1. संदेश रासक
• रचयिता :- अब्दुल रहमान/अद्दहमाण
• अब्दुल रहमान का परिचय :-
◆ मीरसेन आरद्द का पुत्र
◆ स्थान :- मिच्छदेस (म्लेच्छ)[पश्चिमी पाकिस्तान]
◆ मुल्तान निवासी( नाथूराम प्रेमी के अनुसार)
◆ जाति :- जुलाहा
◆ समय :- 11वीं शताब्दी का कवि (राहुल
सांस्कृत्यायन के अनुसार)
◆ 12वीं सदी के प्रथम मुस्लिम लेखक जो हिन्दी
लिखता है ।
◆ भारतीय भाषा मे रचित इस्लाम धर्मालम्बी
कवि की प्रथम रचना।
• 12वीं – 13वीं .शताब्दी की रचना मानते है।(आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी )
• प्रेमकाव्य(विरह काव्य)
• प्रमुख रस – श्रृंगार रस
• भाषा :- अपभ्रंश
• कुल छन्द :- 223 छन्द
• इसमें प्रयुक्त हुए छंदों की संख्या :- 12
• सर्वाधिक रासा छन्द का प्रयोग(कुल रासा छन्द:-84 )
• इसमें नायिका के विरह निवेदन की प्रमुखता है।
• संदेश शासक में संदेश नायिका देती है नायक नहीं।
• तीन संस्करण :-
1. मुनि जिन विजय द्वारा संपादित (भारतीय विद्या भवन,मुंबई से प्रकाशित)
2. विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा संपादित (ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, मुंबई से प्रकाशित )
3. रास और रासान्वयी काव्य में प्रकाशित।
• इसमें मुल्तान का वर्णन एक बड़े और समृद्ध हिंदू तीर्थ के रूप में हुआ है और गौरी के आक्रमण के बाद उसकी समृद्धि सदैव के लिए मिट गई थी।
• संदेश रासक को प्रकाश में लाने का श्रेय अनेक दुर्लभ ग्रंथों के उद्धारकर्ता और अपभ्रंश भाषा के प्रसिद्ध पंडित श्री मुनि जिनविजय को है।
• संदेश रासक की प्रथम प्रति मिली :-1912 ई. में मुनि जी ने विजय ने पाटन स्थित जैन भंडार उसमें हस्तलिखित प्राचीन ग्रंथों की खोज प्रारंभ की और उसकी उसी समय संदेश राशि की एक प्रति बने प्राप्त हुई ।(17 पन्ने,लिपि कारक का नाम:- मानसागर )
• संदेश रासक की दूसरी प्रति मिली :- 1918 पुणे स्थित भंडारकार रिसर्च इन्सटीट्यूट के अन्तर्गत राजकीय हस्तलेख संग्रह के जैन विभाग की जांच करते समय।(12 पन्ने)
• संदेश रासक की तीसरी प्रति मिली :- मारवाड़ स्थित लोहावत के आचार्य जिनहरि सागर जी के भंडार में(इस प्रति का लेखन कार्य समाप्त :- हिसार दुर्ग में बुधवार, शुक्ल पक्ष, अष्टमी को )[28पन्ने]
तीनों प्रतियों का प्रकाशन :- 1945 में
2. ढोला मारु रा दूहा
• रचयिता:- कल्लोल (14-15वीं सदी)
• राजस्थान का प्रसिद्ध लोक काव्य
• काव्यरूप – गेय मुक्तक(प्रेम गायात्मक काव्य)
• प्रमुख रस – श्रृंगार रस
• भाषा – राजस्थानी
• निर्माण काल – संवत् 1530(जिसका उल्लेख इसके अंतिम दोहे में)
‘‘ पनरहसे तीसै वरस,कथा कहो गुण जाण।
वदि वैसाखे वार गुरु,तीज जाण सुम वाण।।’’
• पात्र :-
पुरुष पात्र – ढोला ( कथा का नायक) नरवर के
राजकुमार
ऊमर सूमरा( कथा का खलनायक)
नारी पात्र – मारवणी( कथा की नायिका ) पिंगल राजा की पुत्री
मालवणी( कथा की सहनायिका) मालवगढ़ के राजा की पुत्री
• गौण पात्र:-
पुरुष पात्र – पिंगल राव ( कथानायिका मारवणी के पिता)
नल ( कथानायक ढोला के पिता)
अन्य – सौदागर,पुरोहित,रैबारी, गडरिया आदि।
नारी पात्र : – उमा(पिंगल की रानी, मारवणी की माता)
चंपावती(साल्ह कुमार की माता)ढोला को चंपावती साल्ह कुमार नाम से पुकारती है।
• प्राणी पात्र – ऊंट, शुक, पपीहा,गदहा आदि।
