गोदान के पात्रों का महत्वपूर्ण कथन( mahatvapoorn kathan)
◆ महत्वपूर्ण कथन ◆
1. होरी का कथन :-
● “जब अपनी गर्दन दूसरों के पैरों के तले दबी हो तो उन पैरों को सहलाने में कुशल है।”
● “हमारा जन्म इसलिए हुआ है कि अपना रक्त बहाए और बड़ों का घर भरे।”
● “हम लोग समझते हैं कि बड़े आदमी बहुत सुखी होंगे लेकिन, सच पूछो तो वे हमसे ज्यादा दुखी हैं।”
● “क्या ससुराल जाना है जो पांचों पोशाक* लाई है।” (होरी ने धनिया से कहा )
* यहां पांचों पोशाक का मतलब :-
• होरी की लाठी
• मिरजई (कुर्ता)
• जूते
• पगड़ी
• तंबाकू का बटु
●”तो क्या तू समझती है,मैं बूढ़ा हो गया ? अभी तो चालीस भी नहीं हुए।मर्द साढे पर पाढे होते हैं।”(होरी ने धनिया से कहा)
●”बस सज्जन, वही जो दूसरों की आबरू को अपनी आबरू समझे।”
● “बिना घरनी घर भूत का डेरा।”
●”सोना* बड़े आदमियों के लिए है। हम गरीबों के लिए तो रूपा* ही है। जैसे जौ को राजा कहते हैं गेहूं को चमार इसलिए न कि गेहूं बडे आदमी खाते हैं, जौ हम लोग खाते हैं।”
* यहां सोना (होरी की बड़ी पुत्र) को :- चमार
रूपा (होरी की छोटी पुत्री)को :- राजा कहा गया है।)
● घरनी के बिना घर नहीं रहता भैया। पुरानी कहावत है – ‘नाटन के खेती बहुरिन घर।’ नाटे बैल क्या खेती करेंगे और बहुएं क्या घर संभालेगी।”(होरी ने भोला से कहा)
● “हमारी गरदन दूसरों के पैरों के नीचे दबी हुई है,अकड़ कर निबाह नहीं हो सकता।” (होरी ने गोबर से कहा)
2. प्रो.मेहता के कथन :-
● मैं चाहता हूं कि हमारा जीवन हमारी सिद्धांतों के अनुकूल हो? ……. मुझमें और आप में अंतर इतना ही है कि मैं जो कुछ मानता हूं,उस पर चलता हूं, आप लोग मानते कुछ है, करते कुछ है।” (राय साहब को कह रहे है)
● “संसार में छोटे – बड़े हमेशा रहेंगे और उन्हें हमेशा रहना चाहिए। इसे मिटाने की चेष्टा करना मानव जाति का सर्वनाश करना होगा।”
● “स्त्रिया स्त्रियां नहीं है वे देवी है,दिव्य हैं वे पुरुष से बहुत श्रेष्ठ और ऊपर है।”
● “प्रेम सीधी-सादी गइ नहीं,खुँखार शेर है,जो अपने शिकार पर किसी की आंख भी नहीं पडने देता।”
दुसरी तरफ ओर मालती मानती है – ” मैं प्रेम को संदेह से ऊपर समझती हूं । वह देह की वस्तु नहीं, आत्मा की वस्तु है।”
● दर्शनशास्त्र का प्रोफेसर होने के बावजूद जब मालती पूछती है तुम प्रेम के बारे में क्या सोचते हो तो वह कहते हैं कि” प्रेम को मैं सिंह की तरह देखता हूं जो अपने शिकार पर किसी दूसरे की नजर नहीं पढ़ने देता यानी स्त्री शिकार है।”
● “कुछ बातें तो उसमें ऐसी है कि अगर तुम में होती तो तुम सचमुच देवी हो जाती है।”( प्रो.मेहता मालती को चिढ़ाते हुए कहते हैं)
●>”मैं आप से किन शब्दों में कहूं कि स्त्री मेरी नजरों में क्या है? संसार में जो कुछ सुंदर है, उसी की प्रतिमा को में स्त्री कहता हूं।” (प्रो.मेहता ने मिर्जा खुर्शेद से नारी संबंधी धारणा को अभिव्यक्त)
● “स्त्री पुरुष से उतनी ही श्रेष्ठ है जितना प्रकाश अंधेरे से।”
● “मैं प्रकृति का पुजारी हूं और मनुष्य को उसके प्राकृतिक रूप में देखना चाहता हूं जो प्रसन्न होकर हँसता है, दुखी होकर रोता है और क्रोध में आकर मार डालता है। जो दुःख और सुख में दोनों का दमन करते हैं,जो रोने को कर्मचारी और हँसने को हल्कापन समझते हैं उनसे मेरा कोई मेल नहीं है।”
● “नारी केवल माता है और उसके उपरांत वह जो कुछ है वह एक मुराद तत्व का उपक्रम मात्र मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना है सबसे बड़ी तपस्या सबसे बड़ा त्याग और सबसे महान विजय है।”
