हिन्दी साहित्य की पद्धतियां(hindi sahity ki paddhatiyan)
हिन्दी साहित्य की पद्धतियां :-
1. वर्णानुक्रमी पद्धति:-यह वर्णो पर आधारित है।गार्सा द तासी एवं शिवसिंह सेंगर इसी पद्धति पर आधारित है। इसमें कवियों का वर्णन नाम के वर्णानुसार किया जाता है।अतः इसमें कवियों के जीवन परिचय के बारे में जानकारी तो मिलती है किन्तु साहित्य प्रवृत्तियों की उपेक्षा हो जाती है।
(क) गार्सा द तासी:-
◆ ग्रन्थ – इस्त्वार द ला लितरेत्यूर एन्दुई ऐन्दुस्तानी(भाषा-फ्रेच)
◆ एन्दुई – हिन्दुओं द्वारा प्रयुक्त हिन्दी
◆ ऐन्दुस्तानी – मुसलमानो द्वारा प्रयुक्त हिन्दी
◆ यह ग्रन्थ दो संस्करण में प्रकाशित हुआ :-
★ पहले संस्करण दो भाग में :- √ इसमें पहला का प्रकाशन :- 1839 ई. में √ दूसरे भाग का प्रकाशन :- 1847 ई. में
★ दूसरे संस्करण तीन भाग में :- √ पहले दो भाग का प्रकाशन :- 1870 ई. में √ तीसरा भाग का प्रकाशन :- 1971 ई. में
★ इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने वाली संस्था :- -‘द ऑरियटल ट्रांसलेशन कमेटी आयरलैंड’ संस्था
◆ यह ‘फ्रेंच’ भाषा में रचित है।
◆ इस ग्रन्थ के 24 अध्याय है।
◆इसमें कुल- 738 कवियों का वर्णन जिनमें हिन्दी एवं उर्दू के लगभग 70 कवियों का संग्रह
◆ इस ग्रंथ में प्रथम कवि अंगद माना है और अंतिम कवि हेमंत को माना है।
◆ इस ग्रंथ का हिन्दी में अनुवाद डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने ‘हिन्दुई साहित्य का इतिहास‘(1953 ई में )नाम से किया। इसमें कुल रचनाकारों की संख्या 358 थी। जिसमे हिन्दी के 220 रचनाकार थे।
ऽ योगदान – हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन का प्रथम प्रयास।
(ख) शिवसिंह सेंगर :-
◆ ग्रन्थ – शिवसिंह सरोज(भाषा-हिन्दी)
◆ प्रकाशन वर्ष– 1883 ई० में हुआ था। (इसका संशोधित परिवर्धित 1888 ई० में हुआ।
◆ हिन्दी में रचित हिन्दी साहित्य का यह पहला इतिहास ग्रंथ है।
◆ कुल रचनाकार :- 1003 ( हिन्दी के रचनाकार 769 )
◆ योगदान – हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास जो हिन्दी मे लिखा गया। (लगभग-1000 कवियों का वर्णन)
* शिवसिंह सेंगर ने काल विभाजन का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
* शिवसिंह सेंगर ने हिंदी का पहला कवि पुष्य/पुंड को माना ।
2. कालानुक्रमी पद्धतिः– इसे कवियों के जीवनकाल को आधार बनाया जाता है। जार्ज ग्रिर्यसन एवं मिश्रबन्धुओं की रचनाए इसी पद्धति पर आधारित है।
(क) जार्ज ग्रिर्यसन:-
◆ ग्रंथ – मार्डन वर्नेक्यूलर लिटरेचर ऑफ नॉर्दन हिन्दुस्तान (भाषा-अंग्रेजी ) डॉ. किशोरलाल गुप्त ने इस ग्रन्थ को ही सही अर्थो में हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास माना है।
◆ प्रकाशन वर्ष :– एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगााल पत्रिका में 1888 ई. में हुआ था। जिसे बाद में परिवर्तन एवं संशोधन कर 1889ई. पुनः प्रकाशन किया गया।
◆ इस ग्रंथ में सभी रचनाकार हिन्दी के थे। (कुल 952)
◆ यह पहला इतिहास ग्रंथ था, जिसमे केवल हिन्दी के रचनाकारों को स्थान दिया गया था।
◆ यह पहला इतिहास ग्रंथ था, जिसमें काल विभाजन का प्रयास किया गया था।
◆ योगदान :- कालविभाजन एवं नामकरण का प्रथम प्रयास। सम्पूर्ण साहित्य को 11 कालखण्डों मे विभक्त किया। भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल कहा। नोट – भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल श्याम सुन्दर दास ने भी कहा। तुलसीदास को बुद्ध के बाद दूसरा बड़ा अवतार माना। आदिकाल को चरण काल नाम दिया।
◆ ग्रंथ – मिश्रबन्धु विनोद(एक विशालकाय ग्रन्थ 5000 कवियों का वर्णन)
◆ प्रकाशन वर्ष – चार भागों प्रकाशन प्रथम तीन भागों में – 1913 चौथा भाग-1934
◆योगदान – लगभग5000कवियों का वर्णन सम्पूर्ण साहित्यकाल को विभक्त किया।आ.रामचन्द्र शुक्ल ने इसे एक बड़ाभारी इतिवृत्तात्मक ग्रंथ कहा है। आदिकाल को आरम्भिक काल नाम दिया।
3. विधेयवादी पद्धति:-हिन्दी साहित्य मे इस पद्धति के जनक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं। अन्तर्राराष्ट्रीय स्तर मे विधेयवादी पद्धति के जनक तेन है।साहित्य इतिहास लेखन की सबसे उपयुक्त पद्धति है।
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल:-
◆ग्रंथ – हिन्दी साहित्य का इतिहास नागरी सभा(1893)काशी द्वारा हिन्दी शब्द सागर लिखने की योजना बनाई जिसकी भूमिका आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के विकास के नाम से लिखी ये ही भूमिका परिवर्तित एवं संशोधित होकर हिन्दी साहित्य का इतिहास के नाम से प्रकाशित हुई।
◆ प्रकाशन वर्ष – 1929ई.
