• रस अखंड है। • रस स्वप्रकाशानंद है। • रस चिन्मय है। • रस सचेतन अथवा प्राणवान् आनंद है। • रस अपने आकर से अभिन्न है। • रस वेद्यान्तर स्पर्शशून्य है • रस (काव्यास्वाद) को ब्रह्मास्वाद न कहकर उसका सहोदर कहा जाता है। • रस लोकोत्तर चमत्कार का प्राण है। • रस अपने आकार से अभिन्न रूप से आस्वादित किया ...
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