ध्रुवस्वामिनी नाटक(dhruvswamini natak)

  💐💐 ध्रुवस्वामिनी (नाटक)💐💐

◆ प्रकाशन -: 1933 ई.

◆ अंक :- 3 अंक

◆   दृश्य :- 3 दृश्य( प्रत्येक अंक में एक दृश्य)

◆  नाटक में गीत  :- चार

◆  नाटक की नायिका :- ध्रुवस्वामिनी

◆ जयशंकर प्रसाद का यह अंतिम नाटक हैं।

◆ ऐतिहासिक नाटक

◆ नाटक का कथानक गुप्तकाल से सम्बद्ध और शोध द्वारा इतिहाससम्मत है।

◆  प्रसाद जी के अनुसार विशाखदत्त द्वारा रचित संस्कृत नाटक देवी चंद्रगुप्त में यह घटना अंकित है जिसमें ध्रुवस्वामिनी का पुनर्विवाह चंद्रगुप्त के साथ हुआ बताया गया।

◆ ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या  :- नारी समस्या है नारी समस्या के इर्द गिर्द में संपूर्ण नाटक रचा गया है।

◆  ध्रुवस्वामिनी नाटक में प्रसाद जी ने नारी समस्या को बड़े प्रभावोत्पादक शैली में चित्रण किया है।

◆ प्रसाद जी ने  ध्रुवस्वामिनी के माध्यम से स्त्री अस्मिता की रक्षा करने के भरपूर प्रयास किया है।

◆ प्रसाद जी ने ध्रुवस्वामिनी नाटक में नारी को वीर, साहसी और गौरवान्वित रूप प्रस्तुत किया है।

◆ ध्रुवस्वामिनी नाटक में नाट्य कला के सभी तत्वों का सुन्दर संयोजन हुआ है। संकलन-त्रय और अभिनेयता की दृष्टि से भी यह एक उत्कृष्ट नाट्य-कृति सिद्ध होती है।

◆  वर्तमान युग में विभिन्न सामाजिक समस्याओं को लेकर नाटक के माध्यम से प्रस्तुत करना।

◆ ध्रुवस्वामिनी नाटक के माध्यम से प्रसाद जी ने अतीत और वर्तमान को देखकर भविष्य का निर्माण करते हैं।

◆ प्रसाद ने ऐतिहासिक यथार्थ को दृष्टि में रखकर राष्ट्र की सुप्त आत्मा को जगाने का प्रयत्न किया है।

◆ ध्रुवस्वामिनी की पहली पंक्ति ही प्रसाद के जीवन दर्शन और कृति के उद्देश्य को स्पष्ट कर देती है पुरुष की कठोरता और नारी का अबलापन पुरुष का प्रमुख और स्त्री की दासता यही असमानता नाटक का बीज है।

◆ नाटक के  पात्र :-

★ प्रमुख पुरुष पात्र :-

1. चंद्रगुप्त
2. रामगुप्त
3. शिखर स्वामी
4. शकराज
5. मिहिर देव

★ प्रमुख स्त्री पात्र :-

1. ध्रुवस्वामिनी
2. कोमा
3. मंदाकिनी

◆ नाटक का उद्देश्य :-

1. इतिहास को पुननिर्मित करने की आकांक्षा

2. अतीत के सांस्कृतिक चित्रण की भावना।

3. राष्ट्रीय चेतना, जातीय गौरव आदि से प्रेरित होकर इतिहास के आदर्श चरित्रों की स्थापना ।

4. वर्तमान समस्याओं का अतीत के माध्यम से प्रस्तुतीकरण और उनका समाधान निकालने की चेष्टा ।

5. मानव जीवन की रोचक रूप में व्याख्या करना

◆ नाटक की गीत योजना:-

★ ध्रुवस्वामिनी में केवल चार ही गीत  मिलते हैं।

★दो प्रथम अंक में, जिन्हें मन्दाकिनी गाती है :- 
√ पहला गीत -: विश्व – कल्याण की भावना और करूणा से भरा हुआ छोटा गीत है ।

√ दूसरा गीत -: चन्द्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी के शक-शिविर में जाते हुए उन्हें प्रेरणा देने के लिए गाया गया प्रयाण गीत है ।

★ शेष दो गीत भी सरल, छोटे और परिस्थिति अनुकूल हैं जिन्हें क्रमशः कोमा और नर्तकियाँ गाती हैं

