?? स्कंदगुप्त नाटक प्रश्नोत्तरी ??
1. स्कंदगुप्त नाटक कब प्रकाशित हुआ?
(A) 1928?
(B) 1920
(C) 1933
(D) 1931
?प्रकाशन :- 1928ई.
2. स्कंदगुप्त नाटक के संबंध में कौनसा कथन सत्य नही है?
(A) इस नाटक के पाँच अंक है।
(B) इस नाटक के पाँच अंकों में कुल दृश्य :- 44 है।?
(C) इस नाटक में कुल 17 गीत है।
(D) तीन अंकों में सात- सात दृश्य है।
● अंक :- पाँच अंक
? कुल दृश्य :- 33 दृश्य(इसके पाँच अंक क्रमशः 7, 7, 6, 7 तथा 6 दृश्यों में विभक्त है।)
● कुल :- 17 गीत
3. स्कंदगुप्त नाटक का कौनसा उद्देश्य नही है?
(A) विश्व-प्रेम, मानवता, लोक कल्याण, सहिष्णुता तथा क्षमाशीलता का प्रचार ।
(B) राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार ।
(C) आंतरिक कूटनीतियों का प्रचार। ?
(D)देशभक्ति का स्वर अधिक मुखरित हुआ है।
? यह चन्द्रगुप्त नाटक का उद्देश्य:- आंतरिक कूटनीतियों का प्रचार।
★ ‘स्कन्दगुप्त’ नाटक का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार ।
★ विश्व-प्रेम, मानवता, लोक कल्याण, सहिष्णुता तथा क्षमाशीलता का प्रचार भी प्रस्तुत नाटक में किया है।
★ ‘स्कन्दगुप्त’ नाटक में देशभक्ति का स्वर अधिक मुखरित हुआ है।
4. स्कन्दगुप्त नाटक के संबंध में निम्नलिखित में से कौनसा नारी पात्र सुमेलित नही है?
(A) देवकी :- स्कंदगुप्त की माता
(B) अनन्तदेवी :- पुरगुप्त की माता
(C) देवसेना :- बंधुवर्मा की बहिन
(D) विजया :- बंधुवर्मा की स्त्री
?विजया :- मालव के धनकुबेर की कन्या
● जयमाला :- बंधुवर्मा की स्त्री, मालव की रानी
● देवकी :- कुमारगुप्त की बड़ी रानी, स्कंदगुप्त की माता
● अनन्तदेवी :- कुमारगुप्त की छोटी रानी ,पुरगुप्त की माता
● देवसेना :- बंधुवर्मा की बहिन
9. स्कन्दगुप्त नाटक के संबंध में निम्नलिखित में से कौनसा पुरुष पात्र सुमेलित नही है?
(A) कुमारगुप्त :- मगध का सम्राट
(B) प्रपंचबुद्धि :- अन्तर्वेद का विषयपति
(C) पर्णदत्त :- मगध का महानायक
(D) मातृगुप्त :- काव्यकर्त्ता कालिदास
? प्रपंचबुद्धि:- बौद्ध कापालिक
● शर्वनाग :- अन्तर्वेद का विषयपति
● भीमवर्मा :- बन्धुवर्मा का भाई
● बन्धुवर्मा :- मालव का राजा
● मातृगुप्त :- काव्यकर्त्ता कालिदास
● पर्णदत्त :- मगध का महानायक
10. “बजा दो वेणु मनमोहन! बजा दो!
हमारे सुप्त जीवन को जगा दो
विमल स्वातन्त्रय का बस मंत्र फूंको।
हमें सब भीति – बन्धन से छुड़ा दो ” स्कंदगुप्त नाटक में यह गीत किसने गाया था?
(A) कुमारगुप्त
(B) स्कंदगुप्त ?
(C) गोविन्दगुप्त
(D) मातृगुप्त
? बजा दो वेणु मनमोहन! बजा दो!
