🌺 साठोत्तरी कविताओं की प्रवृत्तियां/विशेषताएं 🌺 🌺 साठोत्तरी कविता का साधारण अर्थ :- सन् 1960 के बाद की कविता। 🌺 साठोत्तरी कविता का तात्पर्य :- केवल के बाद की कविता से नहीं है बल्कि यह एक विशेष तेवर वाली ...
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नई कविताओं की प्रवृत्तियां( naee kavitayo ki pravatiya)
🌺नई कविताओं की प्रवृत्तियां( naee kavitayo ki pravatiya)🌺 1. मानव मूल्य की विघटन की पुकार । 2. नव मानव की कल्पना। 3. आस्था – अनास्था का मिश्रण । 4. मानव लघुता और गरिमा का उल्लेख। 5. कवि का खंडित व्यक्तित्व। 6. काव्य भाषा- बातचीत की भाषा । 7. लघु कविता शैली- दो,तीन, चार पंक्तियों में समाप्त होने वाली लघु कविताएं ...
Read More »प्रयोगवादी काव्य की प्रवृत्तियां( prayogavadi kavy ki pravatiya)
🌺प्रयोगवादी काव्य की प्रवृत्तियां🌺 🌺प्रयोगवाद की जन्मदात्री पत्रिका – तार सप्तक 🌺 प्रयोगवाद को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले:- अस्तित्ववाद 1. गहन वैयक्तिकता। 2. अतिशय बौद्धिकता। 3. व्यापक अनास्था की भावना। 4. आस्था तथा भविष्य के प्रति विश्वास। 5. सामाजिक यथार्थवाद। 6. क्षणवाद। 7. श्रृंगार का उन्मुक्त चित्रण। 8. कुंठा और निराशा का ...
Read More »प्रगतिवादी काव्य की प्रवृत्तियां( pragativadi kavy ki pravatiya)
🌺 प्रगतिवादी काव्य की प्रवृत्तियां 🌺 🌺 जो काव्य मार्क्सवाद दर्शन को सामाजिक चेतना और भाव बोध को अपना लक्ष्य बनाकर चला उसे प्रगतिवाद कहा गया है। 🌺 प्रगतिवादी के अंतर्गत -: यथार्थवाद ,पदार्थवाद एवं समाजवाद शामिल है । ...
Read More »छायावादी काव्य की प्रवृत्तियां( chhayavadi kavy ki pravatiya)
🌺 छायावादी काव्य की प्रवृत्तियां 🌺 1. आत्माभिव्यंजना /आत्माभिव्यक्ति की प्रधानता। 2. मै शैली /उत्तम पुरुष शैली । 3. मानवीय सौंदर्य का बोध । 4. प्रकृति के रम्य रूपों की रचना। 5. प्रकृति संबंधित बिम्बों की बहुलता । 6. स्वच्छंद कल्पना का नवोन्मेष। 7. रहस्य भावना। 8. अज्ञात व असीम ...
Read More »द्विवेदी काल की प्रमुख प्रवृत्तियां (dvivedi kal ki pramukh pravrttiyan)
द्विवेदी काल (1900-1918) हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अवधि है। इस काल का नाम आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने हिंदी साहित्य को एक नया दृष्टिकोण और दिशा दी। इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं: 🌺 द्विवेदी युगीन काल की प्रवृत्तियां🌺 1. आदर्श एवं नैतिकता का प्राधान्य। 2. राष्ट्रीयता अथवा ...
Read More »भारतेंदु युगीन काल की प्रवृत्तियां( Bharatendu Yugin kal ki pravartiya)
भारतेंदु युग (Bharatendu Yug) भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण काल है, जो 1868 से 1893 ईसा पूर्व तक के लगभग अवधि को कवर करता है। इस काल में, भारतीय समाज में विभिन्न प्रकार की परिवर्तनात्मक प्रक्रियाएं हुईं थीं। यहाँ कुछ मुख्य प्रवृत्तियाँ हैं: भारतीय पुराणों का पुनर्जागरण: भारतेंदु युग में, भारतीय साहित्यकारों ने भारतीय पुराणों, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को ...
Read More »रीतिमुक्त काव्य की प्रवृत्तियां(Rītimukta kavy ki pravartiya)
🌺रीतिमुक्त काव्य की प्रवृत्तियां 🌺 🌺 रीतिमुक्त काव्यधारा अपने युग में रची जा रही कविता की प्रतीक्रियात्मक कविता है। यह कविता काव्य शास्त्रीय विधि-विधानों एवं दरबारी संस्कृति से पराङ्मुख होकर रची गई है,इसीलिए इसे रीतिमुक्त कविता कहते हैं। ...
