तुलसी के राम[tulasee ke ram]

? तुलसी के राम ?

◆ राम ही मेरे माता-पिता , बंधु, गुरु और शुभेच्छु है।

◆ मेरे स्वामी सखा और सहायक है

◆ देश, कोष, कुल, कर्म, धर्म, धन, धाम, पृथ्वी और गति भी राम ही है।

◆ मेरी जाति – पांति भी राम ही है और सम्मान भी उन्ही से ही है।

◆ परमार्थ स्वार्थ और सुयश आदि सब कुछ राम की कृपा से।

◆ मेरा कल्याण तो वर्तमान और भविष्य दोनो में श्रीराम से ही संभव है।
“कह तुललीदास अब जब कबहुं एक राम ते मोर भला।।”【अब – वर्तमान, जब – भविष्य】

? राम नाम ?

◆ ऋग्वेद में ‘राम’ का एक बार हुआ :- राजा के रूप में

◆ राम दाशरथि, परशुराम और बलराम, इन तीनों का उल्लेख सर्वप्रथम रामायण और महाभारत में हुआ है।

◆ पहले तैत्तिरीय आरण्यक में ‘राम’ शब्द का प्रयोग ‘पुत्र’ के अर्थ मे हुआ है।

◆ नाम राम को अंक है, सब साबन है सून।
अंक गये कछु हाच नहि, अंक रहे दस गून ।। – तुलसी (दोहावली)

◆ रामनाम मणि दीप घरु, जीह-देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरहु, जो चाहसि उंजियार ।। -तुलसी

◆ तुलसी ‘रा’ के कहत हो, निकसत सकल विकार।
पुनि आवन पावत नहीं, देत “म” कार किवार ।।- तुलसी

◆ रामनाम सुन्दर करतारी।
संशय विहंग उड़ावन हारी।- तुलसी

◆ सुमिरत करतल सिद्धि सब, पग पग परमानन्द ॥ – तुलसी (दोहा०)

◆ तुलसी राम सनेह करु, त्यागु सकल उपचार।
जैसे घटत न अंक नौ, नौ के लिखत पहार ।।- तुलसी

◆ ब्रह्म राम तें नामु बड़, बरदायक बरदानि ।- तुलसी

◆ राम चरित सत्कोटि महं, लिय महेस जिय जानि ।।
राम नाम कलि कामतरु, सकल सुमंगल कन्द। -तुलसी

◆ श्वास श्वास पर राम भज, वृथा श्वास मत खोय।
ना जाने यह श्वास को, आवन होय न होय ।। – तुलसी

◆ दैविक दैहिक भौतिक तापा। रामराज्य काहुँहि नहि व्यापा ।। – तुलसी 【 राम-राज्य 】

◆ रामायण सुर तरु की छाया।
दुःख भय दूर निकट जो आया ।। – तुलसी
【 रामायण】

◆ रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्रान।
हिन्दुआन को वेद सम, जवनहि प्रगट कुरान ।।
– रहीम 【 रामायण】

⭐⭐ तुलसीदास के संबंध में ⭐⭐

◆ गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल की सगुण धारा के अंतर्गत आने वाली रामकाव्य धारा के प्रतिनिधि कवि हैं।

◆ उन्होंने अपने सभी काव्य- ग्रंथों में राम के प्रति अनन्य भक्ति भाव व्यक्त किया है, इसीलिए उन्हें राम का एकनिष्ठ एवं अनन्य भक्त कहा गया है।

◆ वे चातक को प्रेम और भक्ति का परम आदर्श मानते हुए कहते हैं
एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास ।
एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास ॥

◆ गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी के उन महान कवियों में अग्रगण्य हैं जिनकी कविता का मूल उद्देश्य ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ होता हैं।

◆ वे कविता का उद्देश्य लोकमंगल का विधान करना मानते हैं।

◆ तुलसी ने अपने चरितनायक ‘राम’ को एक आदर्श चरित्र के रूप में प्रस्तुत करते हुए लोकशिक्षा का विधान किया है।

◆ उनका सम्पूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है इसीलिए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें ‘लोकनायक’ कहा है।

◆ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके।तुलसीदास महात्मा बुद्ध के बाद भारत के सबसे बड़े लोकनायक थे। उनका सम्पूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।”

◆ गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी के ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपनी काव्य-रचना का मूल उद्देश्य ‘लोकमंगल’ का विधान करना स्वीकार किया है।

◆ वे कहते हैं –
कीरति भनिति भूति भल सोई।
सुरसरि सम कब कहं हित होई ॥

? पढ़ना जारी रखने के लिए यहाँ क्लिक करे।

? Pdf नोट्स लेने के लिए टेलीग्राम ज्वांइन कीजिए।

? प्रतिदिन Quiz के लिए facebook ज्वांइन कीजिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

error: Content is protected !!