Tag Archives: Pravartiya

भारतेंदु युगीन काल की प्रवृत्तियां( Bharatendu Yugin kal ki pravartiya)

भारतेंदु युगीन काल भारतेंदु युगीन काल की प्रवृत्तियांकी प्रवृतियां

भारतेंदु युग (Bharatendu Yug) भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण काल है, जो 1868 से 1893 ईसा पूर्व तक के लगभग अवधि को कवर करता है। इस काल में, भारतीय समाज में विभिन्न प्रकार की परिवर्तनात्मक प्रक्रियाएं हुईं थीं। यहाँ कुछ मुख्य प्रवृत्तियाँ हैं: भारतीय पुराणों का पुनर्जागरण: भारतेंदु युग में, भारतीय साहित्यकारों ने भारतीय पुराणों, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को ...

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रीतिमुक्त काव्य की प्रवृत्तियां(Rītimukta kavy ki pravartiya)

                                            ?रीतिमुक्त काव्य की प्रवृत्तियां ? ? रीतिमुक्त काव्यधारा अपने युग में रची जा रही कविता की प्रतीक्रियात्मक कविता है। यह कविता काव्य शास्त्रीय विधि-विधानों एवं दरबारी संस्कृति से पराङ्मुख होकर रची गई है,इसीलिए इसे रीतिमुक्त कविता कहते हैं। ...

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रीति काल की प्रवृत्तियां(riti kal ki pravartiya)

                      ?रीति काल की प्रवृत्तियां ? 1. रीति निरूपण । 2. श्रृंगारिकता। 3. श्रृंगार रस की प्रधानता। 4. अलंकार का प्राधान्य- पांडि्त्य प्रदर्शन हेतु अलंकारों का चमत्कारों प्रयोग। 5. काव्य रूप- रसिकता प्रधान, दरबारी वातावरण में चमत्कार, मुक्तक काव्य शैली। 6. वीर रसात्मकता काव्यों का प्रणयन। 7. आश्रयदाताओं की प्रशंसा। ...

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कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियां(Krishna kavy ki pravartiya)

कृष्ण काव्य की प्रवृतियां

कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियां(Krishna kavy ki pravartiya) 1. निर्गुण ब्रह्म के स्थान पर सगुण ब्रह्म की आराधना पर बल । 2. भक्ति के बहुआयामी स्वरूप का अंकन – संख्य एवं कांता भाव की प्रधानता,वात्सल्य भक्ति के साथ नवधा भक्ति को महत्व। 3. लीला गान में अत्यधिक रूचि। 4. गुरु महिमा और नाम स्मरण की महत्ता का बखान। 5. समकालीन सामाजिक ...

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जैन साहित्य की प्रवृत्तियां ( jain sahitya ki pravartiya)

जैन साहित्य की प्रवृत्तियां

जैन साहित्य की प्रवृत्तियां ( jain sahitya ki pravartiya) 1. आध्यात्मिक चिंतन की प्रधानता। 2. रहस्यवादी विचारधारा का समावेश। 3. बाह्य उपासना पूजा-पाठ, रूढ़ियों और शुद्ध आत्मानुभूति पर जोर। 4. दार्शनिकता और शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा। 5. जैन धर्म की प्रतिष्ठा। 6. नारी रूप का चित्रण । 7. भाव व्यंजना की अभिव्यक्ति। 8. रस निरूपण। 9. विरह की मार्मिक व्यंजना ...

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नाथ साहित्य की प्रवृत्तियां(Nath Sahitya ki pravartiya)

नाथ साहित्य की प्रवृतियां

नाथ साहित्य की प्रवृत्तियां(Nath Sahitya ki pravartiya) 1. हठयोग की साधना (काया साधना )पर बल । 2. साधनात्मक स्तर पर शून्यवाद की प्रतिष्ठा। 3. दर्शन के क्षेत्र में शैवमत का प्रतिपादन ।(साधनात्मक रहस्यवाद ) 4. प्रवृत्तिमूलक मार्ग के स्थान पर निवृत्ति मूलक मार्ग अपनाने पर बल। 5. वर्णाश्रम व्यवस्था पर तीखा प्रहार । 6. नारी को साधना के क्षेत्र से ...

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सिद्ध साहित्य की प्रवृतियां (sidh sahitya ki pravartiya)

sidh sahitya ki pravartiya

सिद्ध साहित्य की प्रवृतियां (sidh sahitya ki pravartiya) 1. योग के क्षेत्र में काया साधना की विभिन्न भूमिकाओं का निरूपण 2. ज्ञान की उपेक्षा 3. शून्यवाद की प्रतिष्ठा 4. तांत्रिक साधना के रूप में मद्य -मैथुन का सेवन (वाममार्गी साधना पद्धति) 5. वर्णाश्रम व्यवस्था रूढियों एवं बाह्याडंबरो का खण्डन 6. शांत एवं श्रृंगार रस की प्रधानता 7. अंतर्मुखी साधना पर ...

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आदिकाल की प्रवृत्तियां (Aadikal ki Pravartiya)

आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां

आदिकाल की प्रवृत्तियां (Aadikal ki Pravartiya) 1. ऐतिहासिकता का अभाव 2. युद्ध वर्णन में सजीवता 3. प्रमाणिकता में संदेह 4. वीर और संघर्ष का समन्वय (हम्मीर रासो और खुमान रासो में वीर रस के साथ संघर्ष के व्यक्ति हुई है। ) 5. आश्रयदाताओं की प्रशंसा 6. संकुचित राष्ट्रीयता 7. कल्पना की प्रचुरता 8. डिंगल – पिंगल भाषा का प्रयोग 9. ...

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