स्वयंभू का जीवन परिचय(svayambhoo ka jeevan parichay)
• अपभ्रंश का वाल्मीकि
• समय :- 8वीं शताब्दी
• उत्तर के रहने वाले थे बाद में संरक्षण के साथ राष्ट्रकूट राज्यों में चले गए ।
• पिता का नाम :- मारुति देव
• स्वयंभू के दो पत्नियां थी।
• स्वयंभू के आश्रयदाता :- धनंजय और धवलाइया
• प्रमुख ग्रंथ :- पउमचरिउ
• जैन कवियों में बहुत प्रसिद्ध कवि
• जिन्होने पउमचरिउ(पह्म चरित्र) यानी राम कथा का सृजन किया।
त्रिभुवन का परिचय
• स्वयंभू के छोटे पुत्र
• पिता के समान महान कवि।
• वैयाकरण और आगमादि के ज्ञाता।
• बंदरइया के आश्रित कवि।
• स्वयंभू के तीन ग्रंथों को त्रिभुवन ने पूरा किया था।
पउमचरिउ, रिट्ठेणमिचरिउ, नागकुमार चरिउ
1. पउमचरिउ :-
• रचयिता – महाकवि स्वयंभू
• अपभ्रंश साहित्य का अत्यंत प्रसिद्ध एवं प्रथम महाकाव्य।
• चरित काव्य।
• पांच काण्डों और 90 संधियों में विभाजित है।
• पांच काण्डों में विभक्त :-
1. विद्याधर कांड(20 संधियां)
2. अयोध्या कांड (22 संधियां)
3. सुंदरकांड (14 संधियां)
4. युद्ध कांड(21 संधियां)
5. उत्तरकांड (13 संधियां)
• कुल श्लोक – 12 हजार
• कुल संधिया – 90 संधिया(83 संधिया स्वयंभू द्वारा रचित और 7 संधिया त्रिभुवन द्वारा रचित।)
• स्वयंभू ने रविषेण द्वारा वर्णित रामकथा का आश्रय लिया है।
• महाकाव्य का आरंभ – ईश वंदना से।
• राम कथा का आरंभ – गुरु और आचार्य वंदना से।
• स्वयंभू ने राम की महिमा का गुणगान किया है।
2. रिट्ठणेमि चरिउ (हरिवंश पुराण) :-
• विषय – तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित्र का वर्णन।
• कुल श्लोक – 18हजार श्लोक।
• चार काण्डों और 112 सिंधियों में विभाजित है।
• चार काण्डों में विभक्त :-
1. यादव कांड(20 संधियां)
2. कुरु कांड (20 संधियां)
3. युद्धकांड(20संधियां) फाल्गुन नक्षत्र तृतीया तिथी बुधवार और शिव नामक योग में यह काण्ड समाप्त हुआ।
4. उत्तर कांड(20 संधियां) भाद्रपद,दशमी रविवार और मूल नक्षत्र में उत्तर काण्ड प्रारंभ हुआ।
• कुल सिंधिया – 112 संधिया(99 संधिया स्वयंभू द्वारा रचित और 13 संधिया त्रिभुवन द्वारा रचित।)
• 1937 कडवक
• इसमें पहली 92 संधियां की रचना करने में कवि को 6 वर्ष 3 माह और 11 दिन लगे थे।
• काव्य की कथा का आधार – महाभारत और हरिवंश पुराण है ।
• डॉ. नामवर सिंह ने कहा – “अपभ्रंश में राम कथा का वर्णन कृष्ण कथा के वर्णन का सूत्रपात का श्रेय भी स्वयंभू को ही है ।”

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