💐💐 मुर्दहिया (आत्मकथा) 💐💐
【डॉ. तुलसीराम】
◆ प्रकाशन :- 2010 ई.
💐मुर्दहिया की भूमिका :-
◆ लेखक के गांव धरमपुर (आजमगढ़) की बहुद्देशीय कर्मस्थली :- मुर्दहिया
◆ चरवाही से लेकर हरवाही तक के सारे रास्ते मुर्दहिया से गुजरते थे।
◆ स्कूल हो या दुकान, बाजार हो या मंदिर, यहाँ तक कि मजदूरी के लिए कलकत्ता वाली रेलगाड़ी पकड़ना हो, तो भी मुर्दहिया से ही गुजरना पड़ता था।
◆ लेखक के गांव की ‘जिओ पॉलिटिक्स’ यानी ‘भू-राजनीति’ में दलितों के लिए मुर्दहिया एक सामरिक केन्द्र जैसी थी।
◆ जीवन से लेकर मरण तक की सारी गतिविधियाँ मुर्दहिया समेट लेती थी।
◆ मुर्दहिया मानव और पशु की मुक्तिदाता थी।
◆ हमारी दलित बस्ती के अनगिनत दलित हजारों दुख-दर्द अपने अंदर लिये मुर्दहिया में दफन हो गए थे। यदि उनमें से किसी की भी आत्मकथा लिखी जाती तो उसका शीर्षक ‘मुर्दहिया’ ही होता ।
◆ मुर्दहिया सही मायनों में हमारी दलित बस्ती की जिंदगी थी। इस जिंदगी को मुर्दा से खोदकर बाहर लाने का पूरा श्रेय ‘तद्भव’ के मुख्य संपादक अखिलेश को जाता है।
◆ अखिलेश हमेशा लेखक के सामने कलम के बदले फावड़ा लिये तैयार मिलते थे। सही अर्थों में लेखक ने उनके ही फावड़े से खोदकर ‘मुर्दहिया’ से अपनी जिंदगी को बाहर निकाला।
◆ मेरे घर से भागने के बाद जब ‘मुर्दहिया’ का प्रथम खंड समाप्त हो जाता है, तो गांव के हर किसी के मुख से निकले पहले शब्द से तुकबंदी बनाकर गानेवाले जोगीबाबा, लक्कड़ ध्वनि पर नृत्यकला बिखेरती नटिनिया, गिद्ध-प्रेमी परगल बाबा तथा सिंघा बजाता बंकिया डोम आदि जैसे जिन्दा लोक पात्र हमेशा के लिए गायब होकर मुझे बड़ा दुख पहुंचाते हैं।
◆ सबसे ज्यादा दुखित करने वाली बात दिल्ली में रह रहे मेरे गांव के कुछ प्रवासी मजदूरों से मालूम हुई।
◆ पचास-साठ साल पहले की जिस ‘मुर्दहिया’ का वर्णन मैंने किया है, वह पूर्णरूपेण उजड़ चुकी है। सारे जंगल कटकर खेत में बदल चुके हैं, जिसके चलते गिद्धों जैसे अनगिनत दुर्लभ पक्षियों तथा साहि, सियारों और खरगोशों जैसे पशुओं का विलोप हो चुका है।
◆ बचपन में दुखित होने का मतलब होता था आंखों में आंसू आ जाना। ऐसे अवसरों पर मेरी दादी आंख धो लेने को कहती थी, किंतु आज का अनुभव बताता है कि चंद पानी के छींटों से दुख की निशानी नहीं मिट पाती।
◆ प्रवासी मजदूरों से ही पता चला कि ‘मुर्दहिया’ से होकर जानेवाली एक सरकारी सड़क ने हमारे गांव को तीन जिलों- आजमगढ़, गाजीपुर तथा बनारस से जोड़ दिया है। उस पर टैम्पो भी चलने लगे हैं।
◆ जिस तरह हमारे गांव से बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन बड़े शहरों में हो चुका है, संभवतः मुर्दहिया से सड़क निकल जाने के कारण वहां के भूत-पिशाचों का भी पलायन अवश्य हो गया होगा।
◆ बढ़ते हुए शहरीकरण ने हर एक के जीवन को प्रभावित किया है। भूत भी इससे अछूते नहीं हैं।
◆ आने वाले ‘मुर्दहिया’ के दूसरे खंड में घर से भागने के बाद कलकत्ता, बनारस तथा दिल्ली होते इंग्लैंड तथा सोवियत संध / रसिया तक की जीवनयात्रा का लेखा-जोखा होगा।मूलतः यह यात्रा मार्क्सवाद से बौद्ध दर्शन की है।
◆ राजकमल प्रकाशन के निदेशक अशोक महेश्वरी इस बात के लिए धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्होंने ‘तद्भव’ में अब तक प्रकाशित सात किस्तों को ‘मुर्दहिया’ (खंड-1) के रूप में अविलंब प्रकाशित करने का निर्णय लिया, जबकि आगे का लेखन अभी जारी है।【डॉ. तुलसी राम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली-110067】
1. भुतही पारिवारिक पृष्ठभूमि
2. मुर्दहिया तथा स्कूली जीवन
3. अकाल में अंधविश्वास
4. मुर्दहिया के गिद्ध तथा लोकजीवन
5. भुतनिया नागिन
6. चले बुद्ध की राह
7. आजमगढ़ में फाकाकशी
💐 पात्रों का परिचय 💐
1. लेखक के दादा का नाम :- जूठन
2. मुसड़िया :-
● लेखक की दादी का नाम
● सौ वर्ष से भी ज्यादा जिन्दा रही।
● उसके चेहरे तथा बाँहों से लटकते हुए चिचुके चमड़े उसकी लम्बी उम्र को प्रमाणित करते थे।
