से कहा)

(3.) “तुम उसके चचा हो उसके बाप के मामा के लड़के हो और तुमको भी उसकी चाल चलन पसन्द नहीं।” (भगवन्त सिंह ने हरनन्दनसिंह से कहा)

(4.) “जंगल में दो शेर नही रहते। कहाँर मेरे यहाँ काम करते हैं इसलिए उसके यहाँ भी करे ? दो दर्जा अंग्रेजी पढ़ ली अब कुएँ से पानी निकालने में लाज लगती है।”
(भगवन्तसिंह ने हरनन्दनसिंह से कहा)

(5.) “परिवार का योग्य व्यक्ति मरता है तो दुःख होता ही है लेकिन कोई करे तो क्या करे ? संसार मे कोई भी पूरे तौर पर सुखी तो रहने नहीं पाता। यही संसार की लीला है।”
(मुरारीलाल ने भगवन्तसिंह से कहा)

(6.) “बड़े – घरानों में ऐसे लड़के भी पैदा हो जाते हैं। लेकिन किसी तरह निबाहना ही पड़ता है। उसकी बुराई तो आपको छिपानी चाहिये । इसमे आपकी भी बुराई है।”(मुरारीलाल ने भगवन्तसिंह से कहा)

(7.) “इस शैतान की कार्रवाइयों से घबराकर साथ ही साथ हँसना और रोना मुझे तो नहीं भूल रहा है । कच्ची उम्र में गिरस्ती का बोझा पड़ गया।” (माहिर अली ने मुरारीलाल से कहा)

(8.) “संसार मे भलाई बुराई का भाव अब नहीं है।” (मुरारीलाल ने माहिर अली से कहा)

(9.) “आजकल का कानून ही ऐसा है। इसमें सजा उसको नही दी जाती जो कि अपराध करता है सजा तो केवल उसकी होती है जो अपराध छिपाना नहीं जानता। बस यही कानून है।” (मुरारीलाल ने माहिर अली से कहा)

(10.) “तुम्हारा व्यंग्य बड़ा निष्ठुर होता है। तुम्हारा हृदय इतना सूखा है, न मालूम उसमें कला की भावना कैसे जाग पड़ी ?” (चन्द्रकला ने मनोरमा से कहा)

(11.) “इसका मतलब कि कीचड़ में कमल नहीं उगना चाहिये । लेकिन जो स्वभाव है वह, कमल ताल के कीचड़ में उगेगा, लेकिन गंगा के बालू में नहीं। यही तो लोग नहीं समझते।”
(मनोरमा ने चन्द्रकला से कहा)

(12.)” चित्र इतना सजीव मालूम हो रहा है जैसे अभी हँस पड़ा है।….. चित्र का नाम क्या रखा है, तुमने। “यौवन के द्वार पर” । लेकिन इसका नाम होना चाहिये था “मृत्यु के द्वार पर”
(चन्द्रकला ने मनोरमा से कहा)

(13.) “चित्र में तो वह सदैव “यौवन के द्वार पर ” रहेगा। चित्र में तो वह मरा नही।”(मनोरमा ने चन्द्रकला से कहा)

(14.) “वह तो युग दूसरा था जब हृदय का रस संचित रहता था और या किसी ओर बह उठता था।” (चन्द्रकला ने मनोरमा से कहा)

(15.) “संसार की सोधी भाषा में जिस चीज़ को लोग सुख समझते है वह तो मुझे यही दो महीनों से मिल रहा है. समय पर स्वादिष्ट भोजन और सुख की नींद, सुन्दर वस्त्र , संसार का सुख तो इन्ही वस्तुओ में सीमित है।”(मनोरमा ने मुरारी लाल  से कहा)

(16.) “कानून और कला का साथ नहीं हो सकता न ? कानून दण्ड देगा, कला क्षमा करेगी। कानून सन्देह करेगा, कला विश्वास करेगी।”(मनोरमा ने मुरारीलाल  से कहा)

(17.) “सत्य का बना लेना इतना सरल होता तो फिर संसार से झूठ का नाम निकल जाता या कम से कम शराबी की शराब, हत्यारे की हत्या, चोर की चोरी यह सब कुछ सत्य हो उठता।”
(मनोरमा ने मुरारीलाल  से कहा)

(18.) “पुरुष आँख के लोलुप होते हैं, विशेषतः स्त्रियो के सम्बन्ध में, मृत्यु – शय्या पर भी सुन्दर स्त्री इनके लिये सब से बड़ा लोभ हो जाती है।”
(मनोरमा ने मुरारीलाल  से कहा)

