? छंदों का परिचय(chhandon ka parichay) ?
◆ छंद के परिभाषा :- अक्षरों की संख्या एवं क्रम ,मात्रा गणना तथा यति -गति के सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पदरचना ‘छंद’ कहलाती है !
◆ छंद के अंग :-
1 . चरण :- छंद में प्राय: चार चरण होते हैं ! पहले और तीसरे चरण को विषम चरण तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहा जाता है।
2 . मात्रा और वर्ण :- मात्रिक छंद में मात्राओं को गिना जाता है ! और वार्णिक छंद में वर्णों को दीर्घ स्वरों के उच्चारण में ह्वस्व स्वर की तुलना में दुगुना समय लगता है ! ह्वस्व स्वर की एक मात्रा एवं दीर्घ स्वर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं ! वार्णिक छंदों में वर्णों की गिनती की जाती है।
3 . लघु एवं गुरु :- छंद शास्त्र में ये दोनों वर्णों के भेद हैं ! ह्वस्व को लघु वर्ण एवं दीर्घ को गुरु वर्ण कहा जाता है ! ह्वस्व अक्षर का चिन्ह ‘ । ‘ है जबकि दीर्घ का चिन्ह ‘ s ‘ है
● लघु :- अ ,इ ,उ एवं चन्द्र बिंदु वाले वर्ण लघु गिने जाते हैं !
● गुरु :- आ ,ई ,ऊ ,ऋ ,ए ,ऐ ,ओ ,औ ,अनुस्वार ,विसर्ग युक्त वर्ण गुरु होते हैं ! संयुक्त वर्ण केपूर्व का लघु वर्ण भी गुरु गिना जाता है।
4 . संख्या और क्रम :- मात्राओं एवं वर्णों की गणना को संख्या कहते हैं तथा लघु -गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं।
5 . गण :- तीन वर्णों का एक गण होता है ! वार्णिक छंदों में गणों की गणना की जाती है । गणों की संख्या आठ है ।
● इनका एक सूत्र है – ‘यमाताराजभानसलगा ‘
● इसके आधार पर गण ,उसकी वर्ण योजना ,लघु -दीर्घ आदि की जानकारी आसानी से हो जाती है !
● गण का नाम उदाहरण चिन्ह
क्रम संख्या |
गण का नाम |
उदाहरण |
चिह्न |
1. |
यगण | यमाता | ISS |
2. | मगण | मातारा |
SSS |
3. | तगण | ताराज |
SSI |
4. | रगण | राजभा |
SIS |
5. |
जगण | जभान |
ISI |
6. |
भगण | भानस |
SII |
7. | नगण | नसल |
III |
8. |
सगण | सलगा |
IIS |
6. यति -गति -तुक :– यति का अर्थ विराम है , गति का अर्थ लय है ,और तुक का अर्थ अंतिम वर्णों की आवृत्ति है ।चरण के अंत में तुकबन्दी के लिए समानोच्चारित शब्दों का प्रयोग होता है ।जैसे – कन्त ,अन्त ,वन्त ,दिगन्त ,आदि तुकबन्दी वाले शब्द हैं , जिनका प्रयोग करके छंद की रचना की जा सकती है । यदि छंद में वर्णों एवं मात्राओं का सही ढंग से प्रयोग प्रत्येक चरण से हुआ हो तो उसमें स्वत: ही ‘ गति ‘ आ जाती है !
◆ छन्द तीन प्रकार :-
1.वर्ण वृत्त :– जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के नियमानुसार होती हैं, उन्हें ‘वर्ण वृत्त’ कहते हैं।
2.मात्रिक :- जिन छन्दों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है, उन्हें ‘मात्रिक’ छन्द कहते हैं।
3.अतुकांत और छंदमुक्त :– जिन छन्दों की रचना में वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता, उन्हें ‘छंदमुक्त काव्य कहते हैं। ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी कहते है|
? प्रमुख छंदो का परिचय ?