● कि मेरी दादी ने कौआ का मांस खाया है, इसलिए वह मरती नहीं है।(गांव वालों का कह
3. तेरसी :-
● लेखक के पिता का नाम :- तेरसी (पक्ष के त्रयोदशी के दिन जन्म लेने के कारण)
● मछली मारने में महारत (किसी भी जलस्रोत से बड़ी आसानी से मछलियां मार लाते थे।)
● ‘मछरमरवा’ के रूप में (पौराणिक ख्याति)
● कट्टर शिवभक्त
4. लेखक की माता का नाम :- धीरजा
5. बाबा हरिहर दास बड़े उदार पुरुष थे। (लेखक का नाम तुलसी राम नाम वाले )
6. नग्गर :-
◆ लेखक के पिता जी के बीच वाले भाई
◆ वरीयता क्रम में तीसरे नम्बर पर थे,
◆ अत्यंत क्रोधी एवं क्रूर पुरुष
उनका नाम :- नग्गर
◆ इनके दो बेटे लेखक को कनवा कनवा कहकर पुकारते थे।
7. लेखक सबसे बड़े चाचा सोम्मर :-
◆ आजादी के पूर्व चौधरी चुने गए थे
◆ जीवनपर्यन्त चौधरी बने रहे
8. पिता जी के दूसरे नम्बर वाले भाई का नाम :-मुनेस्सर
9. मुन्नर चाचा के संबंध में :-
● पिता जी के चौथे बड़े भाई
● समन्वयवादी किस्म के व्यक्ति
● परिवार का मालिक
● घर का हिसाब-किताब करते
● भूत-पिशाच में बहुत विश्वास
● चमरिया माई के भक्त
● पुजैया आयोजन ( मरिया माई तथा डीह बाबा में) का नेतृत्व करने वाले 【 यह आयोजन साल में गर्मी के दिनों में किया जाता। 】
* पुजैया :- आम पूजा से भिन्न पूजा
10. अमिका पांडे :-
◆ लेखक को स्कूल ले जाने से पहले लेखक के पिता जी ‘साइत’ यानी ‘शुभ’ दिन का मुहूर्त पूछते है इनसे ।
11. अध्यापक मुंशी रामसूरत लाल :-
◆ इन्होंने लेखक की जन्म तारीख 1 जुलाई, 1949 प्रवेश फॉर्म में अंकित की। (सन् सही है तारीख अनुमान से की )
◆ यह दलित बच्चों को ‘चमरकिट’ कहकर अपना गुस्सा प्रकट करते।
12. लेखक की प्रथम कक्षा के सहपाठी :-【सभी दलित 】
● चिखुरी
● रमझ
● बाबूराम
● यदुनाथ
● मुल्कू
● रामकेर
● दलसिंगार
● जग्गन
● रामनाथ
● बिरजू
● बाबूलाल
● मेवा
13. लेखक सहपाठी छात्र संकठा सिंह :-
◆ लेखक इसकी सहायता से क, ख, ग, घ,.. लिखना सीख गया।
◆ यह लेखक के गांव के पूरब में करीब तीन कि.मी. दूर स्थित बारी गांव के एक बड़े क्षत्रिय जमींदार के बेटे थे।
◆ लेखक के लिये कक्षा एक में यह मुंशी जी से कहीं ज्यादा सफल शिक्षक सिद्ध हुए।
◆ इन्होंने पतली दुधिया को गाढ़ा बनाने के लिये कविता शैली में एक ‘मंत्र’ सिखाया, जिसे वे मेरे साथ गाते थे।
● यह मंत्र थाः ‘ताले के पानी पताले जो,
सेर भर दुधिया मोरे में आ जो’
14.प्राइमरी पाठशाला के कुल पांच अध्यापक थे :-
● परशुराम सिंह (हेडमास्टर) ।
● मुंशी रामसूरत लाल
● वंशी पांडे
● हरी सिंह
● बलराम सिंह
15. ‘हिंगुहारा( हींग बेचने वाला) :-
● धोती कुर्ता पहनता था
● सिर पर गांधी टोपी लगाता था, थोड़ा टेढ़ा करके।
● उसकी बड़ी तोंद भी थी, इसलिए टोपी खूब जमती थी।
◆ वह देखने में पुराने कांग्रेसी नेता सीताराम केसरी के बड़े भाई जैसा लगता था।
16. जोगी :-
● जाति :- नोनिया
● गेरुवाधारी नहीं थे
● न ही भीख मांगते थे। उन्हें लोग राशन आदि पहुंचा देते थे।
● वे एक सफेद धोती या लुंगी कमर में लपेटकर दोनों खुटों को आर-पार करके गर्दन के ऊपर बांध लेते थे।
● लम्बी-लम्बी दाढ़ी
● सिर पर बड़े-बड़े बाल थे।
● हाथ में वे हमेशापानी से भरी एक ‘तुमड़ी’ रखते थे। (तुमड़ी सूखी लौकी की जगनुमा टंगने वाली बनी होती थी, जिसे साधुओं का पात्र कहा जाता था।)
● हाथ में एक लोहे का बड़ा चिमटा होता था।
● वे किस देवता के पुजारी थे, यह किसी को मालूम नहीं था।
● घने जंगल के सुनसान में अकेले रहते ।
● उनका फक्कड़ों जैसा अत्यंत निर्भीक जीवन था।
● उन्हें लोग सिर्फ जोगी बाबा के रूप में जानते थे ●उनका असली नाम :- रामर्जीत
● जोगी बाबा भूतपूजक थे।
● हाजिरजवाब काव्य के एक अति कुशल कवि
17. बंकिया डोम :-
● अस्पताल वाले वरहलगंज बाजार में रहता था।
● इसके का परिवार पेशा :- बांस के फट्टे चीर कर टोकरी, चंगेरी, डाल, मौनी, कुरुई, छिट्टा, दउरी आदि बनाकर बाजार में बेचना।