हमारे सुप्त जीवन को जगा दो
विमल स्वातन्त्रय का बस मंत्र फूंको।
हमें सब भीति – बन्धन से छुड़ा दो।(स्कन्दगुप्त द्वारा गाया गया एकमात्र प्रार्थना गीत है जिसमें कवि ईश्वर से स्वतंत्रता की प्रार्थना करता है।)
11. निम्नलिखित में से स्कंदगुप्त नाटक से देवसेना का कौनसा गीत नही है?
(A)”शून्य गगन में खोजता जैसे चंद्र निराश, राका में रमणीय यह किसका मधुर प्रकाश।”
(B) “देश की दुर्दशा निहारोगे, डूबते को कभी उबारोगे।”
(C) “आह वेदना मिली विदाई, मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई… विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे, इसने मन की लज गँवाई।”
(D) “उमड़ कर चली भिगोने आज तुम्हारा निश्चल अंचल छोर”?
? उमड़ कर चली भिगोने आज तुम्हारा निश्चल अंचल छोर (विजया, तृतीय अंक)
● घने प्रेम-तरु तले
फूल चू पड़े बात से भरे हृदय का घाव,
मन की कथा व्यथा-भरी बैठो सुनते जाव,
मिलो स्नेह से गले।
घने प्रेम-तरु तले। (देवसेना, द्वितीय अंक)
● शून्य गगन में खोजता जैसे चंद्र निराश, राका में रमणीय यह किसका मधुर प्रकाश (देवसेना, पाँचवाँ अंक)
● देश की दुर्दशा निहारोगे, डूबते को कभी उबारोगे (देवसेना, पाँचवाँ अंक)
● आह वेदना मिली विदाई, मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई… विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे, इसने मन की लज गँवाई। (देवसेना, पाँचवाँ अंक)
12.पलना बनें प्रलय की लहरें
शीतल हो ज्वाला की आंधी ……। प्रभु का हो विश्वास सत्य तो सुख के तन फहरैं। स्कंदगुप्त नाटक में यह गीत किसने गाया था?
(A) देवकी ?
(B) अनन्तदेवी
(C) देवसेना
(D) विजया
● पलना बनें प्रलय की लहरें
शीतल हो ज्वाला की आंधी करुणा केघन छहरें।
दया दुलार करें पल भर भी विपदा पास न ठहरे। प्रभु का हो विश्वास सत्य तो सुख के तन फहरैं।
(यह गीत कुमार गुप्त की बडी रानी तथा स्कन्द गुप्त की माता देवकी की मनः स्थिति की सूचना देता है ।)
13. “न छेडना उस अतीत स्मृति से
खिंचे हुए बीन-तार … हृदय धूल में मिला दिया है उसे चरण चिन्ह सा किया है । ” स्कंदगुप्त नाटक से इस गीत में नर्तकियां ने किसको संबोधित कर रही है?
(A) कोयल ?
(B) तोता
(C) कपोत
(D) चकवा
? न छेडना उस अतीत स्मृति से
खिंचे हुए बीन-तार कोकिल
करुण रागिनी तडप उठेगी
सुना न ऐसी पुकार कोकिल
हृदय धूल में मिला दिया है
उसे चरण चिन्ह सा किया है
खिले फूल सब गिरा दिया है
न अब बसन्ती बहार कोकिल।
(नर्तकियां कोयल को सम्बोधित करते हुए कहतीं हैं)
14.”गौ, ब्राह्मण और देवताओं की ओर कोई भी आत तायी आँख उठाकर नहीं देखता । लौहित्य से सिंधु तक, हिमालय की कन्दराओं में भी, स्वच्छन्दतापूर्वक सामगान होने लगा” स्कंदगुप्त नाटक में यह कथन किसने कहा?
(A) प्रपंचबुद्धि
(B) पर्णदत्त
(C) भीमवर्मा ?