कथा सारः- पूंगल देश में पिंगल नाम का राजा रहता था। उस समय नरवर पर नल का राज्य था। पिंगल के एक कन्या हुई जिसका नाम मारवणी (मारू) था। नल के पुत्र का नाम ढोला था। एक बार पूंगल देश में अकाल पडा जिससे राजा पिंगल कुछ दिनों के लिए पुष्कर में जाकर रहे। इन्हीं दिनों राजा नल भी तीर्थ यात्रा करता हुआ पुष्कर आ जाता है। दोनों में मित्रता हो गई पिंगल ने अपनी लड़की मारवणी का विवाह नल के लड़के के साथ कर दिया। उसी समय ढोला की उम्र तीन वर्ष की और मारवणी की उम्र डेढ वर्ष की थी। शरद ऋतु के आने पर दोनों राजा अपने – अपने देश चले गए।
मारवणी की अवस्था छोटी थी इसलिए वह उस वक्त ढोला के साथ नरवर नही भेजी गई। कई वर्ष बीत गए। ढोला जवान हुआ। पुंगल देश दूर था इसलिए उसके पिता ने दूसरा विवाह मालवे के राजा की लड़की मालवणी से कर दिया और उसे पूर्व विवाह की बात नही बतायी।
इधर मारवणी जब बड़ी हुई तब उसके पिता ने ढोला को बुलाने के लिए कई दूत भेजे। परन्तु सौतिया डाह की वजह से मालवणी ने पूंगल और नरवर के रास्तों पर ऐसा प्रबन्ध कर रखा था कि संदेशवाहक ढोला तक पहुँच ही नही पाते थे। बीच ही में मार दिए जाते थे।
एक बार मारवणी ने ढोला को सपने में देखा। इससे उसकी विरह वेदना बढ़ गई। इसी समय नरवर की ओर घोड़ों का व्यापारी पूंगल आया। उसने ढोला के दूसरे विवाह की बात पूंगल से कही।
यह बात मारवणी के कानों तक भी पहुँची। वह पागल सी हो गई और कुछ ढाढियों को अपना प्रेम संदेश देकर ढोला के पास भेजा। मार्ग में मालवणी के तैनात किए हुए आदमियों को झुलावा देकर किसी तरह ढोला के महलों तक पहुँचा। वहाँ रात भर उन्होंने बड़ी सुरीली और दर्द भरी आवाजों में गा – गाकर मारवणी का प्रेम संदेश सुनाया। दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही ढोला ने ढाढियों को बुलावा भेजा और सब हाल मालूम किया। सुनकर उसकी उत्कंठा बढ़ गई और मारवणी से मिलने के लिए वह आतुर हो गया।
एक दिन ढोला घोडे पर सवार होकर मारवणी से मिलने के लिये जाने लगा। मालवणी को इसका पता लगा गया। उसने दौड़कर घोडे की रकाब पकड़ ली।
उस दिन वह वापस लौट आया। परंतु कुछ दिन बाद एक रात को जब मालवणी सोई हुई थी वह चुपके से एक ऊंट लेकर वहां से चल पड़ा।
कुछ दिन बाद ढोला पुंगल पहुंचा ।वहां उसका बड़ा स्वागत – सम्मान हुआ । पांच- सात दिन वह वहां रहा ।फिर मारवणी को लेकर वहां से रवाना हुआ मार्ग में एक पड़ाव पर मारवणी को एक सांप ने काट खाया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। ढोला विलाप करने लगा और चिता बनाकर अपनी प्रिय के साथ चलने की को तैयार हो गया इतने में योग- योगिन के वेश में शिव – पार्वती वहां आ गए । उन्होंने मारवणी को पुनर्जीवित कर दिया ।यहां से आगे बढ़ने पर एक घटना और हुई।
उमर नाम के एक व्यक्ति ने मारवणी को छीनने के लिए अपने दल- बल सहित उनका पीछा किया। अपना घोड़ा ढोला के ऊंट के पास लेकर जाकर उसे कहा ” हे ठाकुर ! अलग क्यों चल रहे हो, आओ कसूंबा (पानी पा में घुली हुई अफीम) पिए । फिर साथ – साथ ही चलेंगे।”ढोला उसके कपट – जाल को न समझ सका और ऊंट से उतर गया।
मारवाड़ी ऊंट की मोहरी के नकेल पकड़कर अलग खड़ी हो गई । ढोला और उमर पास ही बैठकर कसूंबा पीने लगे। ऊमर के साथ मारवणी पीहर की एक ढोलिन थी। उसने गा- गाकर ऊमर के षड्यंत्र की सारी बात मारवणी को समझा दी। इस पर उसने अपने ऊंट के छड़ी मारी।ऊंट. हड़बडाया और उछलने लगा । ढोला उसे संभालने के लिए मारवणी के पास आया। इसी समय मारवणी चुपके से सारी बात उसको बता दी।