● सूअर पालन
● ‘सिंघा’ नामक वाद्य बजाने में अद्वितीय था।
( सिंघा को संस्कृत में तूर्यनाद कहते हैं। )
● स्वयं काले लोहे के पतले पत्तर से सिंघा बनाता था ।
● देखने में बिल्कुल करिया भुजंग लगता था।
● उसके कंधे पर टंगा हुआ सिंघा आधा बैठे आधा खड़े फण फैलाए सांप की तरह लगता था।
● वह भोजन के लिए युद्ध ही करता था। वह बैठकर खाता कम था, झोले में भरता ज्यादा था। इसलिए कई बार घरैता (जिसके घर समारोह होता) उससे लड़ जाते थे।
18. चुड़िहारा :- चूड़ियां बेचने वाला
19. कपड़हारा :- कपड़े बेचने वाला
20. सुभगिया :-
● जलंधर नामक बूढ़े दलित की जवान बेटी
● वह बड़ी सुंदर थी।
● कुछ माह पूर्व उसका गौना हुआ था।
● पति का नाम :- बिसराम
√ कलकता के सियालदह स्टेशन के आसपास घोड़े की तरह खींचने वाला ठेला रिक्शा खींचता था।
* ठेले को बंगाल में ‘टाना रिक्शा’ कहते हैं।
√ कलकत्ता के शामबाजार नामक मोहल्ले में किराये की एक बाड़ी रहते थे।
* बाड़ी को बंगाल में ‘बासा’ कहते हैं।
21.यमुना पांडे(ब्राह्मणों के मुखिया)
22. सुभगिया :-
● जलंधर नामक बूढ़े दलित की जवान बेटी
● वह बड़ी सुंदर थी।
● कुछ माह पूर्व उसका गौना हुआ था।
● पति का नाम :- बिसराम
√ कलकता के सियालदह स्टेशन के आसपास घोड़े की तरह खींचने वाला ठेला रिक्शा खींचता था।
* ठेले को बंगाल में ‘टाना रिक्शा’ कहते हैं।
√ कलकत्ता के शामबाजार नामक मोहल्ले में किराये की एक बाड़ी रहते थे।
* बाड़ी को बंगाल में ‘बासा’ कहते हैं।
23. मुरली सिंह :-
● मुन्नर चाचा से मिलने आते थे
● एक क्षत्रिय
● अमठा के मुखिया थे (अमठा गांव के पश्चिम में
स्थित था)
● इनका गांजा लेखक के गांव में बिकता था।
( इसी कारण मुन्नर चाचा की उनसे काफी दोस्ती हो गई थी।)
● अमठा के एक वकील थे जो रोज आजमगढ़ (करीब 18 मील दूर) साइकिल से कचहरी आते-जाते थे।
24. मिसिर बाबा :-
● लेखक का सहपाठी
● उम्र में काफी बड़े 9 वर्ष के पढ़ने आये थे
● परसपुर गांव का
● लेखक को पानी पिलाते थे ( मुंशी जी इसको कुएं से बाल्टी खींचकर पानी पिलाने को कहते थे।)
● एक विचित्र किस्म के व्यक्ति थे।
● पिता जी का बचपन में ही देहांत हो चुका था।
● उनकी एक बहन और चार भाई थे।
● उनके चाचा सिंगापुर में नौकरी करते थे।
● सिंगापुरी चारखाने की जांघिया तथा अधबहियां पहनकर स्कूल आते थे।
● मिसिर अक्सर मृत्युभोज के लिए जाया करते थे।
● रामलीला में मिसिर बाबा को सीता जी की भूमिका के लिए चुन लिया गया।(पाँचवें कक्षा में)
25. सिरगोदवा बाबा :-
● प्राइमरी स्कूल में पढ़ते समय का बड़ा आतंक था।
● स्कूलों में सरकार द्वारा भेजे गए चेचक का टीका
लगाने वाले कम्पाउंडर
● लोग इन टीका लगाने वालों को सिरगोदवा बाबा कहते थे।
26. सोफी नामक नट :-
● तीन बड़े बेटे, एक बहु तथा दो जवान होती बेटियां थीं।
● उनकी पत्नी भी थी।
● सोफी शादी-विवाह में ढोल बजाते हुए आल्हा गाकर भीख मांगते थे।
● वे बकरा काटकर गांव में मांस भी बेचते थे।
● यह नट परिवार हमारी दलित बस्ती के पूरब में मुर्दहिया के प्रवेश क्षेत्र में झोपड़ी बनाकर रहता था।
● सोफी की बहू तथा दोनों बेटियां सौन्दर्य के मामले में अपरम्पार सम्पन्न थीं।
27. ओझा :-
● लेखक के रिश्तेदार
● इनका नाम :- दौलत तथा किसोर।
● ओझा के छोटे भाई :- सोखा (इसका नाम :-किसोर)
● नग्गर चाचा के दोनों बेटों की शादी इसी ओझा की दो सगी बेटियों से हुई थी।
● यह दोनों ओझैती से बहुत पैसा कमाते थे।
● यह दोनों नग्गर चाचा का छोटा बेटा का भुत भगाने आये थे।
* सोखा का अर्थ :- जादूगर
● ये दोनों ओझा सोखा ओझती के बाद चुडैल या भूत बैठाने के लिए बनारस स्थित पिचाश मोचन नामक पोखरे पर जाते थे।
28. चुल्ली नामक दलित :-
● दो बेटों के साथ निरंजन पांडे की हरवाही करते थे।
● चुल्ली की पत्नी का नाम :- सोमरिया( वह भी एक अनोखी महिला मजदूरिन थी। )
29. सप्ताह के दिन के नाम वाली औरतें :- ●सोमरिया( गांव में चुगलखोरी के लिए बहुत प्रसिद्ध )