(D) बन्धुवर्मा
?”आर्य साम्राज्य का उद्धार हुआ है बहिन ! सिन्धु के प्रदेश से म्लेच्छ-राज ध्वंस हो गया है। प्रवीर सम्राट् स्कन्दगुप्त ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की है। गौ, ब्राह्मण और देवताओं की ओर कोई भी आत तायी आँख उठाकर नहीं देखता । लौहित्य से सिंधु तक, हिमालय की कन्दराओं में भी, स्वच्छन्दतापूर्वक सामगान होने लगा ।”(भीमवर्मा का कथन)
15. “मुझे इसका दुःख है कि मैं मर क्यों न गई; मैं क्यों अपने कलंकपूर्ण जीवन को पालती रही। “स्कंदगुप्त नाटक में यह कथन किसने कहा?
(A) मालिनी
(B) कमला ?
(C) मालिनी
(D) विजया
? “मुझे इसका दुःख है कि मैं मर क्यों न गई; मैं क्यों अपने कलंकपूर्ण जीवन को पालती रही, मटार्क ! तेरी माँ की एक ही प्राशा थी कि पुत्र देश का सेवक होगा, म्लेच्छों से पददलित भारत-भूमि का उद्धार करके मेरा कलंक धो डालेगा, मेरा सिर ऊँचा होगा। परन्तु हाय !”( कमला का कथन)
● कमला :- भटार्क की जननी
● रामा :- शर्वनाग की स्त्री
● मालिनी :- मातृगुप्त की प्रणयिनी
16. निम्नलिखित में से कौनसा कथन स्कंदगुप्त से देवसेना का नहीं हे?
(A) “हम क्षत्राणी है, चिरसंगिनी खड्गलता का हम लोगों से चिर स्नेह है।” ?
(B) “कष्ट हृदय की कसौटी है, तपस्य अग्नि है। सम्राट! यदि – इतना भी न कर सके तो क्या ! …. मेरे इस जीवन के देवता और उस जीवन के प्राप्य ! क्षमा!”
(C.)“विश्वप्रेम, सर्वभूत – हित कामना परम धर्म है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि अपने पर प्रेम न हो।”
(D) “आज ही मै प्रेम के नाम पर जी खोलकर रोती हूँ, बस, फिर नहीं। ..,.तभी मैं संगीत की वीणा मिला लेती हूँ। उसी में सब छिप जाता है।”
?“हम क्षत्राणी है, चिरसंगिनी खड्गलता का हम लोगों से चिर स्नेह है।” (जयमाला का कथन)
● “कष्ट हृदय की कसौटी है, तपस्य अग्नि है। सम्राट! यदि – इतना भी न कर सके तो क्या ! सब क्षणिक सुखों का अंत है। जिसमें सुखों का अंत न हो, इसलिए सुख करना ही न चाहिए। मेरे इस जीवन के देवता और उस जीवन के प्राप्य ! क्षमा ।’ (देवसेना का कथन, 5 अंक, 6 दृश्य )
● “विश्वप्रेम, सर्वभूत – हित -कामना परम धर्म है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि अपने पर प्रेम न हो।” (देवसेना की उदार वाणी का जयमाला विरोध करती हुये कहती है)
● ‘मैने उनसे (स्कंद से ) प्रेम की चर्चा करके उनका अपमान नहीं होने दिया है। आज ही मै प्रेम के नाम पर जी खोलकर रोती हूँ, बस, फिर नहीं। यह एक क्षण का रुदन अनंतर स्वर्ग का सृजन करेगा जब हृदय में रुदन का स्वर उठता है, तभी मैं संगीत की वीणा मिला लेती हूँ। उसी में सब छिप जाता है।”(देवसेना सखियों से कहती है)
● “कूलों में उफनकर बहनेवाली नदी, तुमुल तरंग, प्रचंड पवन और भयानक वर्षा; परंतु उसमें भी नाव चलानी ही होगी।” (देवसेना का कथन)
स्कन्दगुप्त नाटक (Skandagupt natak)
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