1 . चौपाई :-
● यह मात्रिक सम छंद
● इसमें चार चरण होते हैं प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं पहले चरण की तुक दुसरे चरण से तथा तीसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है।
● प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है।
● चरण के अंत में जगण (ISI) एवं तगण (SSI) नहीं होने चाहिए।
जैसे :-
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥
2. दोहा :-
● यह मात्रिक अर्द्ध सम छंद है।
● इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11 मात्राएँ होती हैं।
● यति चरण में अंत में होती है।
● विषम चरणों के अंत में जगण (ISI) नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अंत में लघु होना चाहिए।
● सम चरणों में तुक भी होनी चाहिए।
● जैसे :-
श्री राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरू तुलसी तोर।
3. सोरठा :-
● यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है।
● इसके विषम चरणों में 11मात्राएँ एवं सम चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं ।
● तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है ।इस प्रकार यह दोहे का उल्टा छंद है ।
● जैसे – औरूं अकल उपाय, कर आछी भूंडी न कर।
जग सह चाल्यो जाय, रेला की ज्यूं राजिया॥
4. कवित्त :-
● वार्णिक समवृत्त छंद जिसमें 31 वर्ण होते हैं ।
● 16 – 15 पर यति तथा अंतिम वर्ण गुरु होता है।
● कवित्त को घनाक्षरी भी कहा जाता है ! कुछ लोग इसे मनहरण भी कहते हैं।
● जैसे –
सहज विलास हास पियकी हुलास तजि(16 मात्राएँ)
दुख के निवास प्रेम पास पारियत है । (15 मात्राएँ )
5 . गीतिका :-
● मात्रिक सम छंद है।
● जिसमें 26 मात्राएँ होती हैं।
● 14 और 12 पर यति होती है तथा अंत में लघु -गुरु का प्रयोग है ।
● जैसे :-
साधु भक्तों में सुयोगी, संयमी बढ़ने लगे। सभ्यता की सीढ़ियों पर, सूरमा बढ़ने लगे। वेद मंत्रों को विवेकी प्रेम से पढ़ने लगे। पंचको की छातियों में शूल से गड़ने लगे ।।
6 . द्रुत बिलम्बित :-
● वार्णिक समवृत्त छंद
● वर्णों की संख्या – 12
● नगण , भगण , भगण,रगण का क्रम रखा जाता है।
● जैसे – मदन मोहन मूरत साँवरी।
लख हुई जिसको अति बाँवरी।
हृदय व्याकुल हो कर रो रहा।
विरह और न जावत ये सहा।।
7 . इन्द्रवज्रा:–
● वार्णिक समवृत्त छंद
● वर्णों की संख्या 11 प्रत्येक चरण में दो तगण ,एक जगण और दो गुरु वर्ण ।
● जैसे –
होता उन्हें केवल धर्म प्यारा ,सत्कर्म ही जीवन का सहारा ।
8 . उपेन्द्रवज्रा :-
● वार्णिक समवृत्त छंद
● इसमें वर्णों की संख्या प्रत्येक चरण में 11 होती है
● गणों का क्रम है :- जगण , तगण ,जगण और दो गुरु ।
● जैसे :- बिना विचारे जब काम होगा ,कभी न अच्छा परिणाम होगा ।
9 . मालिनी :-
● वार्णिक समवृत्त छंद
● जिसमें 15 वर्ण होते हैं 7 और 8 वर्णों के बाद यति होती है।
● गणों का क्रम नगण ,नगण, भगण ,यगण ,यगण ।
● जैसे –
पल -पल जिसके मैं पन्थ को देखती थी ।
निशिदिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती ॥
10 . मन्दाक्रान्ता :-
● वार्णिक समवृत्त छंद में 17 वर्ण
● भगण, भगण, नगण ,तगण ,तगण और दो गुरु वर्ण के क्रम में होते हैं ।
● यति 10 एवं 7 वर्णों पर होती है ।
● जैसे –
कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो ।
तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही ।
धीरे -धीरे सम्भल रखना औ उन्हें यों बताना ।
पीला होना प्रबल दुःख से प्रेषिता सा हमारा ॥
11 . रोला :-
● मात्रिक सम छंद
● जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं
● 11 और 13पर यति होती है।
● प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते है।
● दो -दो चरणों में तुक आवश्यक है।
●जैसे :-
नित नव लीला ललित ठानि गोलोक अजिर में ।
रमत राधिका संग रास रस रंग रुचिर में ॥
12 . बरवै :-
● यह मात्रिक अर्द्धसम छंद
● जिसके विषम चरणों में 12 और सम चरणों में 7 मात्राएँ होती हैं ।
● यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।
● सम चरणों के अन्त में जगण या तगण होने से बरवै की मिठास बढ़ जाती है।
● जैसे –
वाम अंग शिव शोभित , शिवा उदार ।
सरद सुवारिद में जनु , तड़ित बिहार ॥
13 . हरिगीतिका :-
● यह मात्रिक सम छंद
● प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं ।
● यति 16 और 12 पर होती है
● अंत में लघु और गुरु का प्रयोग होता है।
● जैसे –
कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए ।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
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