● मंगरी
● बुधिया
● बेफइया सुखिया
● सनीचरी
● अतवरिया
30. नन्हकू पांडे :-
● ढोलक वादक(गाँव अकेले व्यक्ति थे।)
● लोग ढोलक बजाने के कारण उन्हें ‘मिरदंगी’ कहते थे।
● उम्र – चालीस वर्ष
● बड़ी भारी तोंद थी।
● कुंवारे व्यक्ति थे।
31. पागल बाबा :-
● बगल के टड़वां गांव का एक व्यक्ति
● जिसे लोग सर्फ ‘पग्गल’ यानी पागल के नाम से जानते थे।
● पग्गल बाबा उसी फक्कड़ बाबा की तरह सिर्फ पतली सी लंगोटी पहने रहते थे।
● उसकी एक विचित्र आदत थी :- ठूंठे बरगद पर चढ़ जाते और गिद्धों की अनुपस्थिति में उनके खोते से सटकर बैठ जाते। वे हमेशा गिद्ध के अंडों को सहलाते रहते थे और उनके एक-दो अंडा नीचे उतार लाते।
● पग्गल बाबा पुराने अंडों को पुनः उसी खोते पर रख देते और किसी नए अंडे के साथ उतरकर इधर-उधर फिर बौड़ियाने लगते थे।
● वे अंडों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाते।
● वे एक अद्भुत गिद्धप्रेमी थे।
32. जोखू पांडे का के घर की एक रमौती नामक दलित महिला :-
● जो मुर्दहिया पर घास छील रही थी, उससे रहा नहीं गया। वह डांगर के लालचवश खुर्पा लेकर गिद्धों से भिड़ गई और मरे हुए बैल का कलेजा काटकर उनके खूंखार चोंचों से बचते हुए घास से भरी टोकरी में छिपाकर घर लाई।
33. परशुराम सिंह (पांचवीं कक्षा के हेडमास्टर)
34. किसुनी भौजी :-
● उसका पति कतरास की कोइलरी में कोयला काटता था।
● पति नाम :- मुन्नी लाल ।
● उसके दो बच्चों थे ।
● उम्र – बाईस साल
● यह लेखक से चिट्ठी लिखवाती थी, तो लगता था कि दुखड़ा स्वयं अपना आत्मविवेचन कर रहा है।
● इनके ससुर का नाम :-‘जैदी’ (जो अपने बेटे से अलग रहते थे।)
35. जेदी चाचा :-
● जेदी अपने बेटे से अलग रहते थे।
● अपनी जवानी के दिनों में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उसी बंसू पाड़े के खानदान की हरवाही करते थे।
● विश्वयुद्ध के दौरान एक दिन वे हल जोत रहे थे। वहीं खेत से ही वे गायब हो गए। गांव वाले कहते थे कि अंग्रेज ढेर सारे मजदूरों का अपहरण करके लड़ाई के लिए विलायत ले गए थे।
● अनपढ़ थे लेकिन बातें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रोफेसर जैसी।
● जेदी चाचा को अंग्रेज विश्वयुद्ध के दौरान एक अस्थायी टहलुवा में बगदाद ले गए थे।
● जेदी चाचा का मूल नाम ‘लुरखुर’ था।
● बगदाद पहुंचने पर किसी अंग्रेज अफसर ने उन्हें शिया मुसलमानों के लोकप्रिय उपनाम ‘जैदी’ के नाम से पुकारना शुरू कर दिया।
● बंसू ने बकरी चोरी के आरोप में सबक सिखाने के लिए चिरैयाकोट थाने के एक ब्राह्मणं सिपाही, जिससे उनकी दोस्ती थी, को बुलाकर जेदी चाचा को बहुत पिटवाया और डोरी में बांधकर थाने ले जाने की तैयारी करने लगे । किसी तरह जेदी चाचा पांच रुपया घूस देकर पुलिस से छुटकारा पाए।
●बंसू पाड़े के इस छलिया कपट से आयातित होकर जेदी चाचा प्रतिरोधस्वरूप एक नए किस्म का सत्याग्रह करने लगे।
● वे सब काम-धाम बंद कर दाढ़ी-मूंछ बढ़ाना शुरू कर दिए तथा निचंड धूप में चारपाई डालकर एक चादर ओढ़कर दिन भर सोते रहते थे। वे इस मामले में निहायत जिद्दी थे। पंचायत आदि द्वारा किसी अन्य समझौते को वे मानने से साफ इनकार कर दिए थे। उसी अकाल में वे प्राण त्याग दिए।
● जेदी चाचा गुरमुख थे।
● वे शिव नारायण पंथ को मानने वाले थे।
● भुक्खड़ क्रांतिकारी बगदाद रिटर्न’ जेदी’ चाचा
36. बलमू भैया :-
● अनाथ दलित युवक
● बचपन में ही भागकर कलकत्ता चले गए थे।
● वे वर्षों बाद उसे अकाल के बारे में सुनकर वहां से कौतूहलवश हालचाल लेने गांव आए।
● कलकत्ता जाकर बलमू अपने नाम के आगे ‘रविदास’ जोड़ लिये थे।
● वे कलकत्ता के ‘बेलिया घट्टा’ इलाके में बनानी दास नामक एक बंगाली दलित महिला की बाड़ी में रहते थे।
37. राम सरन मामा:-
● लेखक के मामा
● यह तरवां थाने से बहोरीपुर की तरफ सड़क बनाने का काम कर रहते थे।
38. मुधाफिर लाल :-
● छठी में अंग्रेजी पढ़ाने वाले मास्टर
● सभी लोग सिर्फ मुंशी जी के नाम से जानते थे।