★ प्रमुख गीत :-

1. यह कसक अरे आँसू सह जा… शीतलता फैलाता बह जा ( मंदाकिनी, प्रथम अंक में)

2. पैरों के नीचे जलधर हो, बिजली से उनका खेल चले विश्राम शांति को शाप दिये, ऊपर ऊँचे सब झेल रहे। (मंदाकिनी, प्रथम अंक में।)

3. यौवन तेरी चंचल छाया, इसमें बैठ घूँट भर पी लूँ जो रस तू है लाया। पल भर रुकने वाले! कह तू पथिक! कहाँ से आया ? (कोमा, द्वितीय अंक में।)

 

◆ महत्वपूर्ण कथन :-

1.” मैं पुरुष हूं ? नहीं मैं अपनी आंखों से अपना वैभव और अधिकार दूसरों को अन्याय से छिनता देख रहा हूं और मेरी वाग्दत्ता पत्नी मेरी अनुत्साह से मेरी नहीं रही। “(चन्द्रगुप्त का कथन)

2. ” मैं उपहार में देने की वस्तु शीतल मणि नहीं हूं, मुझमें रक्त की तरह लालिमा है, मेरा हृदय उष्ण है और आत्मसम्मान की ज्योति है। उसकी रक्षा में ही करूंगी।” ( ध्रुवस्वामिनी का कथन )

3. ” पुरुष ने स्त्रियों को अपनी पशु संपत्ति समझकर उस पर अत्याचार करने का अभ्यास बना लिया है, वह मेरे सकता, तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते तो मुझे बेच भी नहीं सकते।” (ध्रुवस्वामिनी का कथन)

4 . ” कौन महादेवी राजा या अभी मैं महादेवी ही हूं ? जो शकराज की सैया के लिए कृत दासी की तरह आश्चर्य ।”(ध्रुवस्वामिनी का कथन)

5. ” यदि तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते अपने कुल की मर्यादा नारी का गौरव नहीं बचा सकते तो तुम्हें बेचने का अधिकार नहीं है। ” (ध्रुवस्वामिनी का कथन)

6. ” मैं केवल यही कहना चाहती हूं कि पुरुषों ने स्त्रियों को पशु समान समझ कर उन पर अत्याचार करने का जो अभ्यास बना लिया है, वह मेरे साथ नहीं चल सकता। यदि तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते तो मुझे बेच भी नहीं सकते।” (ध्रुवस्वामिनी का कथन)

7.” अमात्य यह कैसी व्यवस्था है तुम मृत्युदंड के लिए उन्मुक्त महादेवी आत्महत्या करने के लिए प्रस्तुत फिर यह हिंसक क्यों एक बार अंतिम बल परीक्षा कर देखो बचोगे तो राष्ट्र और सम्मान ही बचेगा नहीं तो सर्वनाश। ” (मंदाकिनी का कथन)

8. ” राजा का भय मंदा का गला नहीं घोंट सकता। तुम लोगों में यदि कुछ भी बुद्धि होती तो इस अपनी कुल मर्यादा नारी को शत्रु के दुर्ग में यूं ना भेजते भगवान ने स्त्रियों को उत्पन्न करके ही अधिकारों से वंचित किया है। किंतु तुम लोगों की दस्यु वृत्ति ने उन्हें लूटा है।” (मंदाकिनी का कथन)

9. ” मैं पुरुष हूं ? नहीं मैं अपनी आंखों से अपना वैभव और अधिकार दूसरों को अन्याय से छिनता देख रहा हूं और मेरी वाग्दत्ता पत्नी मेरी अनुत्साह से मेरी नहीं रही। “(चन्द्रगुप्त का कथन )

10. ” मैं उपहार में देने की वस्तु शीतल मणि नहीं हूं, मुझमें रक्त की तरह लालिमा है, मेरा हृदय उष्ण है और आत्मसम्मान कीत्रज्योति है। उसकी रक्षा में ही करूंगी। (ध्रुवस्वामिनी का कथन )

11. ” पुरुष ने स्त्रियों को अपनी पशु संपत्ति समझकर उस पर अत्याचार करने का अभ्यास बना लिया है, वह मेरे सकता, तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते तो मुझे बेच भी नहीं सकते। ” (ध्रुवस्वामिनी का कथन)

