ध्रुवस्वामिनी नाटक प्रश्नोत्तरी(Dhruvasvamini Natak Quiz)

?? ध्रुवस्वामिनी नाटक प्रश्नोत्तरी ??

1. ध्रुवस्वामिनी नाटक कब प्रकाशित हुआ?

(A) 1928

(B) 1920

(C) 1933?

(D) 1931

?प्रकाशन :- 1933ई.

2. ध्रुवस्वामिनी नाटक के संबंध में कौनसा कथन सत्य नही है?

(A) इस नाटक के तीन अंक है।

(B) इस नाटक के तीन अंकों में कुल दृश्य :- 3 है।

(C) इस नाटक में कुल 10 गीत है।?

(D) यह ऐतिहासिक नाटक है।

? नाटक में गीत :- चार
◆ अंक :- 3 अंक
◆ दृश्य :- 3 दृश्य( प्रत्येक अंक में एक दृश्य)

3. जयशंकर प्रसाद का अंति नाटक कौनसाम है?

(A) स्कंदगुप्त

(B) चन्द्रगुप्त

(C) ध्रुवस्वामिनी?

(D) राजश्री

? जयशंकर प्रसाद का यह अंतिम नाटक हैं।

4. ध्रुवस्वामिनी नाटक का कौनसा उद्देश्य नही है?

(A) विश्व-प्रेम, मानवता, लोक कल्याण, सहिष्णुता तथा क्षमाशीलता का प्रचार ।?

(B) इतिहास को पुननिर्मित करने की आकांक्षा

(C) राष्ट्रीय चेतना, जातीय गौरव आदि से प्रेरित होकर इतिहास के आदर्श चरित्रों की स्थापना।

(D)अतीत के सांस्कृतिक चित्रण की भावना।।

? विश्व-प्रेम, मानवता, लोक कल्याण, सहिष्णुता तथा क्षमाशीलता का प्रचार ।(स्कंदगुप्त नाटक का उद्देश्य )

◆ नाटक का उद्देश्य :-

1. इतिहास को पुननिर्मित करने की आकांक्षा

2. अतीत के सांस्कृतिक चित्रण की भावना।

3. राष्ट्रीय चेतना, जातीय गौरव आदि से प्रेरित होकर इतिहास के आदर्श चरित्रों की स्थापना ।

4. वर्तमान समस्याओं का अतीत के माध्यम से प्रस्तुतीकरण और उनका समाधान निकालने की चेष्टा ।

5. मानव जीवन की रोचक रूप में व्याख्या करना.

5. “यौवन तेरी चंचल छाया, इसमें बैठ घूँट भर पी लूँ जो रस तू है लाया। पल भर रुकने वाले! कह तू पथिक! कहाँ से आया ?”ध्रुवस्वामिनी नाटक में यह गीत किसने गाया है?

(A) कोमा?

(B) शकराज

(C) ध्रुवस्वामिनी

(D) मंदाकिनी

? यौवन तेरी चंचल छाया, इसमें बैठ घूँट भर पी लूँ जो रस तू है लाया। पल भर रुकने वाले! कह तू पथिक! कहाँ से आया ?” (कोमा, द्वितीय अंक में।)

6. “पैरों के नीचे जलधर हो, बिजली से उनका खेल चले विश्राम शांति को शाप दिये, ऊपर ऊँचे सब झेल रहे।” ध्रुवस्वामिनी नाटक में यह गीत किसने गाया है?

(A) कोमा

(B) शकराज

(C) ध्रुवस्वामिनी

(D) मंदाकिनी?

?” पैरों के नीचे जलधर हो, बिजली से उनका खेल चले विश्राम शांति को शाप दिये, ऊपर ऊँचे सब झेल रहे।”(मंदाकिनी, प्रथम अंक में।)

● ” यह कसक अरे आँसू सह जा… शीतलता फैलाता बह जा।” ( मंदाकिनी, प्रथम अंक में)

7. ‘मैं पुरुष हूं ? नहीं मैं अपनी आंखों से अपना वैभव और अधिकार दूसरों को अन्याय से छिनता देख रहा हूं और मेरी वाग्दत्ता पत्नी मेरी अनुत्साह से मेरी नहीं रही। “जयशंकर प्रसाद के किस नाटक का कथन है?

(A) स्कंदगुप्त

(B) चन्द्रगुप्त

(C) ध्रुवस्वामिनी?

(D) राजश्री

?”मैं पुरुष हूं ? नहीं मैं अपनी आंखों से अपना वैभव और अधिकार दूसरों को अन्याय से छिनता देख रहा हूं और मेरी वाग्दत्ता पत्नी मेरी अनुत्साह से मेरी नहीं रही। “(ध्रुवस्वामिनी नाटक से,चन्द्रगुप्त का कथन)

8. ‘मैं पुरुष हूं ? नहीं मैं अपनी आंखों से अपना वैभव और अधिकार दूसरों को अन्याय से छिनता देख रहा हूं और मेरी वाग्दत्ता पत्नी मेरी अनुत्साह से मेरी नहीं रही। “ध्रुवस्वामिनी नाटक से यह कथन किसका है?

(A) रामगुप्त

(B) चन्द्रगुप्त?

(C) ध्रुवस्वामिनी

(D) मंदाकिनी

9. निम्नलिखित में से ध्रुवस्वामिनी नाटक से ध्रुवस्वामिनी का कौनसा कथन नही है?

(A) “पुरुष ने स्त्रियों को अपनी पशु संपत्ति समझकर उस पर अत्याचार करने का अभ्यास बना लिया है।”

(B) “यदि तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते अपने कुल की मर्यादा नारी का गौरव नहीं बचा सकते तो तुम्हें बेचने का अधिकार नहीं है। “

(C) “मैं उपहार में देने की वस्तु शीतल मणि नहीं हूं, मुझमें रक्त की तरह लालिमा है, मेरा हृदय उष्ण है और आत्मसम्मान की ज्योति है। उसकी रक्षा में ही करूंगी।”

(D) “अमात्य यह कैसी व्यवस्था है तुम मृत्युदंड के लिए उन्मुक्त ….. देखो बचोगे तो राष्ट्र और सम्मान ही बचेगा नहीं तो सर्वनाश ।” ?

? अमात्य यह कैसी व्यवस्था है तुम मृत्युदंड के लिए उन्मुक्त महादेवी आत्महत्या करने के लिए प्रस्तुत फिर यह हिंसक क्यों एक बार अंतिम बल परीक्षा कर देखो बचोगे तो राष्ट्र और सम्मान ही बचेगा नहीं तो सर्वनाश ।” (मंदाकिनी का

● ” पुरुष ने स्त्रियों को अपनी पशु संपत्ति समझकर उस पर अत्याचार करने का अभ्यास बना लिया है, वह मेरे सकता, तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते तो मुझे बेच भी नहीं सकते।” (ध्रुवस्वामिनी का कथन)

● ” यदि तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते अपने कुल की मर्यादा नारी का गौरव नहीं बचा सकते तो तुम्हें बेचने का अधिकार नहीं है। ” (ध्रुवस्वामिनी का कथन)

● मैं उपहार में देने की वस्तु शीतल मणि नहीं हूं, मुझमें रक्त की तरह लालिमा है, मेरा हृदय उष्ण है और आत्मसम्मान की ज्योति है। उसकी रक्षा में ही करूंगी। (ध्रुवस्वामिनी का कथन ).

ध्रुवस्वामिनी नाटक

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