1. मृणाल के कथन :-
• “मैं नहीं बुआ होना चाहती। बुआ। छीः देख, चिड़िया कितनी ऊंची उड़ जाती है। मैं चिड़िया होना चाहती हूं।”
• “तुम सब लोगों के लिए मैं पराई हूं, तेरी मां ने मुझे धक्का देकर पराया बना दिया है।”
• “कन्या जाति क्या अपने पिता के घर ही होती है? मैं कोई निराली जनमी हूं?”
• “मैं मर सकती थी, लेकिन मैं नहीं मरी। मरने को अधर्म जानकर ही मैं मरने से बच गई। किसके सहारे मैं उस मृत्यु के अधर्म से बची?”
• “पापिनी हो सकती हूं, पर उसके ऊपर क्या अकृतज्ञ तक के बीच बनो नहीं प्रमोद तुम सब लोग मुझे मरा हुआ क्यों नहीं समझ लेते हो क्योंकि मुझे तंग करते हो?”
• “तुम समझते हो यह आदमी उसके साथ में रह रही हूं मुझे ज्यादह दिन रख सकेगा। नहीं,मैं जानती हूं, एक दिन यह मुझे छोड़कर चला जायेगा। तभी इस कोठरी से मेरे उठने का भी दिन होगा।”
• “दान स्त्री का धर्म है। नहीं तो उसका और क्या धर्म है? उससे मन मांगा जाएगा, तन भी मांगा जाएगा। सती का आदर्श और क्या है? पर उसकी बिक्री न,न, यह न होगा।”
• “मैं स्त्री – धर्म को पति- व्रत धर्म ही मानती हूं। उसका स्वतंत्र धर्म में नहीं मानती।”
• “एक बार घर आकर मैं समझ गई थी कि वैसे मैके जाना ठीक नहीं है। स्त्री जब तक ससुराल की है, तभी तक मैके की है, ससुराल से टूटी तब मैके से तो आप ही में टूट गई थी।”
• “गर्म तवे पर जैसे जल की बूंद चटककर छिटक रहती है वैसे ही मेरी ओर से कोई ठंडा बोध तब स्फोट ही पैदा करता है।”
• उसकी प्यारी थी और प्यारी हूं वह मैं ही जानती हूं।( उसकी :- कोयले वाले बनिया के लिए )
• “वह जान गया था कि मैं उसकी सर्स्वस्व नहीं हूं, मैं बस एक – एक बदजात व्यभिचारिणी स्त्री हूं।”( यहां ‘वह’ कोयले वाले बनिया के लिए आया है।)
• “जीवन एक परीक्षा है।”
• ” जब तक पास है तब तक वह पुरुष अन्य नहीं है, मेरा सब कुछ उसका है। उसकी सेवामें मैं त्रुटि नहीं कर सकती। पतिव्रत धर्म यही तो कहता है।”(यहां ‘वह’ कोयले वाले बनिया के लिए आया है।)
• “मनुष्य हो,तो भीतर तक मनुष्य होना होगा। कलई वाला सदाचार यहां खुलकर उघड़ रहता है। यहां खरा कंचन ही टिक सकता है, क्योंकि उसे जरूरत ही नहीं कि वह कहे कि मैं पीतल नहीं हूं, यहां कंचन की मांग नहीं है, पीतल से घबराहट नहीं है। इससे भीतर पीतल रखकर ऊपर कंचन दिखने का लोभ यहां छन – भर नहीं टिकता है। बल्कि यहां पीतल का ही मूल्य है।”
2. प्रमोद के कथन :-
• “तू राक्षस है और मैं इस घर में पैर भी नहीं रक्खूंगा।” (प्रमोद ने अपनी मां से कहा)
• “इस सामने बैठी प्रगल्भ नारी को घृणा करना चाहता हूं या उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहता हूं। वह नारी अति निर्मम स्नेह- भाव से मुझे देखती रही।”( यह कथन प्रमोद ने अपनी बुआ के लिए कहा है।)
• “सृष्टि गलत है। समाज गलत है। जीवन ही हमारा गलत है । सारा चक्कर यह ऊंटपटांग है। इसमें तर्क नहीं है, संगति नहीं है, कुछ नहीं है।”
• “जिंदगी है, चलती है। कौन किसके लिए थमता है? मरते भी मर जाते हैं, लेकिन जिनको जीना है वे तो मुर्दों को लेकर वक्त से पहिले मर नहीं सकते। गिरते के साथ कोई गिरता है? यह तो चक्कर है। गिरता गिरे, उसे उठाने की सोचने में तुम लगे कि पिछड़े, इससे चले चलो। पर इससे चला चली के चक्कर में अकस्मात् मुझे और भी पता लगा।”
3. प्रमोद के पिता का कथन :-
• “यह झूठ नहीं है मृणाल, कि पत्नी का धर्म पति है। घर पति – गृह है। उसका धर्म,कर्म और उसका मोक्ष भी वही है। समझती तो हो बेटा।”
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