◆ योगदान – कवियों के जीवन के अपेक्षा उनकी साहित्य प्रवृत्तियां का समालोचनात्मक रूप से वर्णन किया।दोहरे नामकरण की परम्परा प्रारम्भ की।भक्तिकाल को दो भागों में बाटा।
4. कोई पद्धति नही:-
(क) डॉ.रामकुमार वर्मा –
◆ ग्रंथ – हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास
◆प्रकाशन वर्ष – डॉ.रामकुमार वर्मा अपना साहित्य का इतिहास दो भागों में लिखना चाहते थे इसका प्रथम प्रका.1938ई. में हुआ।जिससे 693 से 1693ई.तक का साहित्य इतिहास का वर्णन है।इसका दूसरा भाग प्रकाशन नही होने के कारण यह अधुरा साहित्य इतिहास है।
(ख) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी – ऽ ग्रंथ – हिन्दी साहित्य की भूमिका(1 940) हिन्दी साहित्य का आदिकाल(1952) हिन्दी का उद्भव और विकास(1953)
ऽ योगदान – आदिकाल का नामकरण – आदिकाल दिया (जिसका समर्थक डॉ.नगेन्द्र ने किया।) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आ.रामचन्द्र शुक्ल की मान्यताओं का खण्ड किया।
(ग) गणपति चन्द्र गुप्तः– ऽ ग्रंथ – हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास ऽ प्रकाशन वर्ष – 1965ई.
(घ) डॉ.नगेन्द्र:- हिन्दी साहित्य का वृहत इतिहास:-नागरी प्रचारणी सभा ने सम्पादित करवाया। इसकी रचना प्रारम्भ में 16 खण्ड़ो मे करने की योजना थी बाद में 2 खण्डों ओर जोड़कर 18 कर दी। यह शताधिक लेखकों का प्रयास है।डॉ.नगेन्द्र ने इसके 6वां खण्ड मे रीतिकाल की भूमिका लिखी है।
💐 हिन्दी साहित्य के इतिहास से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ:-
◆ भाषा काव्य संग्रह (1873 ई.) :- महेशदत्त शुक्ल
◆ हिन्दी कोविंद रत्नमाला :- डॉ श्यामसुंदर दास ★ इनके रचना के दो भाग :- √ प्रथम भाग (1909 ई.) में प्रकाशित √ दूसरा भाग (1914 ई.) में प्रकाशित
◆ खड़ी बोली हिन्दी साहित्य का इतिहास (1914 ई) :- ब्रजरत्न दास
◆ कविता कौमुदी (1917 ई.) :- रामनरेश त्रिपाठी
◆ ब्रज माधुरी सार (1923 ई. ) :- वियोगी हरि
◆ आधुनिक हिन्दी साहित्य (1925 ई.) :- डॉ कृष्णलाल
◆ सुकवि सरोज(1927 ई.) :- गौरीशंकर द्विवेदी
◆ हिन्दी भाषा और उसके साहित्य का विकास (1930 ई.) :- अयोध्या सिंह ‘हरिऔंध’
◆ मॉडन हिन्दी लिटरेचर(1939 ई.) :- डॉ इन्द्रनाथ मदान
◆ राजस्थानी साहित्य की रुपरेखा(1939 ई.) :- डॉ मोतीलाल मेनारिया
◆ हिन्दी साहित्य: बीसवी शताब्दी (1950 ई.) :- आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी
◆हिन्दी का गद्य साहित्य (1955 ई.) :- रामचंद्र तिवारी
◆ हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास (1986 ई.) :- डॉ रामस्वरुप चतुर्वेदी
◆ हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास (1996 ई.) :- डॉ. बच्चन सिंह
◆ हिन्दी साहित्य: युग एवं प्रवृतियाँ :- शिवकुमार शर्मा
◆ हिन्दी साहित्य का आधा इतिहास :- सुमन राजे
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