● वे उसी जिगरमंडी गांव के रहने वाले थे, जहां के बाबू परशुराम सिंह थे।
● ये अंग्रेजी वाले मुंशी जी प्राइमरी वाले मुंशी जी से बिल्कुल भिन्न थे।
● वे अत्यंत मेहनती और अनुशासन वाले व्यक्ति थे।
● वे किसी के साथ भेदभाव नहीं करते थे।
● मेरी इस याददाश्त के कारण मुंशी जी मेरे सबसे बड़े प्रशंसक बन गए।
39. बदलू और बलराम:-
● लेखक की बस्ती के हरवाहे
● जो शाम के समय काम से वापस आने पर सीधे लेखक के पास आते थे और लेखक को हमेशा अंग्रेजी बोलने के लिए कहते।
40. गोकुल भैया :-
● इनके ससुराल बबुरा से करीब डेढ़ किलोमीटर पश्चिमोत्तर में स्थित दलित बस्ती में है।
41.ललती नटिनिया :-
● पिता का नाम :- सोफी नट (परिवार का मुखिया)
● यह नट परिवार इस्लाम धर्म को मानता था किन्तु कभी वे नमाज आदि नहीं पढ़ते थे।
● उनका रहन- सहन सब कुछ हिन्दुओं जैसा था।
● सोफी की बड़ी बेटी ललती( जिसे समस्त ग्रामीणवासी ‘नटिनिया’ के नाम से पुकारते थे)
● लेखक से अंग्रेजी सीखने के लिए अति उत्सुक ।
● ललती पूर्णरूपेण अनपढ़ थी, किन्तु अंग्रेजी के विचित्र बोल ने उसे बेहद प्रभावित कर दिया था।
● नटिनिया अप्रतिम मोहक होने के साथ एक अत्यंत कुशल नर्तकी थी।
● दलित प्रायः विभिन्न गांवों में ढोल की थाप पर लोकगायन के साथ अपनी थकान मिटाया करते थे। ढोल चाहे किसी गांव में बजे उसकी ध्वनि सुनते ही नटिनिया जहां भी हो, थिरकना शुरू कर देती थी।
● उसके अंग-प्रत्यंग नृत्यकला के कल-पुर्जे जैसे लगते थे।
● नटिनिया की अनोखी नृत्यकलाएं।
● दुनिया की वह पहली नर्तकी थी, जो मेरे जैसे नौसिखए लट्ठबादकों की लकड़ ध्वनी पर किसी श्मशान में यूं ही नाचने लगती थी।
● मैं उसके हाथ में दुधिया पकड़वाकर लिखवाता, किन्तु जब वह स्वयं लिखती तो उसका हाथ कांपने लगता । शीघ्र ही उसके कांपते हाथ नाचने की मुद्रा में आ जाते थे। वह मेरी विकट शिष्या थी। तमाम कोशिशों के बावजूद मैं उसे लिखना नहीं सिखा पाया।
● वह अंग्रेजी बोलना सीख जाए। उसने मुझसे पहला अंग्रेजी अनुवाद पूछा पिपरा पे गिधवा बइटल हउवैं।’ मैंने उसे बताया : ‘वल्वर्स आर सिटिंग आन पीपल ट्री ।’ यह वाक्य उसे इतना भाया कि उसने इसे तुरंत रट लिया ।(सातवीं में पढ़ रहा था)
42. लटकी :-
● भैंस का नाम
● यह भैस वही थी जिसकी पीठ पर चढ़कर लेखक मुर्दहिया जाया करता था।
● वह किसी मानव की अपेक्षा मुझसे ज्यादा घुली मिली रहती थी ।
●सवेरा होते वह प्रायः चारपाई से बाहर लटकी लेखक की बांह को ‘फूं फूं’ करके चाटने लगती थी।
43. परभू चौबे :-
● लेखक के पास के गांव टड़वां के
● यज्ञ कराने के लिए बहुत प्रसिद्ध थे।
● इन्होंने लेखक के घर वालों को सुझाव दिया कि चौधरी की जान बचानी है तो शंकर भगवान की मूर्ति ग्यारह सौ एक कमल का फूल चढ़ाकर लगातार नौ दिन तक ‘गायत्रि जाप कराया जाये और साथ ही नौवें दिन 501 ब्राह्मणों को भोज दिया जाए। उनकी बात मान ली गई।
44.सरजू :- लेखक के नाना
46. स्वामी करपात्री जी:-
● इनके के बारे में अध्यापक लोग कहते थे कि दोनों करों यानी हाथों में जितना भोजन अंटता है, उतना ही वे खाते हैं, इसलिए उनको ‘करपात्री’ कहा जाता है।
● यह देश में ‘रामराज’ लाने के लिए काम कर रहे हैं।
● इनकी पार्टी रामराज्य परिषद चुनाव मैदान में थी।
● स्वामी करपात्री जी ने 1957 में ‘मार्क्सवाद और रामराज्य’ नाम की एक भारी भरकम पुस्तक लिखी थी जिसमें उन्होंने सती प्रथा तथा बाल विवाह जैसी अनेक कुरीतियों का समर्थन किया था। इसके अलावा उन्होंने कम्युनिज्म का विरोध तो किया ही था।
● स्वामी करपात्री जी ने काशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर में दलितों के प्रवेश का जबर्दस्त विरोध किया था जिसके चलते वे जेल भी गए थे।
● इससे पहले स्वामी जी ने डॉ. अम्बेडकर द्वारा 1951 में प्रस्तुत ‘हिन्दू कोड बिल’ का विरोध करते हुए कहा था कि डॉ. अम्बेडकर हिन्दू धर्म को नहीं समझते, क्योंकि उन्हें संस्कृत नहीं आती।