तब ढोला और मारवाड़ी दोनों ऊंट पर बैठ गए और वहां से निकल भागे । उमर ने उनका पीछा किया परंतु हताश होकर उसे वापस लौटना गया। अंत में ढोला – मारवणी घर पहुंच गए और बड़े आनंद से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
3. वसंत विलास
• रचनाकार – अज्ञात(इसके रचयिता का पता नही चल सका है।)
• सर्वप्रथम प्रकाशित :- हाजी मुहम्मद – स्मारक ग्रंन्थ(1952ई. में)
• प्रथम सम्पादक – केशवलाल हर्षादराय ध्रुव 1451ई. की एक हस्तलिखित प्रति के आधार पर
• रचनाकाल :- 1451ई. से पूर्व (नगेंद्र के अनुसार)
• प्रमुख रस – श्रृंगार रस
• छन्द – 84 छन्द
• विषय :- वसन्त और स्त्रियों पर उसके विलासपूर्ण प्रभाव का मनोहारी चित्रण।
• जैनेतर फागु काव्य
• “वसंत विलास काव्य प्रकृति और नारी दोनों का मदोन्मत्त स्वरूप श्रृंगार रस की तीव्र धारा प्रवाहित करता है।” (नगेंद्र के अनुसार)
• पंक्ति:- इणि परि कोईलि कूजइ, पूजइ युवति भणोर।विधुर वियोगिनि धुजइ, कूजइ भयण किसोर।।
4. विद्यापति
• जन्म :- 1352
• जन्म स्थान :- बिसपी गांव ,मधुबनी जिला,बिहार
• मृत्यु :- 1448 जनकपुर (नेपाल)
• विद्यापति का पूरा नाम:- विद्यापति ठाकुर
• पिता का नाम :- गणपति ठाकुर (गंगा भक्ति तरंगिणी के रचनाकार )
• माता का नाम :- हंसिनी देवी
• विद्यापति के दो विवाह हुए थे :-
पहली पत्नी से :- दो पुत्र हुए (नरपति ठाकुर और हरपति ठाकुर)
दूसरी पत्नी से :– एक पुत्र और एक पुत्र हुए।(वाचस्पति ठाकुर और दूल्लहि पुत्री)
• गुरु का नाम :- पं.हरि मिश्र(इनसे विद्या ग्रहण की)
• सहपाठी :- विख्यात नैयायिक जयदेव मिश्र उर्फ पक्षधर मिश्र
• बाल सखा एवं मित्र :- राजा शिव सिंह
• प्रमुख आश्रयदाताओं के नाम :- महाराजा शिवसिंह एवं कीर्ति सिंह
• उपाधि :- अभिनव जयदेव,महाकवि कोकिल,कवि शेखर ,कवि रंजन और कवि कंठहार,मैथिली कोकिल
• स्वयं को खेलन कवि कहां है ।
• महाकवि, श्रेष्ठ गीतकार,रसिक कवि, बहुभाषी कवि।
• रससिद्ध कवि है और मूलतः श्रृंगारी कवि है।
• हिंदी में गीत काव्य के प्रवर्तक कवि
• हिन्दी में पद शैली के प्रवर्तक कवि
• भक्तिकाल की समयावधि मे जन्म लेकर भी आदिकाल की श्रेणी मे रखा जाता है- विद्यापति को
• आदिकाल मे श्रृंगार काव्य की प्रमुख रचना – विद्यापति की पदावली
नोट :- रासो मे श्रृंगार काव्य की प्रमुख रचना – बीसलदेव रासो
• विद्यापति की ख्याति का आधार :- पदावली
• भाषा :- संस्कृत, अवहट्ट, मैथिली
• विद्यापति के संबंध में महत्वपूर्ण मत :-
1. विद्यापति का संसार ही दूसरा है …..सारा संसार गुलाबमय है” (डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार )
2. “जिस रचना के कारण विद्यापति मैथिल कोकिल कहलाये वह इनकी पदावली है ।“(आ. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
3. “विद्यापति श्रृंगार रस का सिद्ध वाक् कवि है। “(डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा )
4. विद्यापति को रहस्यवादी सर्वप्रथम ग्रियर्सन ने कहा।
• प्रमुख रचनाएं :-
1. कीर्ति लता (कीर्ति सिंह की वीरता ) भाषा – अवहट्ट
2. कीर्ति पताका (राजा शिव सिंह की वीरता) भाषा – अवहट्ट
3. विद्यापति की पदावली( मैथिली भाषा में )
• रचनाए (विस्तार से):–
विद्यापति के कुल 14 ग्रंथों की रचना की, जिनमें 11 संस्कृत के, दो अवहट्ठ भाषा एवं एक मैथिली।
