🌺सुंदर दास का जीवन परिचय🌺
* संत दादू दयाल के शिष्य
* प्रतिभा संपन्न कवि और साधक
* जन्म स्थान :- जयपुर राज्य की प्राचीन राजधानी दौसा में
* 6 वर्ष की अल्पायु में संत दादू के शिष्य हुए
* 11 वर्ष की अवस्था में संत जगजीवन दास तथा संत रज्जब के साथ काशी की यात्रा की
* 1625ई. में शेखावटी लौट आए।
* फतेहपुर में किसी गुफा में निवास कर 12 वर्ष तक उन्होंने योग साधना की।
* देशाटन उन्हें बहुत प्रिय था
* इनका रज्जब से विशेष स्नेह था।
* इन्होंने 42 ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख ज्ञान समुन्द्र और सुंदर विलास अधिक प्रसिद्ध है।
* सुंदर ग्रंथावली (दो भाग)पुरोहित हरिनारायण शर्मा द्वारा संपादित।
* सुन्दरदास की रचनाओं में भक्ति, योग – साधना और नीति की प्रधान स्थान प्राप्त हुआ।
* श्रृंगार रस की रचनाओं के कट्टर विरोधी।
* केशव की रसिकप्रिया,नंददास की रसमंजरी और सुंदर कविराय की सुंदर श्रृंगार की निंदा में उनका छंद :-
” रसिकप्रिया रसमंजरी और सिंगारही जानि।
चतुराई करि बहुत बिधि विषै बनाई आनि।।
विषै बनाई आनि लगत विषयिन कौ प्यारी ।
जागै सदन प्रचंड,सराहै नख – शिख नारी ।।
ज्यौ रोगी मिष्टान पाइ रोगहि बिस्तारे ।
सुंदर यह गति होइ जूतो रसिकप्रिया धारै।।
* है यह अति गंभीर,उठति लहरी आनंद थी। मिष्ट सु याकौ निर सकल पदारथ मध्य है।।
* दादू के दौसा आने पर सुंदरदास ने दादू से दीक्षा ली।
* इनके गुरु भाई :- रज्जब
* दीर्घकाल तक योग साधना करते रहे।
* काशी में दर्शन और काव्यशास्त्र के अध्ययन में भी उनका काफी समय बीता।
* भाषा पर इनका अच्छा अधिकार था।
* संत – कवियों में सुंदरदास एकमात्र कवि है जिन्हे पारंपरिक ढंग से शिक्षा ही मिली थी।
* रीतिकालीन काव्य के रूपवाद से भी वे प्रभावित प्रतीत होते हैं।
* सुन्दरदास ने चित्रकाव्य भी लिखा है।
* सुंदर दास ने मुख्य सवैया और कवित्त का प्रयोग किया है।
* इनकी पंक्तियां :-
बोलिए तौ तब जब बोलिवे की बुद्धि होय।
ना तौ मुख मौन गहि चुप होय रहिए।।
* खंडेलवाल बनिए थे।
* जन्म :- चैत्र शुक्ल नवमी, संवत् 1653 में
* मृत्यु :- कार्तिक शुक्ल अष्टमी, संवत् 1746 को सांगानेर में
* पिता का नाम :- परमानंद
* माता का नाम :- सती
* 6 वर्ष के थे तब दादू दयाल दोसा में गये तभी से ये दादू दयाल के शिष्य हो गये।
* संवत् 1663 तक रहकर फिर जगजीवन के साथ काशी चले गये।
* 30 वर्ष की अवस्था तक ये संस्कृत व्याकरण, वेदांत और पुराण आदि पढ़ते रहे।
* काशी से लौटने पर ये राजपूताने के फतेहपुर (शेखावटी) नामक स्थान पर आ गए।
* शेखावटी के फतेहपुर के नवाब अलिफ खॉ सुंदर दास के बहुत मानते थे।
* इनका डील डौल बहुत अच्छा, रंग गोरा और रूप में बहुत सुंदर था।
* सुन्दरदास का स्वभाव अत्यंत कोमल और मृदुल था।
* बाल ब्रह्मचारी थे और स्त्री की चर्चा से सदा दूर रहते थे।
* निर्गुण पंथियों में यही एक ऐसी व्यक्ति हुए,जिन्हे समुचित शिक्षा मिली थी।
* भाषा :- ब्रजभाषा
* प्रसिद्ध ग्रंथ :- सुंदर विलास
* संत तो थे ही, पर कवि भी थे।
* पतिव्रत का पालन करने वाली स्त्रियां, रणक्षेत्र में कठिन कर्तव्य का पालन करने वाले शूरवीरों आदि के प्रति इनके विशाल हृदय में सम्मान के लिए पूरी जगह थी।
* पति ही सू प्रेम होय,पति ही सू नेम होय, पति ही सू छेग होय, पति ही सूरत मोहित है।
* अन्य पंक्ति :-
” ब्रह्म तें पुरुष अरु प्रकृति प्रगट भई,
प्रकृति ते महत्व, पुनि अहंकार है।”
* हिंदी, पंजाबी, गुजराती, मारवाड़ी, संस्कृत और फरसी पर समान अधिकार रखते थे।
* संस्कृत के पंडित होते हुए भी में हिंदी में कविता लिखते थे क्योंकि इनका मुख्य उद्देश्य अपने सिद्धांतों का प्रचार करना ही था।
* इनकी रचनाओं में काव्यशास्त्र का पूर्ण ज्ञान है।
* इनके ग्रंथों में :- ज्ञान समुन्द्र(5 उल्लासों में)
सुंदर विलास (39अंकों)
पद (27 राग – रागिनियों में)
* संत होते हुए भी हास्य रस के विशेष प्रेमी थे।
* दादू दयाल से आयु में सब से छोटे शिष्य थे पर प्रसिद्धि में सब से बड़े।
* सुंदर के शिष्यों की पांच गद्दियां कही जाती है :- फतेहपुर और राजस्थान
*पांच शिष्य :-
1. टिकैतदास
2. दामोदरदास
3. श्यामदास
4. निर्मलदास
5. नारायणदास