उक्तिव्यक्तिप्रकरण(Uktivyaktiprakaraṇa) का परिचय

• रचनाकार – महाराज गोविन्दचन्द्र (शासनकाल 1154ई.) के सभा पं.दामोदर शर्मा

• 12वी शताब्दी 

• अपूर्ण ग्रंन्थ

• भाषा:- अपभ्रंश भाषा

• भाषा सिखाने के हेतु(दामोदर शर्मा ने राजकुमारों को शिक्षा देने के लिए इस ग्रंथ की रचना की।)

राजकुमारों को स्थानीय भाषा का ज्ञान कराने के लिए इसे लिखा गया।

• उक्ति शब्द की व्याख्या करते हुए मुनि जिन विजय लिखते है ‘उक्ति‘ शब्द का अर्थ लोकोक्त अर्थात् लोक व्यवहार में प्रयुक्त भाषा पद्धति जिसे हम हिंन्दी में बोली कह सकते है। लोकभाषात्मक ‘उक्ति‘ की जो ‘व्यक्ति‘ अर्थात् व्यक्तता स्पष्टीेकरण करे वह है ‘उक्ति -व्यक्ति – शास्त्र‘।

• डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार इस पुस्तक का नाम ‘उक्ति – व्यक्ति‘ था। ग्रंथ की कारिकाओं से यही ज्ञात होता है। पांच प्रकरणों में बँट होने के कारण इसका नाम ‘उक्ति – व्यक्ति – प्रकरण‘ हो गया।

• सुनीति कुमार चटर्जी ने इसकी भाषा को प्राचीन कोसली (अवधी)कहा है।

• आ.हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘‘उक्तिव्यक्तिप्रकरण महत्वपूर्ण ग्रंथ है।इससे बनारस और आसपास के प्रदेशों की संस्कृति और भाषा आदि पर अच्छा प्रकाश पड़ता है और उस युग के काव्यरूपों के संबंध में भी थोड़ी बहुत जानकारी प्राप्त होती है।‘‘

• इसकी पंक्ति:-
‘‘ वेद पढब स्मृति अभ्यासिब,पुराण देखब,धर्म करब।‘‘

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