अवहट्ट भाषा में रचित ग्रंथ दो ग्रंथ:- कीर्ति लता और कीर्ति पताका ।
1. कीर्ति लता:-
• कीर्तिलता को कहाणी भी कहते है।
• विद्यापति की प्रथम रचना
• रचनाकाल गणेश्वर की मृत्यु के बाद का है ,1380 (बाबूराम सक्सेना के अनुसार)
• कीर्ति लता की रचना के समय विद्यापति की आयु 20 वर्ष की थी ।
• इसमें विद्यापति ने स्वयं को ‘खेलन कवि’ कहा है। खेलन का अभिप्रायः खिलाड़ी किशोर नहीं।यह विद्यापति की उपाधि है जो उन्हें सरस कविता लिखने के कारण प्राप्त हुई थी ।
• विषय:- महाराजा कीर्ति सिंह के राज्याभिषेक, युद्ध- विजय, युद्धारोहण आदि का वर्णन ।
• पद्धति:- संवाद पद्धति(भृंगी शंका व्यक्त करती है तो भृंग उसके प्रश्नों के उत्तर देता है।)
• ग्रंन्थ के आरंभ में :- संस्कृत में मंगलाचरण के दो श्लोक है । एक श्लोक में कलयुग की दुरवस्था का वर्णन है। जिसमें बताया गया है कि इस युग में कविता बहुत है, सुनने वाले और रस ज्ञाता भी बहुत ही है परंतु दाता दुर्लभ है। दाता है कीर्ति सिंह । इसके उपरांत कवि अपनी विनीत दिखाता है और कहता है कि उसका कार्य ऐसा वैसा है परंतु यद्यपि दुर्जन उस पर हसेंगे तथापि सज्जन उसकी प्रशंसा करेंगे।
2. कीर्ति पताका :-
• महाराजा शिव सिंह के समय आ हुई ।
• विषय :- राजा शिव सिंह की कीर्ति और यश का वर्णन।
• ग्रंन्थ का आरंभ:- गणेश जी की स्तुति से।
• हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार – “इस कृति में कई प्रकार के की भाषाएं हैं।गद्य में संस्कृत पदावली की अधिकता है। बीच-बीच में मैथिली की विभक्तियां व क्रियापद आते हैं। पद्य में दोहों और छप्पयों में अपभ्रंश के निकट जाने का प्रयास किया है परंतु हरिगीतिका आदि छंदों में मैथिली का पुट मिल जाता है। पद्यों में तद्भव का शब्दों का ही प्रयोग है किन्तु गद्य में तत्सम शब्दों की अधिकता है।”
◆ मैथिली भाषा:- विद्यापति की पदावली
• नायक :- कृष्ण
• नायिका :-राधा
• काव्य रूप :- गेह मुक्तक
• वयःसन्धि की नायिका :- राधा
• प्रमुख रस :- श्रृंगार रस
• इस कृति की रचना के लिए विद्यापति ने जयदेव के गीत – गोविंद का अपना आदर्श स्वीकार किया है।
• पदावली के पदों की संख्या :- 945( श्री नगेंद्र नाथ गुप्त के अनुसार )
• सबसे प्रमाणित संग्रह :- श्रीविमान बिहारी मजूमदार एवं श्री नगेंद्रनाथ ने किया।
• विद्यापति के पदों के तीन प्राचीन संग्रह प्राप्त होते हैं:-
1. एक संग्रह :- ताम्रपत्र लिखा जो मिथिला से प्राप्त हुआ। (विद्यापति के प्रपौत्र का लिखा हुआ ,इसमें 650 पद बचे हुए हैं )
2. दूसरा संग्रह :- हस्तलिखित प्रमाणित संग्रह नेपाल राज्य के पुस्तकालय में रखा गया है। (म. म. हरप्रसाद शास्त्री ने प्रथम इसे नेपाली दरबार के पुस्तकालय में देखा था , 300 पद)
3. तीसरा संग्रह:- राजतंरगिणी है, जो लोचन कवि द्वारा संग्रहित किया गया है। (लोचन ने लिखा है अपभ्रंश भाषा की रचना प्रथम विद्यापति ने की थी)
• विद्यापति की पदावली को विषय का दृश्य तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है :- (1.)भक्ति (2.)श्रृंगार (3.) विविध विषयक+
• भक्ति विषयक पदों के अंतर्गत :- भगवान शिव शंकर, दुर्गा,गौरी,गंगा की स्तुतियां सम्मिलित है ।
• श्रृंगार पदों के अंतर्गत :- राधा – कृष्ण के विरह – मिलन हाव-भावों आदि का आकर्षण चित्रण
5. अमीर खुसरो
• जन्म 1255ई. मृत्यु – 1324ई.