(19.) “मैं तुम्हे चाहती हूँ तुम्हारे साथ एक प्रकार की आत्मीयता का अनुभव मैं करती हूँ.. लेकिन तुम जिस मोह में पड़ गये हो वह तो भयंकर है।”(मनोरमा ने मनोज शंकर से कहा)

(20.) “दशाश्वमेध घाट पर भिक्षुकों में एक –  एक टुकड़े के लिये द्वन्द चल पड़ता है वे सभी भूखे रहते हैं ज्ञान के लिये वहाँ लेशमात्र भी जगह नहीं है। उन्हीं भिक्षुको की तरह हो गई है तुम्हारी यह पुरुष जाति।”(मनोरमा ने मनोज शंकर से कहा)

(21.) “मैं विधवा हूँ इस ज्वालामुखी को यदि मैं कुछ समय के लिये छिपा भी लु तब भी मैं किस की बनु तुम्हारी या डिप्टी साहब को ?”(मनोरमा ने मनोज शंकर से कहा)

(22.) “पुरुष का सबसे बड़ा रोग स्त्री है और स्त्री का सब बड़ा रोग है पुरुष। यह रोग तो मनुष्यता का है।”(मनोरमा ने मनोज शंकर से कहा)

(23.)”तुम बाँसुरी बजाओगे।मैं चित्र बनाऊँगी । मै विधवा हूँ और तुम को भी विधुर होना होगा।”
(मनोरमा ने मनोज शंकर से कहा)

(24.) “किसी को गोली मारना यदि वीरता है तो गोली मार कर बाँसुरी बजाना तो वीरता से बढ़कर वीरता और महानता से बढ़कर महानता है । यदि यह मुझ से सम्भव हो सके तब मैं समझँगा कि मैं अपने से बड़ा हूँ… मनुष्य से बड़ा हूँ।”( मनोज शंकर ने मुरारी लाल से कहा)

(25.) “मनुष्य से बड़ा तो केवल देवता होता है।”(मुरारीलाल ने मनोज शंकर से कहा)

(26.) “चन्द्रकला के मन में कोई जगह नहीं बना सका इस लिये नहीं कि मुझ में पुरुषत्व न था.. या मुझ में वह कला वह कौशल न था जिससे एक और एक हजार चन्द्रकला आँचल पसारकर भीख माँगती हैं। मेरे पास केवल एक वस्तु न थी, रजनीकान्त को मुसकान में जो जादू था।”
(मनोज शंकर ने मुरारीलाल से कहा)

(27.) “प्रेम करना विशेषतः स्त्री के – लिये कभी बुराई नहीं स्त्री जाति की स्तुति केवल इसीलिये होती है कि वे प्रेम करती हैं प्रेम के लिए ही उनका जन्म होता है।”(मनोज शंकर ने मुरारी लाल से कहा)

(28.) “स्त्री चरित्र की सबसे बड़ी विभूति उसका सबसे बड़ा तत्व प्रेम माना गया है।”(मनोज शंकर ने मुरारी लाल से कहा)

(29.) “मनुष्य अपनी आदिम अवस्था में आज से कहीं अधिक स्वस्थ था…इसीलिये कि तब डाक्टर न थे । मनुष्य था, और शक्ति और जीवन का केन्द्र प्रकृति थी। स्वास्थ्य कृत्रिम साधनों और बोतल की दवाओं ने स्वास्थ्य की जड़ काट दी। स्वास्थ्य तो आप लोगों की आलमारियों में बन्द है… लेकिन यह बहुत दिन नहीं चलेगा । प्रकृति अपना बदला लेगी।”(मनोज शंकर ने डॉक्टर से कहा)

(30.) “न तो मेरा कोई अपना जीवन है और न अपना आदर्श ।”( मुरारीलाल का कथन)

(31.) “पुरुष के लिए प्रायश्चित्त करना पड़ता है – स्त्री को । स्त्री जीवन का सब से सुन्दर और कठोर से कठोर सत्य यही है । स्त्री इसीलिए दुखी है और पुरुष इसी को स्त्री का अधिकार समझता है और इसीलिए पुरुष और स्त्री के अधिकारों की अलग – अलग पैमाइश हो रही है।”(मनोरमा का कथन)

(32.) “शिव ने जैसे विष पचा लिया उसी तरह तुम भी इस बुराई को पचा लो इससे तुम्हारा पुरुषत्व दमक उठेगा।”(मनोरमा ने मनोज शंकर से कहा)