47. टुंटवा :-
● दलित बस्ती में एक विवाह समारोह के अवसर टुंटवा का नाच’ इनके द्वारा किया गया ।
● ‘टुंटवा’ की बेटी हमारे गांव में व्याही गई थी।
● वे जन्म से ही एक हाथ के टूटे थे। टूटे हाथ में पंजा नहीं था तथा पूरी बांह बड़ी पतली थी। इसलिए उन्हें टुटवा के नाम से जाना जाता था।
● वे अत्यंत हाजिरजवाब स्वांग थे।
● उन्होंने एक नाचमंडली खोल ली थी जिसे टुटवा का नाच के रूप में बहुत ख्याति मिली थी।
● टुंटवा भी एक अनपढ़ खेत मजदूर थे, किन्तु उनकी सामाजिक एवं राजनीतिक व्यंग्य शैली हरिशंकर परसाई जैसी थी।
● उनकी एक सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि ये पूर्वनियोजित ढंग से कोई गीत या डायलॉग तैयार नहीं रखते थे।
● वे लिखना पढ़ना नहीं जानते थे।
48. तालपुट नाटककार :-
● गौतम बुद्ध का समकालीन वह व्यक्ति जिसका नाम था तालपुट नाटककार ।
● तालपुट नाटककार की एक वृहद नाटकमंडली थी जिसे लेकर वह गांव-गांव घूम-घूमकर नाटक दिखाता था।
● एक दिन वह अपनी मंडली के साथ श्रावस्ती पहुंचा और बुद्ध का उपदेश सुना, जिसके बाद वह बौद्ध भिक्षु बन गया।
49.दलित लोकगायक सुखई :-
● चुनावों के दौरान लेखक गाँव आये।
● सुखई की बहन हमारे गांव के रामवली नामक खेत मजदूर से व्याही गई थी ।
● सुखई ‘गायकी’ के महान अभिनेता थे।
● वे रानी सारंगा, छप्पन छुडी, संव लौरिक जैसे लोकप्रिय पात्रों से सम्बद्ध प्रचलित लम्बी-लम्बी कहानियों को गा-गाकर सुनाते थे।
● किस्सा गायन में समय समय पर वार्तालाप शैली का भी समावेश होता रहता था ।
● सुखई अपने आप में एक वृहद् मंडली थे।
● किस्सा गायकी में अकेले होते थे,
● सुखई अनपढ़ खेत मजदूर थे, किन्तु उनकी याददाश्त बेजोड़ थी।
● वे अपनी इस कला में किसी वाद्ययंत्र का इस्तेमाल नहीं करते थे।
● वे हमेशा खड़े होकर अपने कानों में उंगली डालकर तेज स्वर में गाकर किस्सा सुनाने लगते थे।
50. बंसू पांडे :-
● यह बगुला मारकर खा जाते थे ।
● दलित कभी बगुलों को मारकर नहीं खाते थे। पिछले अकाल की भुखमरी में भी किसी दलित ने बगुलों को कभी नहीं मारा।
51. श्री धर्मदेव मिश्र :-
● आठवी के स्कूल के प्रधानाध्यापक
● गर्मी की छुट्टियां आने पर इन्होंने फसलों की देख-रेख के लिए लेखक ड्यूटी पक्की कर देते थे।
● प्रिन्सिपल धर्मदेव मिश्र आजमगढ़ के वीररस के प्रसिद्ध कवि श्याम नारायण पांडे के गांव डुमराव के रहने वाले थे।
● यह रोज ही स्कूल पर सभा करते और बताते कि युद्ध के लिए हथियार के बदले अमरीका सोना मांग रहा है। वे सुरक्षाकोष में सोना इक्ट्ठा करने के लिए प्रेरित करते।
● धर्मदेव मिश्र बताते कि चीनी लोग छिपकली, गिरगिट, सांप आदि सब कुछ खा जाते हैं।
52. रणबीर सिंह :–
● भुजही गांव के थे।
● पूरी स्कूल में यह एक ऐसे व्यक्ति थे जो साइकिल से आते-जाते थे।
53. सूर्यभान सिंह :-
● अंग्रेजी पाठ्यक्रम को पढ़ाने वाले अध्यापक
● अत्यंत गम्भीर तथा विनम्र स्वभाव वाले अध्यापक
● अंग्रेजी पढ़ाते समय वे पहले एक-एक शब्द का हिन्दी में अर्थ बताते तथा बाद में पूरे वाक्य का अनुवाद।
54. लालबहादुर सिंह के संबंध में :-
● ओझा- सोखा (तांत्रिक) रिश्तेदारों के गांव मंगरपुर के एक बड़े जमीदार के बेटे थे।
● हाई स्कूल के छात्र थे
● लेखक के दोस्त
● उनके घर में घोड़ा पाला जाता था जो उनका एक्का खींचता था।
● वह कम उम्र में ही भयंकर शराबी बन गए थे।
● लालबहादुर सिंह ने उस दिन मेरी इच्छा के विरुद्ध मुझे एक तरह से जबरन शराब पिलाई।
शराब पीने के इस पहले ही अवसर ने मुझे नशे में एकदम चकनाचूर कर दिया था।(नौवीं कक्षा खत्म होने बाद गर्मी की छुट्टियों में)
55. अम्बिका सिंह:-
● लेखक का सहपाठी (दसवीं कक्षा )
● वे हिंसक प्रवृत्ति नहीं थे।
● वे हमेशा शराफत से बात करते थे।
● उनकी मूल शिकायत यह थी कि कक्षा में अध्यापकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का जवाब मैं ही क्यों सबसे पहले दे देता हूं?