• जन्म स्थान – एट जिला पटयाली गाँव(उत्तरप्रदेश)
• अमीर खुसरो के पूर्वज तुर्की थे और बलखट देश से भारत आए थे।
• 13वीं शताब्दी में जब दिल्ली पर गुलाम वंश का शासन था तब अमीर खुसरो के पिता बलख हजारा (बैक्ट्रिया) से भागकर भारत आ गए तथा एटा जिला के पटियाली नामक ग्राम में गंगा – किनारे रहने लगे।
• अमीर खुसरो के पिता का नाम :- सैफुद्दीन महमूद (लाचन जाति के तुर्क)
• अमीर खुसरो के पिता सम्राट इल्लुमिश के नौकरी करते थे।
• पिता की मृत्यु के बाद इनका लालन – पालन और शिक्षा इनके नाना इमादुल मुल्क ने की।
• इनके एक पुत्री और तीन पुत्र थे।
• उपनाम – हिन्द का तोता
• अमीर खुसरो का वास्तविक नाम – अबुल हसन
• अमीर खुसरो का खुसरो उपनाम था एवं अमीर का खिताब जलालुद्दीन खिलजी ने उनकी एक कविता पर प्रसन्न होकर उन्हें प्रदान किया था।
• गुरु – निजामुद्दीन औलिया(मृत्यु 1324 मे)
• अमीर खुसरो के प्रथम आश्रयदाता :-गयासुद्दीन बलबन
अंतिम आश्रयदाता :- गयासुद्दीन तुगलक(अमीर खुसरो ने दिल्ली पर 11 बादशाहों का
शासन देखा था)
• आम जनता के मनोरंजन कवि
• खडी बोली का प्रयोग करने वाले सर्वप्रथम कवि
• खडी बोली और ब्रज भाषा के मनोरंजन लोक साहित्य के प्रथम निर्माता
• आदिकाल के अंतिम सीमा के कवि
• अमीर खुसरो ने सेहतार (सितार),तबला और ढोल का आविष्कार किया।
• अमीर खुसरो ने भारतीय संगीत में कौव्वाली विकसित की।
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• डॉ .रामकुमार वर्मा ने हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास मे अवधी का प्रथम कवि अमीर खुसरो को माना है।
• ब्रज और अवधी को मिलाकर काव्य रचना करने का आरम्भ खुसरो ने किया।
• ध्रुपद के स्थान पर कौव या कव्वाली बनाकर इन्होने बहुत से नये राग निकाले।
• हिन्दी खड़ी बोली का पहला कवि अमीर खुसरो को माना गया है।
• हिन्दी साहित्य मे पहेलियाँ और मुकरियाँ को प्रचलित करने का श्रेय अमीर खुसरो को है।
• काव्य रूप – पहेलियाँ एवं मुकरियाँ,दो सखुने,ढकोसला
• अमीर खुसरो की रचनाओं का सर्वप्रथम हिंदी में संकलन एवं संपादन करने वाले:- श्री बृज रतन दास
• ब्रजरत्न दास ने अमीर खुसरो की 22 रचनाओं का उल्लेख किया है।
• खुसरो ने अपनी पुस्तक ‘नुहसिपहर’ में भारतीय बोलियो के सम्बन्ध में बहुत विस्तार से लिखा है।
• “खुसरो ने अपनी आंखों से गुलाम वंश का पतन, खिलजी वंश का उत्थान और पतन,तथा तुगलक वंश का आरंभ देखा । इनके समय में दिल्ली के तख्त पर 11 सुल्तान बैठे जिनमें सात की इन्होंने सेवा की थी।” (ब्रज रतन दास का कथन)
• “अमीर खुसरो फारसी के बहुत अच्छे ग्रंथकार और अपने समय के नामी व्यक्ति थे …इनकी पहेलियों और मुकरियाँ प्रसिद्ध है।” (आ. रामचंद्र शुक्ल का कथन)