(33.) “सारा संसार मरता है। एक ओर मृत्यु हो रही है दूसरी ओर जन्म हो रहा है । यह कोई नई बात नही है।”(मनोज शंकर ने चंद्रकला से कहा)

(34.) “तुम्हारा आदर्श मेरे सामने है। तुम आठ वर्ष को अवस्था में विधवा हुई थीं और मैं आज बीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो रही हूँ। तुम्हारा निभ गया और मेरा नहीं निभेगा ?”
(चंद्रकला ने मनोरमा से कहा)

(35.) “तुम्हारी – मजबूरी पहले सामाजिक और फिर मानसिक हुई, मेरी मजबूरी प्रारम्भ में ही मानसिक हो गई।”(चंद्रकला ने मनोरमा से कहा)

(36.) “पुरुष की चार हाथ की सेज में ही हमारा संसार सीमित हैं। पुरुष ने स्त्री की कमजोरी को उसका गुण बना दिया और वह उसी प्रशंसा में -सदैव के लिये आत्म-समर्पण कर बैठी। दूसरो की रक्षा मे हम अपनी रक्षा नहीं कर सकीं।(चंद्रकला ने मनोरमा से कहा)

 

◆ नाटक का सारांश :-

★ भगवंत सिंह और अपने भतीजे रजनीकांत में पारिवारिक जायदाद को लेकर काफी मनमुटाव, तनाव है।

★ जायदाद पाने के लिए दोनों में झगड़े भी होते है।

★  झगड़े यहाँ तक बढ़ जाते है कि भगवंत अपने भतीजे को मारने की सुपारी भी देता है।

★  संपूर्ण जायदाद अपने नाम करने के लिए वह कानून को घूस भी देता है।

★  मुरारीलाल के पास यह जाएगा इस कारण उसे भी वह बहुत सारा धन देता है।

★ एक दिन हरनंनदसिंह और भगवंतसिंह दोनों मिलकर मुरारीलाल के बंगले पर उसे मिलने आते है।

★ जब दूसरी तरफ रजनीकान्त को मारने के गुंडे भेजे हैं। अब तो उसे मार भी दिया होगा।

★  मुरारीलाल डिप्टी न्यायाधीश का पद पाने के बाद भी अन्याय के समर्थक, स्वार्थी, भ्रष्टाचारी है।

★  दस वर्ष पूर्व इनके कारण मनोजशंकर के पिता की मृत्यु हुई थी इस रहस्य को सिर्फ उनका मुंशी माहिरअली जानता है।

★ इस कलंक को मिटाने के लिए ही वे मनोजशंकर  को पढाना चाहते है और अपनी बेटी चंद्रकांता का विवाह उसके साथ करवा देना चाहते है।

★ भगवंतसिंह जो पैसे देनेवाला है उन पैसों से वह मनोजशंकर को पढ़ने के विलायत भेजना चाहते है ताकि उसके पिता के हत्या का सच उसे पता न चले और मुरारीलाल का असली चहेरा उनके सामने न आये।

★ जब भगवंतसिंह और हरनंदन सिंह मुरारीलाल के बंगले पर आते है और योजनानुसार उनका स्वागत मुंशी करता है।

★  बंगले में उचित स्थान पर उनको बैठाया गया है, तब हरनंदनसिंह भगवंतसिंह से समझौते की बात करता है लेकिन वह मानता नहीं है।

★  मुरारीलाल आकर पहले तो इधर-उधर की बातें करता है, दस हजार में नही माना है। फिर चालीस हजार लेकर शांत हो जाता है।

★ इस घटना में मुंशी माहिर बहुत दु:खी होता है क्योंकि जो कुछ हत्या के जिम्मेदार है, तो वह है मुरारीलाल ऐसा उसको लगता है।

★  कानून के डर भगवंतसिंह इतना साहस नहीं कर सकता लेकिन मुरारीलाल उन्हें बचा लेगा इस कारण वह हत्या करने के हिम्मत कर रहा है।

★  मुरारीलाल का कहना मैं अगर पैसा नहीं भी लूँगा फिर भी ये लोग चुप नहीं बैठेगे दस-दस रूपये देकर गवाहों को खरीद लेंगे।

★ मनोरमा का बचपन में जब आठ साल की थी तब उसका विवाह हुआ था । दस साल की उम्र में ही वह विधवा जाती है।

★ मनोरमा कलाप्रेमी है, कला की उपासना करती है, चित्र बनाती है।

★  मनोरमा ने रजनीकांत के सौम्य और आकर्षित स्वभाव को देखकर चित्र बनाया था।

★  उस चित्र का नाम उसने “यौवन के द्वार” पर रखा था।

★  मनोरमा के बनाये हुए इस चित्र को देखकर चन्द्रकला प्रफुल्लित जाती है। और चन्द्रकला ने इस चित्र का नाम “मृत्यु के द्वार” रखा ।

