?सिक्का बदल गया कहानी?
【कृष्णा सोबती】
◆ प्रकाशन :- 1948ई. प्रतीक पत्रिका में प्रकाशित
◆ पात्र :-
● शाहनी
● शेरा (शाहनी का सेवक)
● हसैना (शेरा की पत्नी)
● थानेदार दाऊद खाँ
● भगू पटवारी
◆ कहानी का उद्देश्य :- इसमें विभाजन से उत्पन्न दारुण परिस्थितियों का मार्मिक चित्रण के साथ मानवीय संबंधों और य
मूल्यों पर आए विघटन का वर्णन है।
◆ खद्दर की चादर ओढ़े,हाथ में माला लिए कौन थी ? :- शाहनी
◆ शाहनी ने कपड़े उतारकर एक ओर रखे और ‘श्रीराम, श्रीराम’ करती पानी में गयी। अंजलि भरकर सूर्य देवता को नमस्कार किया।
◆ चनाब का पानी आज भी पहले सा ही सर्द था, लहरें लहरों को चूम रही थीं।
( चनाब नदी :-पंजाब की पाँच नदियों में से एक । यह लद्दाख के पर्वतों से निकलकर सिंध में मिलती है ।)
◆ वह दूर सामने काश्मीर की पहाड़ियों से बंर्फ पिघल रही थी।
◆ इस प्रभात की मीठी नीरवता में न जाने क्यों कुछ भयावना-सा लग रहा है।
◆ शाहनी चनाब नदी में कितने साल से नहा रही है?:- पचास से
◆ शाहनी सोचती है, एक दिन इसी दुनिया के किनारे वह दुलहिन बनकर उतरी थी। और आज… आज शाहजी नहीं, उसका वह पढ़ा-लिखा लड़का नहीं, आज वह अकेली है, शाहजी की लम्बी-चौड़ी हवेली में अकेली है।
◆ शाहनी ने लम्बी सांस ली और ‘श्री राम, श्री राम, करती बाजरे के खेतों से होती घर की राह ली।
◆ कहीं-कहीं लिपे-पुते आंगनों पर से धुआं उठ रहा था। टनटनबैलों की घंटियां बज उठती हैं। फिर भी… फिर भी कुछ बंध-बंधासा है।
◆ ‘जम्मीवाला’ कुआं भी आज नहीं चल रहा। ये शाहजी की ही असामियां हैं।
◆ दूर-दूर गांवों तक फैली हुई जमीनें, जमीनों में कुएं सब शाहजी के हैं। साल में तीन फसल, जमीन तो सोना उगलती है।
◆ शाहनी कुएं की ओर बढ़ी, आवाज दी, “शेरे, शेरे, हसैना हसैना…”
◆ अपनी मां जैना के मरने के बाद वह शाहनी के पास ही पलकर बड़ा हुआ।
◆ उसने पास पड़ा गंडासा ‘शटाले के ढेर के नीचे सरका दिया। हाथ में हुक्का पकड़कर बोला “ऐ हैसैना- सैना…।”
◆ अब तक शाहनी नजदीक पहुंच चुकी थी। शेरे की तेजी सुन चुकी थी। प्यार से बोली, “हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर। “
◆ “जिगरा !” हसैना ने मान भरे स्वर में कहा “शाहनी, लड़का आंखिर लड़का ही है।
◆ कभी शेरे से भी पूछा है कि मुंह अंधेरे ही क्यों गालियां बरसाई हैं इसने ?”
◆ शाहनी ने लाड़ से हसैना की पीठ पर हाथ फेरा, हंसकर बोली पगली मुझे तो लड़के से बहू प्यारी है।
◆ “मालूम होता है, रात को कुल्लूवाल के लोग आये हैं यहां ? ” शाहनी ने गम्भीर स्वर में कहा।
◆ हमारे ही भाई-बन्दों से सूद ले-लेकर शाहजी सोने की बोरियां तोला करते थे।
◆ प्रतिहिंसा की आग शेरे की आंखों में उतर आयी।
◆ शेरा पिछले दिनों में तीस-चालीस कत्ल कर चुका है।
◆ शेरा सर्दियों की रातें कभी-कभी शाहजी की डांट खाके हवेली में पड़ा रहता था।
◆ शेरे ने शाहनी के झुर्रियां पड़े मुंह की ओर देखा तो शाहनी धीरे से मुस्करा रही थी।
◆ शेरा जानता है यह आग है। जबलपुर में आज आग लगनी थी लग गयी! शाहनी कुछ न कह सकी । उसके नाते रिश्ते सब वहीं हैं
◆ शाहनी ने शून्य मन से ड्योढ़ी में कदम रक्खा।
◆ दुर्बल-सी देह और अकेली, बिना किसी सहारे के ! न जाने कब तक वहीं पड़ी रही शाहनी ।
◆ बीबी ने अपने विकृत कण्ठ से कहा “शाहनी, आज तक कभी ऐसा न हुआ, न कभी सुना। गजब हो गया, अंधेर पड़ गया।”
◆ नवाब बीबी ने स्नेह-सनी उदासी से कहा “शाहनी, हमने तो कभी न सोचा था!”