Read More »रीति काल की प्रवृत्तियां(riti kal ki pravartiya)
🌺रीति काल की प्रवृत्तियां 🌺 1. रीति निरूपण । 2. श्रृंगारिकता। 3. श्रृंगार रस की प्रधानता। 4. अलंकार का प्राधान्य- पांडि्त्य प्रदर्शन हेतु अलंकारों का चमत्कारों प्रयोग। 5. काव्य रूप- रसिकता प्रधान, दरबारी वातावरण में चमत्कार, मुक्तक काव्य शैली। 6. वीर रसात्मकता काव्यों का प्रणयन। 7. आश्रयदाताओं की प्रशंसा। ...
Read More »कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियां(Krishna kavy ki pravartiya)
कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियां(Krishna kavy ki pravartiya) 1. निर्गुण ब्रह्म के स्थान पर सगुण ब्रह्म की आराधना पर बल । 2. भक्ति के बहुआयामी स्वरूप का अंकन – संख्य एवं कांता भाव की प्रधानता,वात्सल्य भक्ति के साथ नवधा भक्ति को महत्व। 3. लीला गान में अत्यधिक रूचि। 4. गुरु महिमा और नाम स्मरण की महत्ता का बखान। 5. समकालीन सामाजिक ...
Read More »राम काव्य की प्रवृत्तियां(ram kavy ki pravatiya)
🌺राम काव्य 🌺 ◆ वाल्मीकि रामायण:– यह सर्वप्रसिद्ध राम काव्य है जिसका रचयिता महर्षि वाल्मीकि हैं। इसमें भगवान राम की जीवनी का विस्तृत वर्णन किया गया है। ◆ तुलसीदास रामायण:- संत तुलसीदास द्वारा रचित “रामचरितमानस” भी एक प्रमुख राम काव्य है। इसमें राम की कथा को भारतीय जनता के लिए समझाने का प्रयास किया गया है। ◆कंब रामायण :- इसे ...
Read More »सूफी काव्य की प्रवृत्तियां(sufi kavy ki pravatiya)
🌺सूफी काव्य 🌺 ◆ सूफी काव्य एक अद्वितीय रूप का काव्य है जो सूफी संतों की धार्मिकता और आध्यात्मिक उद्दीपना को प्रकट करता है। इसमें आत्मा के साथ दिव्यता, प्रेम, सांत्वना, और आत्म-ज्ञान के विषयों पर ध्यान केंद्रित होता है। सूफी काव्य की विशेषता यह है कि यह ...
Read More »निर्गुण काव्यधारा की प्रवृत्तियां[Nirgun kavyadhara kee pravrttiyan]
निर्गुण काव्यधारा की प्रवृत्तियां[Nirgun kavyadhara kee pravrttiyan] 1. निराकार ब्रह्म की उपासना निर्गुण सगुण में परे अनादि अनंत अनाम, अज्ञान ब्रह्म का नाम- जप। 2. गुरु की गुरुता के प्रति दिव्य श्रध्दा। 3. माया की व्यर्थता का प्रतिपादन। 4. संसार की असारता का निरूपण। 5. भक्ति भावना के विविध आयाम। *दास्यभक्ति, संख्य भक्ति, वात्सल्य भक्ति, शांत भक्ति,माधुर्य भक्ति। 6. सामाजिक ...
Read More »रासो साहित्य की प्रवृत्तियां(raso sahitya ki pravatiya)
रासो साहित्य की प्रवृत्तियां(raso sahitya ki pravatiya) 1. अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनों की अधिकता। 2. सामंती समाज की संस्कृति और यथार्थ का चित्रण। 3. ऐतिहासिकता, राष्ट्रीयता का अभाव। 4. युद्धों का जीवन वर्णन। 5. संदिग्ध और अर्द्ध प्रामाणिक रचनाओं को बहुलता। 6. नारी रूप का सौन्दर्यांकन। 7. प्रकृति के बहुआयामी स्वरूप का चित्रण। 8. वीर और श्रृंगार रस निरूपण। 9. विरहानुभूति की ...
Read More »जैन साहित्य की प्रवृत्तियां ( jain sahitya ki pravartiya)
जैन साहित्य की प्रवृत्तियां ( jain sahitya ki pravartiya) 1. आध्यात्मिक चिंतन की प्रधानता। 2. रहस्यवादी विचारधारा का समावेश। 3. बाह्य उपासना पूजा-पाठ, रूढ़ियों और शुद्ध आत्मानुभूति पर जोर। 4. दार्शनिकता और शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा। 5. जैन धर्म की प्रतिष्ठा। 6. नारी रूप का चित्रण । 7. भाव व्यंजना की अभिव्यक्ति। 8. रस निरूपण। 9. विरह की मार्मिक व्यंजना ...
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