★ चन्द्रकला ने जिस दिव्य दर्शन की कल्पना की थी वह रजनीकांत है ।

★ रजनीकांत के प्रति चन्द्रकला के मन में अनुराग उत्पन्न हुआ है।

★ चन्द्रकला रजनीकांत से  प्रेम करने लगती है।

★  मनोज शंकर को जीवन की सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध है लेकिन पिता की हत्या होने के कारण वह अपने अस्तित्व से घृणा करने लगता है।

★ वह असंतोष में जीवन जी रहा है, अपनी परीक्षाएं नजदीक होने पर भी वह घर लौट आता है।

★ मुरारीलाल को वह कहता है कि आप मुझे देकर अँधा बना रहे है।

★ मेरे पिता ने आत्महत्या क्यों की थी? इस बात का रहस्य आप मुझे क्यों नहीं बता रहे है? मुरारीलाल के पास वह जिद्द करता है लेकिन वे उसे उत्तर नहीं दे पाते।

★  मनोरमा और चन्द्रकला का चरित्र भी निखरा हुआ है।

★  मनोरमा के मन में मनोज के प्रति नैसर्गिक आत्मीयता आ जाती है।

★  वह मनोज का हाथ पकड़कर संसार में उतरना चाहती है और संसार के सामने एक आदर्श स्थापित करना चाहती है। क्योंकि वह एक विधवा है, विधवा का हाथ पकड़ने से एक नया आर्दश स्थापित होगा।

★ मनोरमा कहती है कि तुम बांसुरी बजाओं  और मैं चित्र बनाउंगी।

★ मनोरमा चन्द्रकला के प्रेम और अस्वस्थ होने की चर्चा मनोज से करती है।

★  मुरारीलाल भी मनोरमा से प्रेम करते है, लेकिन वह प्रेम शादी या विवाह के लिए नहीं है। उसमें आत्मीयता नहीं है।

★ मनोरमा के मन में भी मुरारीलाल के प्रति प्रेम नहीं है।

★ मनोरमा तो मुरारीलाल से नफरत और घृणा करती है।

★ मनोज से कहती है, मैं तुम्हें दूल्हा तो नहीं बना सकती लेकिन प्रेमी जरुर बना लुंगी।

★  चन्द्रकला दुःखी है क्यों रजनीकांत के हत्या मामले में अपने ही पिता ने चालीस हजार लिए है।

★ चन्द्रकला अस्पताल जाकर रजनीकान्त के हाथ से अपने माथे पर सिन्दूर रखकर विवाह की प्रणाली को पूर्ण कर देती है। यही सिन्दूर की होली है। इसके बाद रजनीकान्त अधिक देर तक जिंदा नहीं रहता है ।

★ मुरारीलाल अपनी पुत्री की मर्यादाहीन व्यवहार पर क्रोधित हो जाता है।

★ इसी समय मनोज माहिर अली से अपनी पिता की मृत्यु का रहस्य सुनकर आत्मशान्ति का अनुभव करता है क्योंकि वह अब आत्मघाती पिता का पुत्र नहीं है ।

★ जब मुरारीलाल को इस बात का पता चलता है। तब चन्द्रकला  घर आने पर वह तमाम बातें उसे सुनाता है, लेकिन अपनी पिता की बातों का उसपर कोई असर नहीं किया है

★ वह अपनी दुनिया में अकेली हो चुकी हैं मनोज को माहिरअली से पता चलता है कि उसके पिता का हत्यारा स्वयं मुरारीलाल है।

★  मुरारीलाल ने  केवल आठ हजार के लिए अपने मित्र( मनोज के पिता) को भांग पिलाकर नाव से ढकेल दिया था।

★  मुरारीलाल तब भी डिप्टी कलेक्टर था और माहिरअली उनका मुंशी था।

★  जब मुरारीलाल को यह पता चलता है कि, मनोज सब जान चूका है तो उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसक जाती है।

★ मनोज विधवा-विवाह को विधवा समस्या का सर्वश्रेष्ठ साधन मानता है। लेकिन मनोरमा इसे समाज का सब से बडा दोष समझती है।

★ मनोरमा से मनोजशंकर जान गया कि चन्द्रकला रजनीकान्त पर अनुरक्त थी।

★  रजनीकान्त विवाहित है और यह समझकर भी चन्द्रकला उसके सौन्दर्य पर आकृष्ट थी ।

★ मुरारीलाल मनोज को चन्द्रकला के पास जाने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन मनोज को इससे सहमत न देखकर मुरारीलाल को दुःख हुआ ।