◆ सारा गांव है, जो उसके इशारे पर नाचता था कभी। उसकी असामियां हैं जिन्हें उसने अपने नाते-रिश्तों से कभी कम नहीं समझा। लेकिन नहीं, आज उसका कोई नहीं, आज शाहनी अकेली है! यह भीड़ की भीड़, उनमें कुल्लूवाल के जाट ।वह क्या सुबह ही न समझ गयी थी?
◆ बेगू पटवारी ने कहा ” शाहनी, रब्ब नू एही मंजूर सी।”
◆ बेजान-सी शाहनी की ओर देखकर बेगू सोच रहा है ‘क्या गुंजर रही है शाहनी पर! मगर क्या हो सकता है! सिक्का बदल गया है…’
◆ शाहनी का घर से निकलना छोटी-सी बात नहीं। गांव का गांव खड़ा है हवेली के दरवाजे से लेकर उस दारे तक जिसे शाहजी ने अपने पुत्र की शादी में बनवा दिया था।
◆ शाहनी ने कभी बैर नहीं जाना। किसी का बुरा नहीं किया। लेकिन बूढ़ी शाहनी यह नहीं जानती कि सिक्का बदल गया है….
◆ थानेदार दाऊद खां जरा अकड़कर आगे आया और ड्योढ़ी पर खड़ी जड़ निर्जीव छाया को देखकर ठिठक गया।
◆ शाहनी ने थानेदार दाऊद खां की मंगेतर को सोने के कनफूल दिये थे मुंह दिखाई में।
◆ जब वह लीग’ के सिलसिले में आया था तो उसने उद्दंडता से कहा था शाहनी, भागोवाल मसीत बनेगी, तीन सौ रुपया देना पड़ेगा!’ शाहनी ने अपने उसी सरल स्वभाव से तीन सौ रुपये दिये थे।
◆ थानेदार दाऊद खां ने डयोढ़ी के निकट जाकर बोला “देर हो रही है शाहनी । (धीरे से) कुछ साथ रखना हो तो रख लो। कुछ साथ बांध लिया है? सोना-चांदी”
◆ शाहनी अस्फुट स्वर से बोली “सोना-चांदी!” जरा ठहरकर सादगी से कहा “सोना-चांदी ! बच्चा वह सब तुम लोगों के लिए है । मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।” (बच्चा :-थानेदार दाऊद खां के लिए)
◆ “इससे अच्छा वक्त देखने के लिए क्या मैं जिन्दा रहूंगी !” (शाहनी ने दाऊद खां को कहा)
◆ जिस पर एक दिन वह रानी बनकर आ खड़ी हुई थी। (रानी – शाहनी के लिए)
◆ शाहजी के मरने के बाद भी जिस कुल की अमानत को उसने सहेजकर रखा आज वह उसे धोखा दे गयी।
◆ शाहनी के दाऊद खां, शेरा, पटवारी, जैलदार और छोटे-बड़े, बच्चे, बूढ़े मर्द औरतें सब पीछे-पीछे।
◆ शेरे, खूनी शेरे का दिल टूट रहा है।
◆ दाऊद खां ने शाहनी के लिएआगे बढ़कर ट्रक का दरवाजा खोला।
◆ इस्माइल ने आगे बढ़कर भारी आवांज से कहा” शाहनी, कुछ कह जाओ। तुम्हारे मुंह से निकली असीस झूठ नहीं हो सकती!”
◆ शाहनी ने उठती हुई हिचकी को रोककर रुंधे-रुंधे से कहा, “रब तुहानू सलामत बच्चा, खुशियां बक्शे …”
◆ शेरे ने बढ़कर शाहनी के पांव छुए,और कहां “शाहनी कोई कुछ कर नहीं सका। राज भी पलट गया”
◆शेरे को शाहनी ने कहा ” तैनू भाग जगण चन्ना!” (ओ चा/द तेरे भाग्य जागें)
◆ “शाहनी मन में मैल न लाना। कुछ कर सकते तो उठा न रखते! वक्त ही ऐसा है। राज पलट गया है, सिक्का बदल गया है….”
◆ रात को शाहनी जब कैंप में पहुंचकर जमीन पर पड़ी तो लेटे-लेटे आहत मन से सोचा ‘राज पलट गया है… सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आयी ।…’
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