56. सुग्रीव सिंह :-
● कक्षा दसवीं के हिंदी के अध्यापक
● हाल ही में गोरखपुर विश्वविद्यालय से बी.ए. पास कर अध्यापक बने थे।
● वे मुझे खूब प्रोत्साहित करते थे।
● मेरे संरक्षक जैसे बन गए।
57. चिन्तामणि सिंह :-
● लेखक का सहपाठी (दसवीं कक्षा )
● वे प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक परशुराम सिंह के सगे भतीजे थे।
● जो जिगरसंडी गांव के 22 जोड़ी बैलों वाले बड़े जमींदार थे।
● वे पढ़ाई-लिखाई में बहुत कमजोर थे।
● वे मिरगी यानी मृगी रोग से पीड़ित थे।
● वे समय-समय पर कक्षा में ही बेहोश होकर गिर जाते थे।
● चिन्तामणि के पिता लक्ष्मी नारायण सिंह एक बहुत नामी वैद्य थे जो स्वयं उनका उपचार करते थे।
● चिन्तामणि सिंह मेरे घर की परिस्थिति से पूरी तरह परिचित थे।
● वे मुझसे कहते कि कक्षा में जो कुछ पढ़ाया जाए, मैं उसे खाली समय में उन्हें संक्षेप में समझा दिया करूं। मैं वैसा ही करने लगा।
● छुट्टियों के दिन वे अपने घोड़े पर चढ़कर मेरे घर आ जाते थे।
◆ एक रविवार के दिन चिन्तामणि सिंह मेरे घर आए। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं रोज शाम को उनके गांव जाकर रात में टिककर उन्हें पढ़ाऊं तथा रात का खाना उनके घर में ही खा लिया करूं।
● चिन्तामणि सिंह के चाचा बहुत अच्छे घुड़सवार थे। उस मेले में वे अपने घोड़े को हवा की तरह उड़ाए थे।
● मैं रोज शाम को करीब छः घंटे पैदल चलकर चिन्तामणि सिंह के गांव जिगरसेडी चला जाता था।
● उनके बाईस जोड़ी बैल बांधे जाते थे।
● चिन्तामणि सिंह अपने घर में से खाना लाकर एक मजदूर की थाली में डाल देते थे। मैं जब खा लेता था, तो वे मजदूरों को खिलाते थे।
● एक कमरे में कुर्सी टेबल रखा गया था जिस पर बैठकर मैं चिन्तामणि सिंह को पढ़ाया करता था।
● गणित, रेखागणित तथा अंग्रेजी में बहुत कमजोर थे ।
● मैं हाई स्कूल में निर्धारित पांचों विषयों को बारी-बारी से उन्हें रोज पढ़ाता था।
● यह विचार उत्पन्न होता था कि चिन्तामणि सिंह का घोड़ा चुराऊं और उस पर बैठकर बुद्ध की तरह भाग जाऊं।
● जब में उनके बाईस जोड़ी बैलों को याद करता हूं, तो अचानक मेरे दिमाग में सुत्तपिटक में वर्णित प्राचीन कोसल क्षेत्र का वह ब्राह्मण याद आ जाता है, जो अपने चौदह बैलों की चोरी के चलते बहुत दुखित रहा करता था।
● इस तरह दिसम्बर 1963 तक करीब तीन महीने तक में उन्हें पढ़ाने जिगरसंडी जाता रहा।
58. महेन्द्र सिंह :-
● लेखक का सहपाठी (दसवीं कक्षा)
● मेरे गांव से करीब छह किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित चक्रपानपुर के रहने वाले थे।
● इनके घर में हाथी पाला जाता था।
● वे भी कभी-कभी अपने महावत के साथ हाथी पर बैठकर मुर्दहिया के जंगल स्थित पीपल तथा बरगद की डालियां काटकर ले जाने के लिए हमारे गांव आते थे।
58. कुबेर राम :-
● 8 जून, 1964 को पड़ोस के गांव मठिया के प्राइमरी अध्यापक थे।
59. चिन्तामणि सिंह और हीरालाल :-
● सबसे ज्यादा दुख लेखक को यह देखकर हुआ कि यह दोनों फेल हो गए।
60. नेता तेजबहादुर सिंह:-
●आजमगढ़ के प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता
● 2 जुलाई, 1964 को शाम को मामा ने मेरी हाई स्कूल की मार्कशीट अटेस्ट कराने के लिए इनके पास ले गए।
● वे विधान परिषद के सदस्य थे।
● वे मातबरगंज में ही रहते थे।
● उनका मकान शंकर जी की मूर्ति वाले तिराहे के ठीक सामने वंश गोपाल लाल की दुकान का ऊपरी हिस्सा था।
● जिन्होंने 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मेरे ननिहाल वाला तरवां का थाना फूंक दिया था।
● मार्कशीट अटेस्ट करने के बाद उन्होंने मुझे मिलते रहने के लिए कहा।
● पहले ऐसे नेता थे जिनसे व्यक्तिगत रूप से मेरी मुलाकात हुई।
● इनकी वजह मुझे पर मार्क्सवादी प्रभाव पड़ा।
61.सनवारी राम :-
● आजमगढ़ के पहला गुरू मित्र
● डी.ए.वी. कॉलेज में 12वीं कक्षा में साइंस के छात्र थे।
● सनवारी राम बड़े ओजस्वी वक्ता थे।
● वे अम्बेडकर हॉस्टल के ठीक सामने वाले मकान में रहते थे।
● इस मकान में आजमगढ़ डाक तार विभाग के मैनेजर रामनाथ किराए पर रहते थे।