● “प्रेम सीधी-सादी गऊ को नहीं खूंखार शेर है जो अपने शिकार पर किसी की आंख नहीं पडने देता।” (प्रेम के विषय में)
● “मेरे जेहन में औरत वफा और त्याग की मूर्ति है जो अपनी बेजुबानी से कुर्बानी से अपने को बिल्कुल मिटाकर पति की आत्मा का अंश बन जाती है।” (नारी के विषय में)
● आपकी जबान में इतनी बुद्धि का बुद्धि हैं काश उसकी आदि भी मस्तिष्क में होती है यही है कि सब कुछ समझते हुए भी आप अपने विचारों का व्यवहार में नहीं लाते हैं मेहता जी राय साहब को पोल खोलते हुए कहते हैं।
● “विवाह को मैं सामाजिक समझौता मानता हूं और उसे तोड़ने का अधिकार न पुरुष को है, न स्त्री को। समझौता करने के पहले आप स्वाधीन है , समझौता हो जाने के बाद आपके हाथ कट जाते है।”
● “मैं समझता हूं कि नारी केवल माता है, और इसके उपरांत वह जो कुछ है, वह सब मातृत्व का उपक्रम मात्र।”
3. रायसाहब के कथन :-
● तुम हमें बड़ा आदमी समझते हो? हमारे नाम बड़े हैं पर दर्शन छोटे। ……बड़े आदमियों की इच्छा और बैर केवल आनंद के लिए है। हम इतने बड़े आदमी हो गए हैं कि हमें नीचता और कुटिलता में ही निःस्वार्थ और परम आनंद मिलता है।”(होरी के समक्ष अपनी वास्तविक स्थिति बखान करते हैं)
● “बहुत जल्द हमारी वर्ग की हस्ती मिट जाने वाली है। मैं उस दिन का स्वागत करने को तैयार बैठा हूं।” (जमीदारी प्रथा का अवसान समीप होने के कारण)
● “किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणिमात्र का धर्म है।”
4. गोबर के कथन :-
● ” यह तुम रोज-रोज मालिकों की खुशामद करने क्यों जाते हो ? बाकी न चुके तो प्यादा आकर गालियाँ सुनाता है, बेगार देनी ही पड़ती है। नजर नज़राना सब तो हमसे भराया जाता है फिर किसी की क्यों सलामी करो?”(अपने पिता होरी से)
● “हम लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, देह पर साबुत कपड़े नहीं है, चोटी का पसीना एड़ी तक आता है, तब भी गुजर जाते नहीं होता। उन्हें क्या ? मजे से गद्दी – पसंद लगाए बैठे हैं, सैकड़ों नौकर चाकर है हजारों आदमियों पर हुकूमत है।”
● “रोज -रोज आने से मरजाद भी तो नही रहती।”(झुनिया को कहते हुए)
● “यह सब मन को समझाने की बातें हैं।भगवान सबको बराबर बनाते हैं यहां जिसके हाथ में लाठी है,वही गरीबों को कुचलकर बड़ा आदमी बन जाता है।”
● “जिसके पास पैसा है बिरादरी उसकी होती है।”
● “जलसों में,शामियाने के पीछे खड़े होकर उसने भाषण सुना है और यह भी सुना है कि कोई देवी और देवता मनुष्य का भाग्य नहीं बदलता,मनुष्य अपनी स्थितियों के लिए स्वयं जिम्मेदार है और इसलिए वही भाग्य को बदल भी सकता है।”
● “गांव वाले निकाल देंगे तो क्या संसार में दूसरा गांव दूसरे गांव से ही नहीं। रुपए हो तो न हुक्का पानी का काम है न जात बिरादरी का ।”(गोबर का कथन)
● “गांव वाले निकाल देंगे तो क्या संसार में दूसरा गांव ही नहीं है।”(गोबर ने झुनिया से कहा)
5. धनिया के कथन :-
● “हमने जमीदार के खेत जोते हैं,वह अपना लगान ही तो लेगा, उसकी खुशामद क्यों करें, उसके तलवे क्यों सहलाए।”
● “उसका मन आज भी कहता था कि अगर उनकी दवादारू होती तो वे बच सकते थे।”(यहां ‘उनकी’ शब्द धनिया और होरी के तीन लड़के जो मर गये थे उनके लिए आया है।)