12. ” कौन महादेवी राजा या अभी मैं महादेवी ही हूं ? जो शकराज की सैया के लिए कृत दासी की तरह आश्चर्य ।”(ध्रुवस्वामिनी का कथन)

13. ” यदि तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते अपने कुल की मर्यादा नारी का गौरव नहीं बचा सकते तो तुम्हें बेचने का अधिकार नहीं है। ” (ध्रुवस्वामिनी का कथन)

14. ” मैं केवल यही कहना चाहती हूं कि पुरुषों ने स्त्रियों को पशु समान समझ कर उन पर अत्याचार करने का जो अभ्यास बना लिया है, वह मेरे साथ नहीं चल सकता। यदि तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते तो मुझे बेच भी नहीं सकते।” (ध्रुवस्वामिनी का कथन)

15. ” अमात्य यह कैसी व्यवस्था है तुम मृत्युदंड के लिए उन्मुक्त महादेवी आत्महत्या करने के लिए प्रस्तुत फिर यह हिंसक क्यों एक बार अंतिम बल परीक्षा कर देखो बचोगे तो राष्ट्र और सम्मान ही बचेगा नहीं तो सर्वनाश ।” (मंदाकिनी का कथन)

16.” राजा का भय मंदा का गला नहीं घोंट सकता। तुम लोगों में यदि कुछ भी बुद्धि होती तो इस अपनी कुल मर्यादा नारी को शत्रु के दुर्ग में यूं ना भेजते भगवान ने स्त्रियों को उत्पन्न करके ही अधिकारों से वंचित किया है। किंतु तुम लोगों की दस्यु वृत्ति ने उन्हें लूटा है। (मंदाकिनी का कथन)

◆ नाटक का सारांश :-

★ रामगुप्त कामुक, दुराचारी एवं विलासी है।

★ रामगुप्त की अयोग्यता को ध्यान में रखकर ही सम्राट समुद्रगुप्त ने चन्द्रगुप्त ने को सजा बनाने की इच्छा प्रकट की थी। यह चन्द्रगुप्त के द्वारा ही अपनी पत्नी ध्रुवस्वामिनी और राज्याधिकार सौंपा जाता है।

★ विलासी रामगुप्त अपनी सुन्दर पत्नी को कारावास की सजा देता है और स्वयं सुन्दरियों के संपर्क में रहकर अपने जीवन और समस्त राजकीय व्यवस्था की आहुति देता है। कारावास में सजा भोगती हुई ध्रुवस्वामिनी आँसुओं के साथ अपने वर्तमान और भविष्य की चिंता करती है।

★ध्रुवस्वामिनी के जीवन में रामगुप्त का प्रवेश धार्मिक परिवेश में होता है, किन्तु एक क्षण के लिए भी उसको पति-सुख प्राप्त नहीं होता। दूसरी ओर चन्द्रगुप्त के प्रति संदेह हो जाता है। परिणामस्वरूप ध्रुवस्वामिनी को कठोर नियंत्रण में रखा जाता है। पर सत्य हकीकत है कि प्रतिबंध में प्रेम प्रखर हो उठता है।

★ध्रुवस्वामिनी के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। उसी समय रामगुप्त पर शकों पर आक्रमण होता है। शकराज इसी शर्त पर समाधान के लिए तैयार होता है कि यदि उसे ध्रुवस्वामिनी दे दी जाय तो उसे छोड़ा जा सकता हैं। कार रामगुप्त पत्नी को देकर प्राणों की रक्षा के लिए तैयार हो जाता हैं। उधर दूसरी ओर वंश की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए और प्राणों की बाजी लगाकर भी चन्द्रगुप्त ध्रुवस्वामिनी की रक्षा करता है।

★ चन्द्रगुप्त में शासन चलाने की क्षमता और व्यक्तित्व की गरिमा को देखकर सब सामंत एक स्वर में उसे अपना सम्राट एवं ध्रुवदेवी को राजमर्हिषी के रूप में स्वीकार करते हैं। चारों ओर से निराश रामगुप्त चन्द्रगुप्त पर आक्रमण करा है किन्तु एक सामन्त द्वारा उसकी हत्या हो जाती है।

★ सातवीं सदी में बाणभट्ट ने भी अपने हर्षचरित में लिखा है कि चंद्रगुप्त ने नारी वेश में शक शिविर में जाकर शकराज का वध किया। प्रसाद जी ने इसे स्वीकार करते हुए भूमिका में लिखा है कि –
-” चंद्रगुप्त का परकलवत कामुक शकराज को मारना और ध्रुवस्वामिनी नहीं रह गया है। “

