‘ढोला मारु रा दूहा‘ काव्य में रस(‘dhola maaru ra dooha‘ kaavy mein ras)

?ढोला मारु रा दूहा काव्य में रस ?

◆ ढोला मारु रा दूहा’ काव्यग्रंथ में निम्नलिखित रस प्राप्त होते हैं:-

★ श्रृंगार रस :- प्रायः सम्पूर्ण काव्यग्रंथ में इस रस के दर्शन होते हैं। श्रृंगार के दोनों भेद मिलते है:-
● संयोग श्रृंगार:- इसका का वर्णन दोहा संख्या 518 से 582 तक
● विप्रलंभ श्रृंगार :- इसका का वर्णन दोहा संख्या 348 से 360 तक

★ वीर रस :- इसमें वीर रस की अभिव्यक्ति एकाच स्थल पर मिलती है। उदाहरणार्थ दोहा संख्या 340- 341 लिये जा सकते है।

★ रोद्र रस :- इसमें रौद्र रस के भी दर्शन होते हैं। दो० सं० 461 इसके लिये उदाहरणस्वरूप लिया जा सकता है।

★ करूण रस : मारवणी की मृत्यु देख कर साथ वालो की जो शोक हुआ है, वहां करूण रस की अभिव्यक्ति कही जा सकती है। उदाहरणार्थ दोहा संख्या 606-607 लिये जा सकते है।

★ शांत रस :- शांतरस का संकेत दोहा सं० 616 में माना जा सकता है।

★ भयानक रस,अद्भुत रस, वीभत्स रस, वत्सल रस,हास्य रस और भक्ति रस :- इस काव्य में रस की प्राप्ति नहीं होती।

 

ढोला मारु रा दूहा कथा सार

ढोला मारु रा दूहा (dhola maru ra dooha)

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