● “मैंने तुमसे सौ बार हजार बार कह दिया, मेरे मुंह पर भाइयों का बखान न किया करो । उनका नाम सुनकर मेरी में लग जाती है।…. सारा गांव देखने आया, उन्ही के पांव में मेहंदी लगी हुई थी,मगर आये कैसे ? जलन हो रही होगी कि इसके घर में गाय आ गई। छाती फटी जाती होगी।”
●”पंचों गरीबों को सत्ताकर सुख न पाओगे, इतना समझ लेना।”
● “यह पंच नहीं है,राक्षस है,पक्के राछस”
●”वही साध्वी जिसने होरी के सिवा किसी पुरुष को आंख भरकर देखा भी न था, इस पापिष्ठा को गले लगाए उसके आंसू पोछ रही थी और उसके त्रस्त हृदय को अपने कोमल शब्दों से शांत कर रही थी जैसे कोई चिड़िया अपने बच्चों को पैरों में छिपा कर बैठी हो।”
● “हमको कुल परतिष्ठा इतनी प्यारी नहीं है महाराज की उसके पीछे एक जीव की हत्या कर डालते। ब्याहता न सही, पर उसकी बांह तो पकड़ी है मेरे बेटे ने। किस मुंह से निकाल देती ?”( दातादीन से कहती है धनिया)
● “जगह की कौन कमी है बेटी ! तू चल मेरे घर रहा।” (सालिया से कहती है)
●”बिगड़ेंगे तो एक रोटी बेसी खा लेगे और क्या करेंगे। कोई उनकी दबैल हूं ।” (दातादीन से कहती है)
●”देख लिया तुम्हारा न्याय और तुम्हारी अक्ल की दौड़। गरीबों का गला काटना दूसरी बात है,दूध का दूध और पानी का पानी करना दूसरी ।”(रिश्वत दरोगा को कहा)
●”ये हमारे गांव के मुखिया है, गरीबों का खून चूसने वाले, सूद ब्याज ड्योढी – सवाई,नजर – नजराना,घूस-घास जैसे भी हो गरीब को लूटो। उस पर सुराज चाहिए। जेल जाने से सुराज ने मिलेगा, सुराज मिलेगा न्याय से।”(गांव के साहूकारों को कहा)
● “अगर यही हाल है तो भीख भी मांगोगी “
(दातादीन धनिया को डांटते हुए कहा था)
धनिया ने इसके जवाब में दातादीन को यह कहा-“भीख मांगो तुम जो भीखमंगो की जात हो। हम तो एक मजूर ठहरे जहां काम करेंगे चार पैसे पाएंगे।”
6. मालती के कथन :-
• “प्रेमचंद ने मालती के चरित्र का विश्लेषण करते हुए लिखा है – “मालती बाहर से तितली भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हंसी ही हंसी है नहीं है, केवल गुड़ खाकर कौन जी सकता है ………. उसका चहकना और चमकना इसलिए नहीं है कि वह चहकने को ही जीवन समझती है ……नहीं ,वह इसलिए चहकती है और विनोद करती है कि इससे उसके कत्तर्व्य का भार कुछ हल्का हो जाता है।”
7. हीरा का कथन -:
● ” जाना ही नहीं कि लड़कपन और जवानी कैसी होती है।” (हीरा ने धनिया से कहा)
● तेरी जैसी राच्छसिन के हाथ में पकड़कर जिंदगी तलख हो गयी।(हीरा ने धनिया से कहा)
8. दातादीन का कथन :-
● नारी का धरम है कि गम खाय, वह तो उजड्डा है,क्यों उसके मुंह में लगती है। (दातादिन नेधनिया से कहा) 【 यहां उजड्डा हीरा को कहा गया】
उसकी खुशामद क्यों करें उसके तलवे क्यों सहलाए।" गांव वाले निकाल देंगे तो क्या संसार में दूसरा गांव ही नहीं है।" गोदान का महत्वपूर्ण कथन( mahatvapoorn kathan) गोदान के पात्रों का महत्वपूर्ण कथन( mahatvapoorn kathan) जब अपनी गर्दन दूसरों के पैरों के तले दबी हो तो उन पैरों को सहलाने में कुशल है।" दिव्य हैं वे पुरुष से बहुत श्रेष्ठ और ऊपर है।" नारी केवल माता है और उसके उपरांत वह जो कुछ है वह एक मुराद तत्व का उपक्रम मात्र मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना है सबसे बड़ी तपस्या सबसे बड़ा त्याग और सबसे महान विजय है।" पक्के राछस यह पंच नहीं है राक्षस है रोज -रोज आने से मरजाद भी तो नही रहती।" वह अपना लगान ही तो लेगा स्त्रिया स्त्रियां नहीं है वे देवी है हमने जमीदार के खेत जोते हैं 2021-05-05
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