★ ध्रुवस्वामिनी नाटक में प्रसाद जी ने इतिहास और कल्पना का सुंदर समन्वय किया है।

★गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने अपने पुत्र चंद्रगुप्त को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया था और उसका विवाह जीते हुए राजा की कन्या ध्रुवस्वामिनी से निश्चित किया था। चंद्रगुप्त का बड़ा भाई रामगुप्त अयोग्य विलासी एवं दुराचारी था। किंतु समुद्रगुप्त की मृत्यु के उपरांत शिखर स्वामी नामक षड्यंत्रकारी अनाचारी के सहयोग से रामगुप्त राज्य का उत्तराधिकारी बन बैठा और उसने ध्रुवस्वामिनी से विवाह भी कर लिया। चंद्रगुप्त पारिवारिक विग्रह की आशंका से शांत बना रहा और उसकी बहुलता दूसरे की पत्नी बन गई।

★रामगुप्त सेना लेकर दिग्विजय करने निकल पड़ा इस समय शकराज ने गुप्त साम्राज्य का युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में शिक्षकों की स्थिति बेहतर थी शकराज ने युद्ध बंद करने के लिए जो संधि प्रस्ताव भेजा उसके अनुसार रामगुप्त को अपनी पत्नी ध्रुवस्वामिनी स्वराज को उपहार में देनी थी। रामगुप्त ने इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया, ध्रुवस्वामिनी ने रामगुप्त से अपनी रक्षा की प्रार्थना की अपने कुल गौरव और मान-सम्मान की रक्षा के लिए अनुनय विनय किया। किंतु रामगुप्त ने अपनी निर्लज्जता प्रदर्शित करते हुए कायरों की भांति अपनी प्राण रक्षा लिए शकराज के संधि प्रस्ताव को स्वीकृत कर दिया।

★ध्रुवस्वामिनी का आत्मगौरव जागृत होता है और वह ” यदि तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकते अपने कुल है। मर्यादा नारी का गौरव नहीं बचा सकते तो तुम्हें बेचने का अधिकार नहीं वह आत्महत्या करने को प्रस्तुत होती है। किंतु चंद्रगुप्त उसे आकर रोक लेता है। चंद्रगुप्त स्वयं स्त्री वेश में ध्रुवस्वामिनी के साथ शकराज के शिविर में जाता है और शकराज की हत्या कर देता है।

★ इससे पूर्व शकराज को उसकी प्रेमिका कोमा भी समझाती है कि तुम्हें ध्रुवस्वामिनी को उपहार में नहीं मांगना चाहिए राजनीति से भी बड़ी होती है नीति जिसका आश्रय छोड़ने पर व्यक्ति नष्ट हो जाता है। ऐसा कोमा के पिता आचार्य मिहिरदेव शकराज को समझाते हैं, किंतु वह उनका तिरस्कार कर देता है और कोमा के प्रेम को भी ठुकरा देता है।

★ शक दुर्ग पर अधिकार कर लेने का समाचार सुनकर रामगुप्त के सैनिक वहां पहुंचकर क्रूरता प्रदर्शित करते हुए मारकाट करने लगते हैं और कोमा तथा उसके पिता दोनों ही मारे जाते हैं। ध्रुवस्वामिनी की प्रेरणा पर चंद्रगुप्त अपने भाई रामगुप्त का मुखर विद्रोह करता है और ध्रुवस्वामिनी रामगुप्त जैसी क्लीव को अपना पति मानने से इंकार कर देती है। अंत में धर्म परिषद का आह्वान किया जाता है और उसमें पुरोहित अपना निर्णय देते हुए कहता है –

” विवाह की विधि ने देवी ध्रुवस्वामिनी और रामगुप्त को एक भ्रांतिपूर्ण बंधन में बांध दिया है, धर्म का उद्देश्य इस तरह पददलित नहीं किया जा सकता। यह रामगुप्त के गौरव से नष्ट आचरण पददलित और कर्मों से राज की वश बिलीव है ऐसी अवस्था में रामगुप्त का ध्रुवस्वामिनी पर कोई अधिकार नहीं। “

चन्द्रगुप्त नाटक

स्कंदगुप्त नाटक

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5 comments

  1. Rajendra sharma

    Ahaladpur pawanagar kushinagar up274401

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