• “जन- जीवन के साथ घुल – मिलकर काव्य – रचना करने वाले कवियों में खुसरो का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने जनता के मनोरंजन के लिए पहेलियां और मुकरियाँ लिखी थी।आदिकाल में खड़ी बोली को काव्य की भाषा बनाने वाले वे पहले कवि है।” (डॉ.नगेंद्र का कथन)
• अमीर खुसरो ने गुरु निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु(1324ई.) का समाचार पाते ही कब्र के पास पहुचे तब यह दोहा पढकर बेहोश होकर गिर पडे।
“गोरी सोभे सेज पर , मुख पर डोरे केस।
चल खुसरो पर आपने,रैन भईचहुँ केस।।”
• गुरु निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु(1324ई.) हुई उसी वर्ष के अन्त मे खुसरो की भी मृत्यु हो गई।अपने गुरु की कब्र के नीचे की और पास ही गाड़े गये।
• अमीर खुसरो मकबरा बनवाया-ताहिर बेरा नामक अमीर व्यक्ति(1606ई.)
• इनकी रचना के कुछ उदाहरणः-
◆ अमीर खुसरो की पहेलियां दो प्रकार की है :
1. अंतर्लापिका (बुझ पहेलियां):- जिसका उत्तर पहेली के अंदर हो।
2. बहिर्लापिका (बिन बुझ पहेलियां):- जिसका उत्तर पहेली के बाहर हो।
उदाहरणः –
(¡) बुझ पहेली (अंतर्लापिका):-
√ हाड़ की देही उज्जर रंग।
लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की,ना खून किया ।
वाका सिर क्यों काट लिया।।
-(नाखून)
√ नारी से तू नर भई और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे कोईलो कोईलो लोय।।
– (कोयला)
लकडी – नारी, कोयला – नर ( लकड़ी से कोयला
बना ,इसलिए कोयले को नारी से नर होना मना है।)
(¡¡) बिन बूझ पहेली(बहिर्लापिका):-
√ एक पुरुष ने ऐसी करी ।
खूँटी ऊपर खेती करी।
खेती बारी दई जलाय।
पाई के ऊपर बैठा खाय।।
– (कुम्हार)
√ पानी में निस दिन रहे।
जापे हाड़ न मांस ।
काम करै तलवार का।
फिर पानी में वास।।
– ( चाक पर कच्ची मिट्टी को काटने वाला धागा)
◆ दो सखुन:-
• सखुन शब्द फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है :- कथन या उक्ति
• दो सखुन का अर्थ :- दो कथनों का एक ही उत्तर हो।
• उदाहरणः-
√ पंडित क्यों न नहाया, धोबिन क्यों मारी गई?
√ दीवार क्यों टुटी, राह क्यों लूटी ?
– राज न था
◆ मुकरियाँ :-
• मुकरियाँ एक प्रकार की पहेलियाँ होती है।
• इसमें तीन पंक्तियों में पहेलियाँ होती है अंतिम पंक्ति में खुसरो ए सखी, साजन के रूप में पहेली का उत्तर देता है।
• उदाहरणः-
वह आये तब शादी होय।
उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागै वाके बोल ।
ऐ सखी साजन न सखी ढोल।।
◆ ढकोसला :-
• ढकोसला का प्रचलित अर्थ:- आडंबर या पाखंडी
• उदाहरणः-
आया कुत्ता खा गया बैठी ढोल बजा।ला पानी
पिला।।
◆ निस्बतें :-
• निस्बत अरबी भाषा का शब्द है । जिसका अर्थ है- तुलना
• उदाहरणः-
जानवर और बंदूक में क्या निस्बत है? (उत्तर – घोड़ा)
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