● सनवारी राम तारबाबू के बेटे विजय तथा भतीजे प्रह्लाद को ट्यूशन देते थे,जिसके बदले वे उनके साथ उसी मकान में रहते थे
● सनवारी राम प्रत्येक दिन अम्बेडकर हॉस्टल में ही मौजूद रहते थे तथा अम्बेडकर के बारे में प्रायः बातें किया करते थे।
● सनवारी राम ने ही पहली बार डॉ. अम्बेडकर की प्रसिद्ध उक्ति ‘जातिविहिन समाज के बिना स्वराज प्राप्ति का कोई महत्व नहीं’ से मुझे अवगत कराया था।
● सनवारी राम बहुत मेधावी छात्र थे ।
● गणित शास्त्र में उन्हें महारथ हासिल थी किन्तु बारहवीं कक्षा में सात बार फेल होकर आठवीं बार किसी तरह पास हुए और बाद में रेलवे विभाग में स्टेशन मास्टर बन गए थे।
● सनवारी राम से ही पता चला कि डॉ. अम्बेडकर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिये थे तथा उन्होंने ही गांधी जी से लड़कर दलितों के लिए
आरक्षण हासिल किया था।
● डॉ. अम्बेडकर बौद्ध बन गए थे, यह बात मुझे सबसे ज्यादा प्रिय लगी थी।
62. रामनाथ :-
● आजमगढ़ डाक तार विभाग के मैनेजर
● रामनाथ जी ‘तारबाबू’ के नाम से जाने जाते थे । ● तारबाबू की पत्नी प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका थी। दोनों लोग बहुत सामाजिक व्यक्ति थे।
● तारबाबू के बेटे का नाम :- विजय
● तारबाबू के भतीजा का नाम :- प्रह्लाद
● सहदेव तथा तेजबहादुर राम दो अन्य छात्र अम्बेडकरवादी थे। ये दोनों बाद में इंजीनियर बन गए थे।
63 दुक्कू तेली :-
● अम्बेडकर हॉस्टल के सामने तारबाबू के नाम से मशहूर दुकान के मालिक थे ।
● उनके नाम से पकौड़ी का नाम जुड़ गया था।
● वे स्वयं पालथी मारकर खौलती तेल की कड़ाही के पास बैठकर बड़े पौने से पकौड़ी छाना करते थे।
● दुक्कू बड़ी तोंद वाले पुरुष थे।
● जो हमेशा सिर का बाल छोटे रखते थे।
● वे चीन के हंसते बुद्ध की तरह दिखाई देते थे। ● वे कई प्रकार की पकौड़ियों के साथ मीट भी पकाया करते थे।
● उनका पकाया हर माल बहुत स्वादिष्ट हुआ करता था।
● उनकी दुकान के ठीक बगल में आजमगढ़ का सबसे बड़ा ताड़ीखाना था।
● दुक्कू की पकौड़ी अभिन्न भोज बन गई थी।
● दुक्कू मुझे पकौड़ियां उधार देने लगे। किन्तु तीन-चार दिन से ज्यादा उधारी नहीं चल पाती थी, ● मेस में मेरा खाना जब भी बंद हो जाता, मेरा काम दुक्कू की पकौड़ियों से चल जाता था ।
● जैसा कि तीन- चार दिन से ज्यादा दुक्कू उधारी नहीं चल पाती थी, इसलिए पकौड़ियां खाना बंद हो जाता था, जिसका मतलब था फाकाकशी शुरू ।
64.अहमदी बीबी:-
● अहमदी बीवी एक सरकारी सफाई कर्मचारी थी ● जो अम्बेडकर हॉस्टल तथा उसके सामने वाली सड़क पर झाडू लगाया करती थी ।
● युवा अवस्था में ही अहमदी बीबी के पति का निधन हो गया था।
● वे अत्यंत खूबसूरत थीं, किन्तु युवा अवस्था में ही सूनापन उनके चेहरे पर साफ दिखाई देता था।
● वे सभी के साथ बहुत शराफत से पेश आती थीं।
65. देव नारायन :-
◆ लेखक की चचेरी मौसी के बेटे
◆ यह रानीपुर इंटर कॉलेज के छात्र थे।
66.विलियम थ्यूपलस (मिशन कॉलेज के प्रिन्सिपल)
67. बिजई पांड़े :-
● हाई स्कूल फेल
● टाइपिंग सीखते थे।
● यह आजमगढ़ कचहरी में टाइप करने का काम करते थे।
68. तपसीराम के संबंध में :-
● बी.एच.यू में पढ़ते थे।
● लालगंज तहसील के पास वाले गांव में रहते थे।
● तपसीराम के पिता कलकत्ता की एक जुट मिल में काम करते थे। वे औसतन सम्पन्न व्यक्ति थे।
● उनकी माँ ने मुझे बीस रुपया दिये।
69. छेदीलाल(डी.ए.वी. कॉलेज के चपरासी )
70. अरुण कुमार सिंह :-
● कम्युनिस्ट नेता
● तेज बहादुर सिंह के नाती
● लेखक के गहरे दोस्त ।
● यह बी.एच.यू. से बी. ए. एल. एल. बी. करके आजमगढ़ में वकालत करते हैं।
71 गुलाब बाई :-
● आजमगढ़ की सांस्कृतिक जीवन में लेखक को सबसे ज्यादा प्रभावित किया था
● नौटंकी करती है।
● लैला मजनू’ का मंचन सबसे अद्भुत होता था। इस नाटक में गुलाब बाई की युवती बेटी मजनू की विस्मयकारी भूमिका निभाती थी।
72.सोबरन :-
● कलकत्ता में चौधरी चाचा के छोटे बेटा
● लोहे की फैक्ट्री में काम करते थे।
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