★ मनोज और चन्द्रकला की शादी करवा देकर वे उन दोनों को विलायत भेजना चाहता था।

★ मनोज को विलायत भेजने के लिए ही मुरारीलाल ने भगवन्त से रूपया लिया।

★  रजनीकान्त को मारने का कोई उद्देश्य उनमें नहीं था।

★  रजनीकान्त पर आक्रमण की बात सुनकर चन्द्रकला को बड़ा दुःख होता है। उसकी बीमारी को शारीरिक से बढ़कर मानसिक समझकर मनोज उसे संभालता है।

★ चन्द्रकला और माहिरअली रजनीकान्त की बिगड़ती हुई तबियत से अत्यन्त चिन्तित हो ।

★  चन्द्रकला पिता के घर में भी रहना नहीं चाहती है, वह अपने बनाये हुए रास्ते पर चलना चाहती है।

★ मनोज और मनोरमा एक विभिन्न मार्ग के अनुयायी बन जाती हैं।

★ नाटक के अंत में मुरारीलाल अकेला पड़ जाता है

◆ महत्वपूर्ण बिन्दु :-

★ लक्ष्मीनारायण मिश्र जो भी इब्सन, वरनर्डशा आदि प्रमुख नाटककारों के विचारों और भावनाओं से प्रेरित होकर हिन्दी नाट्य साहित्य में नवीन धारा का प्रचार करने की चेष्टा की।

★  “बुद्धिवाद किसी तरह का हो – किसी कोटि का हो-समाज या साहित्य की हानि नही कर सकता ।”  ( लक्ष्मीनारायण ने “मुक्ति का रहस्य” नाटक की भूमिका कहा)

★ लक्ष्मीनारायण मिश्र  के नाटकों में न तो अनेक पात्र हैं, न गाने या कविता पाठ को सामग्री और न अनावश्यक दृश्यों का परिवर्तन।

★  “सिन्दूर की होली” नाटक में रंग-मंच की रचना और उसके संचालन के सम्बन्ध में भी सुगमता की ओर पहले से अधिक ध्यान दिया गया है।

★ नाटक का समय थोड़ा है। घटनास्थल भी एक ही है केवल थोड़ा-सा ही हेर-फेर है।

★ प्रत्येक पात्र का अपना अपना व्यक्तित्व है। प्रत्येक का विकास अपने – अपने ढंग का है। प्रत्येक की भावना और उसके व्यक्तित्व का चित्रण सहानुभूतिपूर्वक किया गया है।

★  मुरारीलाल का भी चित्रण सहानुभूति शून्य नहीं ।

★ मनोरमा और चन्द्रकला दोनों शिक्षित स्त्रियाँ है। उनमें कोमलता, सहिष्णुता और उच्चादर्श का अद्भुत मिश्रण है। दोनों मे अनुराग और त्याग का चमत्कार है ।

★ चन्द्रकला ने प्रेम का जो आदर्श रखा वह पौराणिक चित्रों से कम नहीं।

★  मनोरमा ने दूसरा आदर्श खड़ा करने का प्रयत्न किया किन्तु मनोजशंकर ऐसी विक्षिप्त दशा में था कि वह उससे सहयोग न कर सका।

★  दोनों चित्रो का सूक्ष्म भेद नाटक रचयिता ने चन्द्रकला के द्वारा कहलवा दिया- “तुम्हारी मजबूरी पहले सामाजिक फिर मानसिक हुई, मेरी मजबूरी प्रारम्भ से ही मानसिक हो गई ।”

★  दूसरे अंक में :-  मनोरमा और मनोजशंकर का वर्तालाप ओज और विचारपूर्ण है।

★ तीसरे अंक में :- चन्द्रकला और मनोरमा का वर्तालाप ओज और विचारपूर्ण है।

★ चिरन्तन नारीत्व की समस्या नाटक की समस्या । मनोरमा नामक विधवा के चित्रण से विधवा विवाह के बारे में चित्रण।

★ इस नाटक के माध्यम से नाटककार ने विधवा-विवाह और चिरन्तन नारीत्व को समस्या को अभिव्यक्त किया है ।

★ इस नाटक में पाश्चात्य विचारधारा को भारतीय संदर्भ के अनुरूप बनाकर ग्रहण करना।

★ इसमें बुद्धिवाद का प्रवर्तन मिलता है।

 

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2 comments

  1. Hame PDF send kare

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